मनी लांड्रिंग केस में ईडी द्वारा गिरफ़्तारी पर आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला, अदालत ने बरक़रार रखा ईडी को प्राप्त गिरफ़्तारी की शक्तियां, कहा मनमानी नही है गिरफ़्तारी की प्रक्रिया
तारिक़ खान
डेस्क: पीएमएलए यानी प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत ईडी द्वारा की गई गिरफ्तारी, जब्ती और जांच की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुवे उसकी शक्तियों को सुप्रीम कोर्ट ने हरी झंडी दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी की प्रक्रिया मनमानी नहीं है। अपराध की आय, तलाशी और जब्ती, गिरफ्तारी की शक्ति, संपत्तियों की कुर्की और जमानत की दोहरी शर्तों के पीएमएलए के कड़े प्रावधानों को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा।
कार्ति चिंदबरम, अनिल देशमुख की याचिकाओं समेत कुल 242 याचिकाओं पर यह फैसला आया। कोर्ट ने कहा कि पीएमएलए के तहत गिरफ्तारी का ईडी का अधिकार बरकरार रहेगा। गिरफ्तारी प्रक्रिया मनमानी नहीं है। जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और सीटी रवि कुमार की स्पेशल बेंच ने यह फैसला सुनाया। जस्टिस खानविलकर ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सवाल ये था कि कुछ संशोधन किए गए हैं, वो नहीं किए जा सकते थे। संसद द्वारा संशोधन किया जा सकता था या नहीं, ये सवाल हमने 7 जजों के पीठ के लिए खुला छोड़ दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, धारा 3 के तहत अपराध अवैध लाभ पर आधारित हैं। 2002 कानून के तहत अधिकारी किसी पर तब तक मुकदमा नहीं चला सकते जब तक कि ऐसी शिकायत किसी सक्षम मंच के समक्ष प्रस्तुत नहीं की जाती हो। धारा 5 संवैधानिक रूप से मान्य है। यह एक संतुलनकारी कार्य प्रदान करता है और दिखाता है कि अपराध की आय का पता कैसे लगाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ईडी अधिकारियों के लिए मनी लॉन्ड्रिंग मामले में किसी आरोपी को हिरासत में लेने के समय गिरफ्तारी के आधार का खुलासा करना अनिवार्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी ट्रांसफर याचिकाओं को वापस संबंधित हाईकोर्ट को भेज दिया। जिन लोगों को अंतरिम राहत है, वह चार हफ्ते तक बनी रहेगी, जब तक कि निजी पक्षकार अदालत से राहत वापस लेने की मांग ना करें।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, ईडी अफसर पुलिस अधिकारी नहीं हैं, इसलिए PMLA के तहत एक अपराध में दोहरी सजा हो सकती है। पीएमएलए केस में सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि, गंभीर अपराध से निपटने के लिए कड़े कदम जरूरी हैं। मनी लॉन्ड्रिंग ने आतंकवाद को भी बढ़ावा दिया है। मनी लॉन्ड्रिंग आतंकवाद से कम जघन्य नहीं है। मनी लॉन्ड्रिंग गतिविधि का देशों की संप्रभुता और अखंडता पर अंतरराष्ट्रीय प्रभाव पड़ता है। मनी लॉन्ड्रिंग को दुनिया भर में अपराध का एक गंभीर रूप माना गया है। अंतरराष्ट्रीय निकायों ने भी कड़े कानून बनाने की सिफारिश की है। मनी-लॉन्ड्रिंग न केवल राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को प्रभावित करता है बल्कि अन्य जघन्य अपराधों को भी बढ़ावा देता है। जैसे कि आतंकवाद, एनडीपीएस से संबंधित अपराध।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 545 पेजों के फैसले में कहा है कि, 2002 कानून के रूप में कानून के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए और पृष्ठभूमि जिसमें इसे अंतरराष्ट्रीय निकायों के प्रति प्रतिबद्धता के कारण अधिनियमित किया गया था और उनकी सिफारिशों के अनुसार, यह स्पष्ट है कि यह मनी लॉन्ड्रिंग गतिविधियों के विषय से निपटने के लिए एक विशेष कानून है, जिसका वित्तीय प्रणालियों पर अंतरराष्ट्रीय प्रभाव पड़ता है जिसमें देशों की संप्रभुता और अखंडता शामिल है।
कोर्ट ने कहा, गंभीर अपराध से निपटने के लिए कड़े कदम उठाने की मांग है क्योंकि ये कोई सामान्य अपराध नहीं है। इस तरह के गंभीर अपराध से निपटने के लिए, 2002 के अधिनियम में मनी लॉन्ड्रिंग की रोकथाम और मनी-लॉन्ड्रिंग के खतरे का मुकाबला करने के लिए कड़े उपाय प्रदान किए गए हैं, जिसमें अपराध की आय की कुर्की और जब्ती या प्रक्रिया में शामिल व्यक्तियों पर ट्रायल चलाना शामिल है। अंतरराष्ट्रीय प्रभाव वाली मनी लॉन्ड्रिंग गतिविधियों के परिणामों की गंभीरता को देखते हुए, रोकथाम और विनियमन के लिए एक विशेष प्रक्रियात्मक कानून बनाया गया है। इसे सामान्य अपराधियों से अलग वर्ग के रूप में माना गया है।