कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद ने पार्टी से दिया इस्तीफ़ा, जाने क्या लिखा गुलाम नबी आज़ाद ने पांच पेज़ के इस्तीफे में
आदिल अहमद
डेस्क: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आज़ाद ने भी पार्टी का साथ छोड़ दिया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता आजाद काफी दिनों से अपनी जिम्मेदारियों के प्रति असंतुष्ट चल रहे थे। उन्होंने पार्टी को कई बार आगाह भी किया था कि जो जिम्मेदारियों उन्हें दी गई है वह उनके पार्टी में कद के हिसाब से नहीं है। आजाद का इस्तीफा पार्टी के लिए जम्मू-कश्मीर समेत राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा नुकसान माना जा रहा है। आजाद ने पांच पेजों में पार्टी से इस्तीफा देकर गंभीर सवाल भी उठाए हैं।
उन्होंने कांग्रेस के नेतृत्व पर कई सावल उठाए हैं। उन्होंने कहा है कि, ”पार्टी का नया अध्यक्ष भी कठपुतली ही होगा।“ पार्टी पर सभी बड़े नेताओं को किनारे करने का भी आरोप नबी ने लगाया है। पार्टी से इस्तीफे में गुलाम नबी ने पार्टी की दुर्दशा के लिए राहुल गांधी को जिम्मेदार बताया है। उन्होंने राहुल के नेतृत्व को भी बचकाना कहा है। उन्होंने कहा कि, “राहुल गांधी ने पार्टी के अंदर बात रखने की जगह भी नहीं छोड़ी है। पार्टी में नए अध्यक्ष के चुनाव का खेल हो रहा है।“
जाने क्या लिखा है गुलाम नबी आज़ाद के दिए पांच पेज़ के इस्तीफे में
माननीय कांग्रेस अध्यक्ष,
मैं 1970 के दशक में कांग्रेस पार्टी में शामिल हुआ। ये वो दौर था जब जम्मू कश्मीर में कांग्रेस पार्टी से जुड़ना एक तरह से निषेध माना जाता था। 8 अगस्त 1953 को शेख अब्दुल्ला की गिरफ्तारी के बाद इसका पतन शुरू हो गया था। इसके बाद भी मैं छात्र जीवन से ही महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सुभाष चंद्र बोस और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के स्वाधीनता संघर्ष से प्रभावित था। बाद में संजय गांधी के व्यक्तिगत आग्रह पर 1975-76 में मैंने जम्मू-कश्मीर यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी स्वीकार की। कश्मीर विश्वविद्यालय से परास्नातक करने के बाद मैं 1973-1975 के दौरान कांग्रेस का ब्लॉक जनरल सेक्रेटरी की जिम्मेदारी संभाली।
1977 के बाद संजय गांधी के नेतृत्व में यूथ कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी के पद पर रहते हुए मैं हजारों कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ कई बार जेल गया। 20 दिसंबर 1978 से जनवरी 1979 तक मैं सबसे ज्यादा समय तक तिहाड़ जेल में रहा। उस वक्त मुझे इंदिरा गांधी जी की गिरफ्तारी के खिलाफ जामा मस्जिद से संसद भवन तक विरोध रैली निकालने पर गिरफ्तार किया गया था। हमने जनता पार्टी की व्यवस्था और नीतियों का पुरजोर विरोध किया। उस पार्टी के कायाकल्प और पुनरुद्धार लिए रास्ता बनाया, जिसकी नींव 1978 में इंदिरा गांधी जी ने रखी थी। तीन साल के संघर्ष के बाद 1980 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी दोबारा सत्ता में लौटी।
यूथ आईकॉन (संजय गांधी) की दुखद मृत्यु के बाद 1980 में मैंने इंडियन यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली। अध्यक्ष रहते हुए मुझे आपके पति राजीव गांधी को 23 जून 1981 को संजय गांधी की पहली पुण्यतिथि पर यूथ कांग्रेस में नेशनल काउंसिल मेंबर के तौर पर शामिल करने का मौका मिला। इसके बाद मेरी अध्यक्षता में ही 29 और 30 दिसंबर 1981 को बेंगलुरु में एक विशेष सत्र का आयोजन हुआ। इसमें राजीव गांधी को यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया।
1982 से 2014 तक मुझे इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह जी की सरकार में केंद्रीय मंत्री के तौर पर काम करने का सौभाग्य मिला। 1980 के मध्य तक मुझे कांग्रेस के हर अध्यक्ष के साथ पार्टी के महासचिव के तौर पर काम करने का मौका मिला। मुझे 1980 के दशक के मध्य से हर कांग्रेस अध्यक्ष के साथ पार्टी महासचिव के रूप में काम करने का मौका मिला। मैं राजीव गांधी जी की 1991 में दुखद हत्या तक कांग्रेस पार्लियामेंट्री बोर्ड का सदस्य रहा। अक्टूबर 1992 तक मैं इसका सदस्य रहा, जब तक इसके पुनर्गठन का पीवी नरसिम्हा राव ने फैसला नहीं लिया था।
मैं लगातार चार दशक से भी ज्यादा समय तक कांग्रेस वर्किंग कमेटी का सक्रिय सदस्य रहा। 35 साल तक मैं देश के हर राज्य और केंद्र शासित राज्य, पार्टी के महासचिव प्रभारी के पद पर रहा। मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि मैं जिन राज्यों में प्रभारी रहा, उनमें से 90% में कांग्रेस को जीत मिली। मैं इसलिए इन सबकी गिनती करा रहा हूं ताकि इस महान संस्था में दिए गए मेरे जीवनभर के योगदान को समझा जा सके। राज्यसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर भी मैंने सात साल तक काम किया। अपनी सेहत और अपने परिवार को दांव पर रखते हुए मैंने अपने जीवन का हर क्षण कांग्रेस की सेवा में दिया।
कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर बिना किसी संदेह के आपने यूपीए-1 और यूपीए-2 के गठन में उत्कृष्ट कार्य किया। इस सफलता में एक सबसे बड़ा कारण यह था कि आपने अध्यक्ष के तौर पर वरिष्ठ नेताओं के फैसलों पर भरोसा किया, उन्हें ताकत दी और उनका ख्याल रखा। दुर्भाग्य से राजनीति में राहुल गांधी की एंट्री और खासतौर पर जब आपने जनवरी 2013 में उन्हें उपाध्यक्ष बनाया, तब से उन्होंने पहले से चली आ रही सारी मजबूत व्यवस्थाएं ध्वस्त कर दीं। इसके बाद सभी वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को किनारे कर दिया गया और गैरअनुभवी चापलूसों का नया समूह बना, जो पार्टी चलाने लगे।
इसका एक बड़ा उदाहरण वह है, जब राहुल गांधी ने अपनी ही सरकार के अध्यादेश को पूरे मीडिया के सामने फाड़ दिया था। वह अध्यादेश कांग्रेस कोर ग्रुप ने ही तैयार किया था। जिसे प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली कैबिनेट और बाद में राष्ट्रपति ने मंजूरी दी थी। उनके इस बचकानी हरकत ने प्रधानमंत्री और भारत सरकार के महत्व को खत्म कर दिया। किसी भी मुद्दे से ज्यादा यह इकलौती हरकत 2014 में यूपीए सरकार की हार की बड़ी वजह थी। इसके कारण राइट विंग और कारोबारी फायदे हासिल करने वाली ताकतें एकसाथ आ गईं और उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ जमकर दुष्प्रचार किया।
आप उन बातों को याद कर सकती हैं जब सीताराम केसरी की जगह आपने कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली थी। अक्टूबर 1998 में पंचमढ़ी में कांग्रेस नेता मंथन के लिए एकजुट हुए थे। इसी तरह का एक सत्र 2003 और फिर 2013 में जयपुर में हुआ। इस दौरान मुझे संगठनात्मक जिम्मेदारियों की अध्यक्षता करने का मौका मिला। लेकिन दुख की बात है कि इन बैठकों में लिए गए फैसलों को कभी भी सही तरीके से अमल में नहीं लाया गया। 2013 में मैंने कमेटी के अन्य सदस्यों की मदद से 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी को पुनर्जीवित करने का विस्तृत एक्शन प्लान दिया था। इस एक्शन प्लान को कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने भी स्वीकृत कर लिया था।
इन सुझावों को 2014 लोकसभा चुनाव से पहले चरणबद्ध तरीके से अमल में लाना था, लेकिन दुर्भाग्य से पिछले नौ वर्षों से ये AICC के स्टोर रूम में पड़े हुए हैं। 2013 के बाद मैंने कई बार आपको और उस वक्त के उपाध्यक्ष राहुल गांधी को इन सुझावों पर अमल का आग्रह किया। लेकिन, इन सुझाव पर कुछ नहीं किया गया। यहां तक कि इन्हें गंभीरता से भी नहीं लिया गया। 2014 में आपकी और उसके बाद राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को दो लोकसभा चुनावों में शर्मनाक तरीके से हार मिली। 2014 से 2022 के बीच हुए 49 विधानसभा चुनावों में से पार्टी 39 चुनाव हार चुकी है। पार्टी ने केवल चार राज्यों के चुनाव जीते और छह राज्यों की गठबंधन में शामिल होना पड़ा।
अभी कांग्रेस केवल दो राज्यों में शासन कर रही है और दो राज्यों की सरकार में मामूली भागीदारी के साथ गठबंधन में है। 2019 के बाद से पार्टी में स्थिति केवल खराब हुई। चुनाव में हार के बाद राहुल गांधी ने आवेग में आकर अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। इतना ही नहीं उनके इस्तीफे से पहले हुई वर्किंग कमेटी की बैठक में उन्होंने पार्टी के उन वरिष्ठ नेताओं को खूब अपमानित किया, जिन्होंने अपना पूरा जीवन पार्टी को दे दिया था। इसके बाद आप अंतरिम अध्यक्ष बनीं और पिछले तीन साल से आप यह जिम्मेदारी संभाल रहीं हैं।
सबसे बुरी बात यह है कि जिस रिमोट कंट्रोल मॉडल ने यूपीए सरकार की सत्यनिष्ठा को तबाह किया, वही मॉडल अब कांग्रेस में भी लागू हो गया। आपके पास सिर्फ नाम का नेतृत्व है, सभी महत्वपूर्ण फैसले या तो राहुल गांधी लेते हैं, या फिर इससे भी बदतर स्थिति में उनके सुरक्षाकर्मी और पीए लेते हैं। अगस्त 2020 में मैंने और 22 अन्य वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी की बिगड़ती स्थिति को लेकर आपको पत्र लिखा। इन नेताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री शामिल थे। पार्टी में बदलाव और मजबूत करने के लिए उसमें हम लोगों ने सुझाव दिए थे। तब उन बातों को समझने की बजाय हम लोगों पर चाटुकार मंडली के नेताओं ने हमले किए। हमें बेहद निर्दयिता पूर्वक अपमानित किया गया।
यहां तक कि इस वक्त AICC को चला रही इस मंडली ने जम्मू में मेरी संकेतिक शवयात्रा तक निकलवाई। जिन लोगों ने ये अनुशासनहीनता की उन्हें दिल्ली में कांग्रेस महासचिवों और राहुल गांधी द्वारा व्यक्तिगत तौर पर सम्मानित किया गया। इस मंडली के लोगों ने पूर्व मंत्री कपिल सिब्बल के घर पर गुंडों से हमला करवाया। जो हमेशा कोर्ट में आपकी पैरवी करते रहे और आपको बचाने की कोशिश करते रहे। इन 23 नेताओं की गलती बस इतनी थी कि इन्होंने कांग्रेस की कमजोरियों और उसे सही करने के उपाय सुझाने के लिए आपको पत्र लिखा था। दुर्भाग्य से उन सुझाव को समझने और चर्चा करने की बजाय हम लोगों को CWC का एक विशेष सत्र बुलाकर गालियां दी गईं, अपमानित किया गया।
दुर्भाग्य से कांग्रेस अब उस स्थिति में आ गई है जहां से लौटने की कोई संभावना नहीं है। पर्दे के पीछे से पार्टी चलाई जा रही है। ये प्रयोग बुरी तरह से फेल होगा। क्योंकि पार्टी को व्यापक रूप से नष्ट कर दिया गया है। यहां तक कि जिसे चुना जाएगा वह केवल कठपुतली से ज्यादा कुछ नहीं होगा। दुर्भाग्य से कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर जो जगह छोड़ी उसपर भाजपा ने कब्जा कर लिया और क्षेत्रीय स्तर पर क्षेत्रीय दलों का कब्जा हो गया। यह सब पिछले आठ सालों में नॉन सीरियस राजनीति और नेतृत्व के थोपने चलते हुआ है। अब संगठनात्मक चुनाव की पूरी प्रक्रिया केवल दिखावा है।
संगठन में किसी भी स्तर पर अब कोई सही चुनाव नहीं होता है। AICC के पदाधिकारी उस सूची पर साइन करते हैं जो 24 अकबर रोड पर बैठी मंडली तैयार करती है। बूथ, ब्लॉक, जिला और राज्य स्तर पर कोई इलेक्टोरल रोल पब्लिश नहीं होता है। नामांकन नहीं मंगाए जाते हैं। स्क्रूटनी नहीं होती और न ही चुनाव होता है। ये एक तरह से फ्रॉड किया जा रहा है। AICC नेतृत्व को यह सोचना चाहिए कि आजादी के 75वें वर्षगांठ पर क्या कांग्रेस इसकी पात्र है? आप जानती हैं कि मेरा आपके परिवार के साथ व्यक्तिगत रिश्ता रहा है। इंदिरा गांधी से लेकर संजय गांधी और आपके पति तक। इसके अलावा मेरा व्यक्तिगत संबंध आपसे भी काफी अच्छा रहा है। तमाम मुश्किलों में मैं हमेशा आपके साथ रहा।
कुछ सहयोगियों और मुझे खुद को अब लगता है कि हम लोगों ने जिस विचार और पार्टी के लिए अपना पूरा जीवन दे दिया, उसी कांग्रेस ने हमको अलग कर दिया है। इन सभी कारणों से कांग्रेस हार रही है। उसकी इच्छाशक्ति और क्षमता खत्म हो रही है। अब वो मंडली पूरी तरह से पार्टी पर हावी हो चुकी है और एआईसीसी को चला रही है। दरअसल, कांग्रेस को भारत जोड़ो यात्रा की बजाय पूरे देश में कांग्रेस जोड़ो अभियान शुरू करना चाहिए। ऐसे में बेहद अफसोस और भारी मन से मैंने कांग्रेस से 50 साल पुराने संबंधों को तोड़ रहा हूं। इसके साथ ही मैं कांग्रेस के सभी पदों और उसकी प्रथमिक सदस्यता से भी इस्तीफा दे रहा रहा हूं।
आपका
गुलाम नबी आजाद