“रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह, अटका कहीं जो आप का दिल भी मिरी तरह” पढ़े मोमिन खां मोमिन के चुनिन्दा अश’आर
शाहीन बनारसी
कश्मीरी और मज़हबी घराने से ताल्लुक रखने वाले मोमिन खा मोमिन की पैदाइश दिल्ली के कूचा चेलान में 1801 ई0 में हुई थी। मोमिन खा मोमिन को फ़ारसी में महारत हासिल थी। मोमिन खा की दिलचस्पी शतरंज में बहुत थी। वह शतरंज के बेजोड़ खिलाड़ी थे। जवानी में कदम रखते ही मोमिन ने शायरी शुरू कर दिया था। मुहब्बत ज़िंदगी का तक़ाज़ा बन कर बार-बार इनके दिलोदिमाग़ पर छाती रही। इनकी शायरी पढ़ कर महसूस होता है कि शायर किसी ख़्याली नहीं बल्कि एक जीती-जागती महबूबा के इश्क़ में गिरफ़्तार है।
मोमिन ने दो शादियाँ किया था। पहली बीवी से मोमिन खा की नहीं बनी। इनकी दूसरी शादी ख्वाजा मीर दर्द के खानदान में ख़्वाजा मुहम्मद नसीर की बेटी से हुई। मौत से कुछ अर्सा पहले ये आशिक़ी से अलग हो गए थे। 1851 ई0 में ये कोठे से गिर कर बुरी तरह ज़ख़्मी हो गए थे और पाँच महीने बाद इनका इन्तिकाल हो गया। मोमिन उर्दू अदब के उन शायरों में से एक थे जिन्होंने उर्दू ग़ज़ल की खूबसूरती में चार चाँद लगा दिया।
मोमिन के एक शेर पर उर्दू अदब के मशहूर शायर मिर्ज़ा असदुल्लाह खा ग़ालिब खुद कुर्बान हो गये थे। कहा जाता है मिर्ज़ा ग़ालिब ने इनके शेर “तुम मेरे पास होते हो गोया जब कोई दूसरा नही होता” पर अपना पूरा दीवान देने की बात कही थी। मोमिन खा मोमिन कश्मीरी ख़ूबसूरती की मुकम्मल शख़्सियत थे। आइये पढ़ते है मोमिन के कुछ चुनिन्दा अश’आर
- असर उसको ज़रा नहीं होता।
रंज राहतअफ़्ज़ा नहीं होता - तुम हमारे किसी तरह न हुए
वरना दुनिया में क्या नहीं होता - तुम मेरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता - हाल-ए-दिल यार को लिखूँ क्योंकर
हाथ दिल से जुदा नहीं होता - दामन उसका जो है दराज़ तो हो
दस्त-ए-आशिक़ रसा नहीं होता - क्यों सुने अर्ज़-ए-मुज़्तरिब ऐ ‘मोमिन’
सनम आख़िर ख़ुदा नहीं होता - तुम मिरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता - थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब
वो आए तो भी नींद न आई तमाम शब - मैं भी कुछ ख़ुश नहीं वफ़ा कर के
तुम ने अच्छा किया निबाह न की - क्या जाने क्या लिखा था उसे इज़्तिराब में
क़ासिद की लाश आई है ख़त के जवाब में - रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह
अटका कहीं जो आप का दिल भी मिरी तरह - आप की कौन सी बढ़ी इज़्ज़त
मैं अगर बज़्म में ज़लील हुआ - किसी का हुआ आज कल था किसी का
न है तू किसी का न होगा किसी का - हाथ टूटें मैं ने गर छेड़ी हों ज़ुल्फ़ें आप की
आप के सर की क़सम बाद-ए-सबा थी मैं न था - माँगा करेंगे अब से दुआ हिज्र-ए-यार की
आख़िर तो दुश्मनी है असर को दुआ के साथ - वो आए हैं पशेमाँ लाश पर अब
तुझे ऐ ज़िंदगी लाऊँ कहाँ से - किस पे मरते हो आप पूछते हैं
मुझ को फ़िक्र-ए-जवाब ने मारा - न करो अब निबाह की बातें
तुम को ऐ मेहरबान देख लिया - हाल-ए-दिल यार को लिखूँ क्यूँकर
हाथ दिल से जुदा नहीं होता - हँस हँस के वो मुझ से ही मिरे क़त्ल की बातें
इस तरह से करते हैं कि गोया न करेंगे - डरता हूँ आसमान से बिजली न गिर पड़े
सय्याद की निगाह सू-ए-आशियाँ नहीं - उलझा है पाँव यार का ज़ुल्फ़-ए-दराज़ में
लो आप अपने दाम में सय्याद आ गया - बहर-ए-अयादत आए वो लेकिन क़ज़ा के साथ
दम ही निकल गया मिरा आवाज़-ए-पा के साथ - माशूक़ से भी हम ने निभाई बराबरी
वाँ लुत्फ़ कम हुआ तो यहाँ प्यार कम हुआ - मज्लिस में मिरे ज़िक्र के आते ही उठे वो
बदनामी-ए-उश्शाक़ का एज़ाज़ तो देखो - हो गया राज़-ए-इश्क़ बे-पर्दा
उस ने पर्दे से जो निकाला मुँह