तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ: निकाय चुनाव टलने से आई सलाम, दुआ, नमस्कारी के दर में भारी गिरावट के बाद, जल्द ही इस दर में भारी उछाल की सम्भावना
तारिक़ आज़मी
नगर निकाय चुनाव की सुगबुगाहट एक बार फिर शुरू हो चुकी है। पिछले दिनों निकाय चुनाव की सुगबुगाहट के दरमियान सलाम,दुआ, नमस्कारी के दर में भारी इजाफा हुआ था। हमारे काका भी बहुते खुश दिखाई देते रहे। अक्सर उनको काकी से कहते सुना कि मोहल्ला के लईका सब बड़ा तमीजदार हो गये है। खूब सलाम-दुआ-नमस्कारी सब करते है। हम काका की खुशफहमी को खत्म नही करना चाहते थे। हमको मालूम था कि आखिर ये सलाम-दुआ और नमस्कार के दर में ऐसा भारी इजाफा कैसे हुआ है।
मगर समय के साथ जैसे ही निकाय चुनाव टलने की बात सामने आई, इस सलाम दुआ और नमस्कारी के दर में भारी गिरावट देखा गया। गली नुक्कड़ की दुकाने रोज़मर्रा के दुकानदारी तक सीमित रह गई। काका और उनके परम प्रिय मित्र रामखेलावन चा बहुत हैरान रहते थे। आखिर ‘इतना सन्नाटा क्यों है?’ कि सदा से ए0 के0 हंगल की याद आ जाती थी। उनको लगता था कि शायद सब लड़का लोग शांति वन में कछु काम से चले गए है। मगर काका ने कभी हमसे इस मसले पर ‘इस्लाह’ नही किया तो मैंने भी अपना नजरिया बिना मांगे न देना बेहतर समझा।
दरअसल, बिना मांग आप अपना नज़रिया किसी को बताते है तो फिर उस नज़रिए का नज़ारा बन जाता है। अपने नज़रिए का नज़ारा बनाने का कोई शौक ख़ास मैंने भी नही रखा हुआ था। नजरिया तो कुछ ऐसा है कि निकाय चुनाव की सुगबुगाहट से यह सलाम-दुआ-नमस्कार के दर में बेतहाशा इजाफा हुआ था। ‘ठेले’ पर ‘इज्ज़त’ दस रुपया पसेरी दिया जाने लगा था और ‘कार्नर’ पर बड़ी महँगी दर ‘ज़िल्लत’ की हो गई थी। किसी की एक समस्या के समाधान के लिए दस-दस क्षेत्रीय समाजसेवक चारदिवारी कूद कर आने को तैयार रहते थे। आखिर बात ‘जम्हूरियत के इस जलसे’ में ताय्दात का इजाफा करना था।
‘जम्हूरियत का ये जलसा’ टल गया तो फिर ठेले पर मिलने वाली 10 रुपया पसेरी कि इज्ज़त ‘कार्नर’ पर महंगे दर में मिलने लगी। सलाम दुआ नमस्कार के दर में इतनी भयानक गिरावट आई कि अमेरिकन शेयर बाज़ार भी उसके सामने फक्र से आज सर उठा सकता है कि उतने तेज़ी से मैं नही गिरा। इसी भारी गिरावट का अहसास काका और उनके मित्र रामखेलावन ‘च’ कर रहे थे। अक्सर आपस में चर्चा भी करते थे। मगर फिर एक बार उनको इस सलाम-दुआ और नमस्कार के दर में तनिक बढ़त का अहसास हुआ तो दोनों ‘बुज़ुर्गान-ए-मोहल्ला’ आखिर हमसे इसका ‘तस्किरा’ किये बिना न माने।
हमने उनकी बातो को सुना और बड़े ही तसल्ली से बताया कि ‘काका सुने हम और आप इस संसार में काफी लोगो के लिए सिर्फ एक ताय्दात है। उन्ही ताय्दात में हमारा शुमार करने वालो के तरफ से ‘जम्हूरियत के होने वाले जलसे’ के लिए अपने तरफ हमारी ताय्दात बढ़ाने के लिए ‘ठेलो पर इज्ज़त’ 10 रुपये पसेरी तकसीम करना शुरू कर दिया था। फिर हुआ कुछ ऐसा कि सियासी ऊंट ने करवट लिया और ज़म्हुरियत का यह जलसा टल गया। जिसके बाद जो ‘इज्ज़त ठेले पर’ दस रुपया पसेरी तकसीम हो रही थी। वही इज्ज़त ‘कार्नर’ पर महंगे दर पर खुद की मौजूदगी दर्ज करवा रही थी।’
हमने रामखेलावन ‘च’ से मुखातिब होते हुवे कहा कि अब जब जम्हूरियत का ये जलसा दुबारा आता दिखाई दे रहा है तो धीरे धीरे इज्ज़त के दामो में कमी आ रही है और इज्ज़त भी मिलना शुरू हो रही है। जलसे की तारिख का एलान जिस दिन हुआ उस दिन भारी उछाल सलाम दुआ के दर में दिखाई देगा। फिलहाल आयोग ने आगामी दो महीने अप्रैल-मई में निकाय चुनाव को संभावित मानकर कार्यवाही शुरू की है। आयोग ने निकाय चुनाव के लिए मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण का विस्तृत कार्यक्रम तय कर दिया है। 10 मार्च से पुनरीक्षण की कार्यवाही शुरू होगी। एक अप्रैल को मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन होगा। एक जनवरी 2023 को 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाले युवा मतदाता सूची में नाम शामिल करा सकते हैं।
काका और उनके बचपन के मित्र रामखेलावन ‘च’ हमारी बाते सुनकर सन 55 के अपने बचपन में पहुच गए और हमसे बोले। समझ में बात अब आई। हमारे समय में तो ऐसा नही होता था। एक को अगर हम गद्दी पर तख्तनशीन करते थे तो दुसरे को बाजू में बैठा लेते थे। जिसके बाद हम लोग दोनों को ही इज्ज़त देते थे और दोनों की ही अह्ममियत को समझते थे तभी जम्हूरियत आज भी कायम है। मगर जम्हूरियत के इस जलसे में अचानक इज्जत के दामों में कमी और जलसा टला तो इज्ज़त के महंगे दाम बहुत कुछ बदला बदला सा अहसास करवा रहे है।
रामखेलावन “च” की बाते सुनकर मैंने मद्धिम से अपने होंठो को फैला कर पुरसुकून मुस्कराहट लाने की कोशिश किया और खुद के बाइक की चाबी उठा कर अपने ‘दफ्तर’ निकल पड़ा। मुझे भी ये बदलाव बड़ा चुभता है कि कार्पोरेट के इस ज़माने में जिस जगह को हम ‘दफ्तर’ जानते थे वह अब ‘हाउस’ हो चूका है। बस काका का वह डायलाग मेरे ज़ेहन में रहता है कि “बतिया है करतुतिया नाही, सब त है बस खटिया नाही”। तो हमारे पास तो बाते है, लफ्ज़ है और उसका अंदाज़-ए-बयां है।