मदर्स डे पर तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ: समझ नही आता गुरु कि सोशल मीडिया पर इतने माँ के चाहने वाले है तो फिर वृद्धाश्रम में किसकी माँ रहती है? कौन नुक्कड़ पर माँ को गाली दिया करता है ? ज़रा सोचे
तारिक़ आज़मी
आज मदर्स डे है। पूरी दुनिया अपनी माँ से अपनी ममता को झलका रही है। बेशक मै हमेशा इस प्रकार के दिखावे का विरोधी रहा हूँ। मुहब्बत किसी से भी हो कम से कम उसकी “नोमईश” तो नही होनी चाहिए। मगर हमारी सोच का क्या साहब? तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ तो ऐसे ही बकवास किया करती है। बोलता है तो बोलने दो। थोड़ी देर पढ़ कर मौज लो। थोडा मनोरंजन करो और फिर काम पर लग जाओ। कहते है न कि “चार दिन चर्चा उठेगी, डेमोक्रेसी लायेगे, और पांचवे दिन भूल के सब काम पर लग जायेगे।” ईहा तो चर्चा भी चार दिन नहीं रहती है।
बेशक “तारिक आज़मी की मोरबतियाँ” को आपकी मुहब्बत मिलती रही है। हम शुक्रगुज़ार है और अल्लाह का शुक्र भेजते है कि अपने लफ्जों से आपके होंठो पर दो पल की ही सही हंसी ला देते है। दिल इस मुहब्बत से झूम उठता है कि आप हमारे लफ्जों को तवज्जो देते है। आपकी इस मुहब्बत का शुक्रगुज़ार हु। बहरहाल, मुद्दे पर आ जाते है। आज मोरबतियाँ में न काका आयेगे और न काकी रहेंगी। न शाहीन बनारसी होंगी और न ए जावेद की कोई बात होगी। आज हमारी बात से आपके चेहरे पर मुस्कान नही आएगी। बेशक अगर मै आपको अपने लफ्जों के दर्द को समझा पाया तो आपकी आँखों के कोने थोडा नम हो जायेगे।
आज मदर्स डे है। सोशल मीडिया पर माँ की ममता को झलकाने वालो की बहार दिखाई दे रही है। जहा देखो “माँ तुझे सलाम” करते हुवे औलादे दिखाई दे रही है। एक भीड़ है जिसमे सभी शामिल है। इस भीड़ का बस नही चल रहा है कि सोशल मीडिया पर दिल चीर के रख दे और दिखा दे कि उनके दिल में उनकी माशूका नही बल्कि माँ बसी हुई है। बेशक ऐसे लोगो की कमी इस धरती पर नही है जो माँ के लिए अपनी जन्नत को भी ठुकरा दे। आज सुबह से ही माँ से मुहब्बत करने वाले मुझको सोशल मीडिया पर दिखाई दे रहे है। आँखे मेरी थक गई माँ की इस मुहब्बत को देख कर।
मगर सुबह से ही मेरे दिमाग में एक सवाल कौंध रहा है। पेट में इस सवाल के कारण दर्द इतना है कि बार बार मैं हाजमोला खा रहा हु। आप सोच रहे होंगे कि हाजमोला सवाल आने पर क्यों खाना? तो भाई साफ़ साफ़ बता दू कि सवाल का जवाब न मिलने पर पेट में दर्द होने लगता है। बात हज़म नही होती है। जब कुछ हज़म न हो तो हाजमोला खा लेना चाहिए। सवाल ये है कि जब सोशल मीडिया पर 150 करोड़ जनता देश की (आबादी से ज्यादा जितनी संख्या है वो फर्जी आईडी सहित समझे) माँ से इतनी मुहब्बत करती है तो फिर आखिर ये वृद्धा आश्रम में किसकी माँ रहती है। कौन वो ज़लील बच्चे है जो अपने बुजुर्गो को यहाँ छोड़ कर चले जाते है।
माँ की मोहब्बत और अज़मत इतनी है तो फिर आखिर वो गली के आखरी नुक्कड़ पर एक बुज़ुर्ग दादी बैठी है। आने जाने वाले इनके आगे कुछ सिक्के डाल देते है। वो किसकी माँ है। वो जो अगले नुक्कड़ पर एक बुज़ुर्ग महिला घूम घूम कर सब्जी बेचती है काफी भारी बोझ इस उम्र में उठा रही है वो किसकी माँ है। बच्चे तो उसके भी है। आखिर वो कहा है? कौन है ? और सबसे बड़ी बात हम क्या करते है उनके लिए, कितने अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर देते है? कौन सा फ़र्ज़ समाज के इस तबके के लिए हम निभा देते है। कौन है वो लोग जो अपने फराएज़ से मुह मोड़ के बैठे है?
मदर्स डे है। सिर्फ हमारी माँ के लिए दिन नही है। बल्कि समाज की हर एक माँ के लिए ये दिन है। फिर आखिर कौन है वो लोग जो बीच सड़क पर खड़े होकर माँ को गाली देते है। अगर हम ऐसा करते है तो बेशक हमको कोई हक़ नही बनता है कि हम मदर्स डे मनाये। किसी को गुस्से में माँ की गाली दे और फिर अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखे हैप्पी मदर्स डे, ये हमारे दो रूप को प्रदर्शित करता है। बेशक हमको कोई अधिकार नही है कि हम मदर्स डे पर मुबारकबाद दे और माँ की अज़मत बयान करे।
सिर्फ एक लफ्ज़ कहूँगा कि “माँ कहते है किसे ? माँ की ममता क्या चीज़ है? कोई हम जैसो से पूछे जिनकी मर जाती है माँ।” आज से 17 साल पहले माँ लफ्ज़ मेरे लिए दुनिया से रुखसत हुआ था। आज भी लगता है वो लम्हा कल ही बीता है जब मेरी माँ मुझको छोड़ कर आखरी सांस ले रही थी। ऐसा लगा जैसे दुनिया ही उजड गई हो। दुनिया अचानक रंगीन से ब्लैक एंड वाइट हो गई थी। आज भी माँ की यादे दिल को झकझोर के रख देती है। मेरे जैसो से माँ की अज़मत पूछे हुजुर। दुनिया की ये दौलत जब खो जाती है तो इसकी अज़मत का अहसास सिर्फ आपकी आँखों को नम करेगा। वक्त निकले अपने बुजुर्गो के लिए। वक्त निकाले अपने परिवार के लिए। वक्त निकाले अपने अपनों के लिए। न जाने कितनी अपनी रातो को हमारी माँ ने हमारे सुकून के लिए बेचैन कर लिया था। हर घंटे उठ कर हमको देखना कि कही हमने कपडे गीले तो नही कर लिए है? माँ की अज़मत…..! तुझ पर लाखो सलाम…….! वक्त मिले कभी तो अपने शहर में पास के वृद्धाश्रम ज़रूर जाए। कुछ लम्हे उनके साथ भी बिताये जिनके अपनों ने उनका साथ छोड़ दिया है।