जाने क्या है ज्ञानवापी सर्वे प्रकरण, क्या आया है निचली अदालत का आदेश, क्या बोले इस मामले में ओवैसी और कौन है एड0 हुसैफा अहमदी जो सुप्रीम कोर्ट में रखेगे मस्जिद का पक्ष  

तारिक़ खान

कल यानि गुरुवार की दोपहर वाराणसी की अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे 17 मई तक पूरा करने का आदेश दिया था और साफ कर दिया था कि  ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे के लिए नियुक्त कमिश्नर अजय मिश्रा को नहीं बदला जाएगा। अदालत ने उनके अलावा विशाल सिंह और अजय प्रताप को भी दो सर्वे कमिश्नरों के रूप में जोड़ा है। अदालत ने सख्त निर्देश देते हुवे जिला प्रशासन से इस आदेश में कहा है कि सर्वे ताला खोल कर अथवा तोड़ कर पूरा करवाया जाए। इस क्रम में जिला प्रशासन ने कल आदेश आने के बाद से ही अपनी तैयारी शुरू कर दिया है।

गौरतलब है कि दिल्ली निवासी राखी सिंह तथा चार अन्य महिलाओं ने श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा अर्चना की अनुमति देने और परिसर में स्थित विभिन्न विग्रहों की सुरक्षा का आदेश देने के आग्रह संबंधी याचिका दाखिल की थी। इस पर सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर की अदालत ने 26 अप्रैल को एक आदेश जारी कर ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी परिसर की वीडियोग्राफी सर्वे कराकर 10 मई तक रिपोर्ट देने के आदेश दिए थे। अदालत ने इसके लिए अजय मिश्रा को कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया था।

इस कमीशन ने पहले दिन पिछले शुक्रवार को जब सर्वे शुरू किया तो कमीशन के कमिश्नर पर मस्जिद कमिटी ने पक्षपात का आरोप लगाते हुवे सर्वे शाम को खत्म होने के बाद पत्र देकर अपना विरोध दर्ज करवाया था। जिसके बाद शनिवार को अदालत में याचिका दाखिल कर सर्वे कमिश्नर बदलने की मांग किया गया था। इस दरमियान राखी सिंह के पैरोकार विसेन ने मुकदमा वापस लेने का बयान रविवार को जारी किया तो दुसरे दिन यानी सोमवार को मंदिर समिति भी वन टाइम पार्टी बनकर इस वाद में शामिल हो गई और अदालत ने सर्वे कमिश्नर न बदलने का फैसला कल गुरूवार को सुना दिया।

अब इस फैसले के खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर पहली बार पंहुचा है। याचिकाकर्ता के वकील हुफेज़ा अहमदी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि निचली अदालत के सर्वे का आदेश प्लेसज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के खिलाफ है। अदालत को ऐसे आदेश देने का अधिकार ही नही है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता एड0 हुफेज़ा अहमदी ने अदालत से दरखास्त किया है कि यथा स्थिति बरक़रार रखने का आदेश पारित किया जाए और मामले की जल्द से जल्द सुनवाई शुरू किया जाए।

इस प्रकरण में याचिका पर सीजेआई जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि जब तक कागज़ात न देख लिए जायेगे तक तक कोई आदेश नही दिया जा सकता है। हालांकि अदालत इस मामले की जल्द सुनवाई को तैयार हो गई है। उम्मीद है कि अगले सप्ताह इस मामले की सुनवाई शुरू हो सकती है। वही दूसरी तरफ सर्वे की कार्यवाही कल से शुरू होने की संभावनाओं के बीच प्रशासन अपनी तैयारी में जुटा है।

कौन है एड0 हुसैफा अहमदी

एड0 हुजैफा अहमदी सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ताओं में शुमार किये जाते है। एड0 हुजैफा अहमदी कई बड़े केस में बतौर अधिवक्ता रहे है। ज्ञानवापी केस में अधिवक्ता के तौर पर उनका नाम एक बार फिर सुर्खियों में है।

क्या बोले थे ओवैसी

ओवैसी ने इस मामले में निचली अदालत के आदेश को पूजा स्थल अधिनियम 1991 का “घोर उल्लंघन” करार दिया है। उन्होंने कहा कि अधिनियम के अनुसार, “कोई भी व्यक्ति किसी भी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी वर्ग के पूजा स्थल को एक ही धार्मिक संप्रदाय के एक अलग वर्ग या एक अलग धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी वर्ग के पूजा स्थल में परिवर्तित नहीं कर सकता है।”

ओवैसी की यह टिप्पणी वाराणसी की एक अदालत के उस फैसले के बाद आया है, जिसमें गुरुवार की दोपहर मामले की सुनवाई करते हुए कहा गया है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर सर्वेक्षण जारी रहेगा और उसकी रिपोर्ट 17 मई तक पेश की जाय। वाराणसी की अदालत ने सर्वेक्षण आयोग में दो अधिवक्ताओं को भी जोड़ा है।

हैदराबाद सांसद ने कहा कि वाराणसी कोर्ट का फैसला बाबरी मस्जिद विवाद में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन है। उन्होंने कहा, “निचली अदालत का आदेश पूजा स्थल अधिनियम 1991 का घोर उल्लंघन है। यह बाबरी मस्जिद मालिकाना विवाद में दिए गए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लंघन है।” इसके बाद ओवैसी ने कहा कि वह बाबरी मस्जिद के बाद दूसरी मस्जिद गंवाना नहीं चाहते।

उन्होंने कहा, “यह एक खुला उल्लंघन है और मुझे उम्मीद है कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और मस्जिद कमेटी सुप्रीम कोर्ट जाएगी। हमने एक बाबरी मस्जिद खो दी है और हम दूसरी मस्जिद खोना नहीं चाहते।” उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार को उन लोगों के खिलाफ तुरंत प्राथमिकी दर्ज करनी चाहिए जो धार्मिक स्थलों की प्रकृति को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “योगी सरकार को इन लोगों के खिलाफ तुरंत प्राथमिकी दर्ज करनी चाहिए क्योंकि 1991 का अधिनियम स्पष्ट रूप से कहता है कि कोई भी व्यक्ति जो 15 अगस्त, 1947 को धार्मिक स्थलों की प्रकृति को बदलने की कोशिश करता है। अगर अदालतें उन्हें दोषी पाती है, तो उन्हें तीन साल की कैद हो सकती है।”

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