केंद्रीय जाँच एजेंसियों के दुरूपयोग सम्बंधित 14 विपक्षी दलों की याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इंकार, कहा बिना तथ्यात्मक सन्दर्भ के सामान्य निर्देश जारी नही किया जा सकता है
आदिल अहमद
डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 14 राजनीतिक दलों की ओर से दायर एक याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुवे कहा है कि बिना तथ्यात्मक संदर्भ के सामान्य निर्देश जारी नही किया जा सकता है। यह याचिका 14 विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाते हुवे दाखिल किया है कि केंद्रीय जांच एजेंसियों जैसे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) का केंद्र सरकार असहमतियों को दबाने के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है।
इस मामले में सुनवाई आज सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की खंडपीठ ने यह कहकर याचिका पर विचार करने से इनकार किया कि वह बिना तथ्यात्मक संदर्भ के सामान्य निर्देश जारी नहीं कर सकता। खंडपीठ ने कहा कि वह केवल एक व्यक्तिगत मामले में हस्तक्षेप कर सकती है। पीठ ने राजनीतिक नेता सामान्य नागरिकों की तुलना में अधिक प्रतिरक्षा का दावा नहीं कर सकते। पीठ की टिप्पणियों के बाद सीनियर एडवोकेट डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिका वापस लेने की मांग की। सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने आंकड़ों के जरिए यह स्थापित करने का प्रयास किया कि केंद्र नियंत्रित जांच एजेंसियों का इस्तेमाल राजनीतिक असंतोष को कुचलने और प्रतिनिधि लोकतंत्र की मौलिक स्थापनाओं को समाप्त करने की दृष्टि से ‘चयनात्मक और लक्षित’ तरीके से किया जा रहा है।
उन्होंने कहा, समस्या का हल के लिए गिरफ्तारी और रिमांड के साथ-साथ जमानत के लिए उचित दिशा-निर्देश दिए जा सकते हैं। पुलिस या ईडी अधिकारियों द्वारा गिरफ्तारी और रिमांड के लिए, याचिकाकर्ताओं ने ट्रिपल टेस्ट किए जाने की मांग की, जिसके तहत यह निर्धारित करना होता है कि क्या व्यक्ति फ्लाइट रिस्क पर है, क्या सबूतों के साथ छेड़छाड़ की उचित आशंका है, या गवाहों को प्रभावित किया जा सकता है/डराया जा सकता है। और अदालतें भी समान रूप से गंभीर शारीरिक हिंसा के मामलों को छोड़कर किसी भी संज्ञेय अपराध में व्यक्तियों की गिरफ्तारी के लिए ट्रिपल टेस्ट का प्रयोग कर सकती है।
याचिका में प्रकाश डाला गया कि छापे पर कार्रवाई की दर यानी छापे के परिणामस्वरूप दर्ज की गई शिकायतें 2005-2014 में 93 प्रतिशत से घटकर 2014-2022 में 29 प्रतिशत हो गई हैं। इसके अलावा, यह दावा किया गया कि धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत अब तक केवल 23 अभियुक्तों को दोषी ठहराया गया है, यहां तक कि पीएमएलए के तहत ईडी द्वारा दर्ज मामलों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है (वित्त वर्ष 2013-14 में 209 से 2020-21 में 981 और 2021-22 में 1,180)।