केडीए का कमाल: महीनो पहले ध्वस्तीकरण आदेश के बाद भी चमनगंज में हुवे वसी बिल्डर के इस अवैध निर्माण पर दौड़ रहा कागज़ी घोडा
समीर मिश्रा/ शाहीन बनारसी
कानपुर: कानपुर विकास प्राधिकरण को आसान भाषा में केडीए कहा जाता है। इसकी कार्यप्रणाली पर कई सवाल उठाये जाते रहे है। मगर प्राधिकरण है कि साँस ही नही लेता अपनी कार्यप्रणाली को सुधारने के लिए। ताज़ा प्रकरण में तो केडीए ने कमाल ही कर डाला है। कमाल भी ऐसा वैसा नही, कानपुर दंगा भड़काने के आरोपियों को फंडिंग करने के आरोपों में जेल में बंद वसी बिल्डर्स द्वारा निर्मित अवैध बहुमंजिली इमारत के ध्वस्तीकरण का आदेश पारित होने के बाद प्राधिकरण सिर्फ कागज़ी घोड़े दौड़ा रहा है। बहाना भी ऐसा इस कागज़ी घोड़े का कि जानकर हर किसी को हंसी छुट जाए।
कानपुर के चमनगंज स्थित भवन संख्या 88/331 पार्ट वन के एक बड़े भूखंड पर निर्मित इस बहुमंजिला अवैध निर्माण पर दो साल तक एक तो कानपुर विकास प्राधिकरण की कमाल की नज़र नही पड़ी या फिर कह सकते है कि हाजी वसी के आर्थिक धमाल के वजह नजर-ए-इनायत बनी थी और फिर जमकर अवैध निर्माण हो रहा था और लगभग भवन बन कर तैयार है। यहाँ सूत्र बताते है कि इस भवन के निर्माण में बड़ा योगदान हयात जफर हाशमी जिसको पुलिस कानपुर दंगे का मास्टर माइंड बताती है का भी था।
बहरहाल, अवैध निर्माण ने गगन चूमने की कोशिश कर डाली तो आकाशीय वाणी से शायद कानपुर विकास प्राधिकरण की नींद टूटी और नजर-ए-इनायत से निगाह उठी। मगर इनायत तो इसके बाद भी जारी रही। अवैध निर्माण को वैध करवा देने की कवायद शुरू किया गया। कहा जाता है कि कागज़ी खेल में अभी घोड़े दौड़ ही रहे थे कि घोड़े की लगाम थोडा सख्त शासन स्तर से हो गई। शासन से सख्त होने पर कागजों पर घोड़े थोडा धीमी रफ़्तार से चलने लगे। हमारे सूत्र बताते है कि अवैध निर्माण को वैध करने के लिए हाजी वसी बिल्डर के साथ उसके अभिन्न मित्र के तौर पर उभरे हयात ज़फर हाशमी और एक स्थानीय कथित पत्रकार ने भवन को प्राधिकरण से मिल कर सील करवाया और कार्यवाही को कंपाउन्डिंग के तरफ ले जाने की कवायद शुरू हो गई।
मगर शायद इतने बड़े अवैध निर्माण को वैध करने से पहले प्राधिकरण ने भी बहुत कागज़ी कार्यवाही ज़रूरी समझी होगी और जवाब तलबी का दौर शुरू हुआ। हद खत्म हुई और 6 मई को ध्वस्तीकरण आदेश पारित हुआ। जिसके बाद नोटिस को तामिल करवाया गया। इसके बाद जो हाजी वसी के कारिंदों ने जवाबदेही दाखिल किया उसको जानकार हर एक समझदार हंस पड़ेगा। जवाब में हाजी वसी के कारिंदों ने 29 जुलाई को पत्र लिख कर प्राधिकरण को बताया कि “मेरे भवन से संबंधित महत्वपूर्ण अभिलेख अनुज्ञा एव अनुमति इत्यादि मेरे पिताजी ने ही भवन में कहीं रखी है जो मुझे नहीं मिल रही है। उक्त अभिलेख अनुज्ञप्तिया प्रश्नगत प्रकरण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। मेरे पिता जी वर्तमान में जेल में है। जिनके ऊपर 7 वर्ष से कम सज़ा की धाराएं लगी है। जो कि बहुत गंभीर धाराएं नहीं मानी जाती हैं। इसलिए मेरे द्वारा माननीय उच्च न्यायालय में जमानत दाखिल की जा रही है। शीघ्र ही मेरे पिता जी जमानत पाकर बाहर आ जाएंगे और आपको जरूरी अभिलेख की प्रति उपलब्ध हो जाएगी।”
इस जवाब को पढ़कर आपको भले हंसी आई हो, मगर प्राधिकरण को जवाब बहुत ही उचित लगा। कई बड़े सवाल सामने इसी जवाब में है। मगर ये सवाल शायद प्राधिकरण के निगाहों से बचे रह गए। सवाल ये था कि नोटिस जारी हुई थी मई के 6 तारिख को। जबकि कानपुर में दंगा 3 जून को हुआ था और हाजी वसी की गिरफ़्तारी जून के आखिर में हुई थी। यानी लगभग 40 दिन हाजी वसी नोटिस मिलने के बाद भी क्या दस्तावेज़ घर में रखा हुआ प्राधिकरण को जमा नही कर पाए थे। जो अब उनके पुत्रो के द्वारा खोजबीन किया जा रहा है। सबसे बड़ी बात जिन अनुमतियो की बात जवाब में लिखी गई है, उसको तलाशने की इतनी आवश्यकता क्या है? भाई प्राधिकरण ने अनुमति दिया होगा तो सम्बंधित फाइल में उसकी प्रति लगी होगी और उस प्रति को पक्की नक़ल के माध्यम से निकाल कर जवाब में लगाया जा सकता है। “कागज़ नही मरता है” यह पुरानी कहावत है।
बहरहाल, सारे कागज़ी घोड़े दौडाने के बाद अब एक बार फिर विकास प्राधिकरण ने ध्वस्तीकरण की नोटिस 27 तारिख को जारी करते हुवे हाजी वसी एंड संस को दस दिन की मोहलत दिया है। दो दिन गुज़र चूका है और 8 दिन और बाकी है। अब देखना होगा कि इसके बाद ध्वस्तीकरण होता है या फिर कोई और कागज़ी घोड़े दौड़ पड़ते है। फिलहाल सीना ताने यह अवैध निर्माण खड़ा है और कहता हुआ प्रतीत हो रहा है कि ट्वीन्स टॉवर गिर गया। मुझे देखो मैं तो ऐसे ही खड़ा हूँ। हाजी वसी की प्राधिकरण में पैठ को हम अपने अगले अंक में बतायेगे। जुड़े रहे हमारे साथ।