श्रीनगर की एतिहासिक जामिया मस्जिद में ‘जुमा-तुल-विदा’ के पहले मस्जिद बंद करने पर उमर अब्दुल्लाह सहित अन्य नेताओं ने किया आलोचना

निसार शाहीन शाह

श्रीनगर: श्रीनगर की एतिहासिक जामिया मस्जिद में बीते जुमे को प्रशासन ने ताला लगा दिया है और गुजिस्ता जुमा जो जमात-उल-विदा होगा की सामूहिक नमाज़ की अनुमति नही दिया है। प्रशासन के इस फैसले पर हुर्रियत नेताओं ने आरोप लगाया कि मस्जिद का बंद होना ‘नए कश्मीर’ में सामान्य स्थिति होने के दावे को झुठलाता है।

मीडिया रिपोर्ट्स में बताया जा रहा है कि कि जम्मू कश्मीर पुलिस का एक वाहन दरगाह के मुख्य द्वार, जिस पर ताला लगा हुआ था, शुक्रवार की सुबह खड़ा था और पुलिसकर्मियों ने उन नमाजियों को लौटा दिया, जो जमात-उल-विदा की नमाज अदा करने के लिए मस्जिद में प्रवेश करना चाहते थे। बताते चले कि जमात-उल-विदा इस्लामिक महीने रमजान का आखिरी शुक्रवार होता है, जब लोग बड़ी सभाओं में दोपहर की नमाज अदा करते हैं। बीता जुमा जम्मू कश्मीर में जमात-उल-विदा था। मस्जिद में नमाज की अनुमति नहीं देने के फैसले पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।

हालांकि, अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से मस्जिद अक्सर इस्लामिक त्योहारों के दिनों में बंद ही रही, क्योंकि प्रशासन को डर है कि मस्जिद में सामूहिक नमाज की अनुमति देने से संभव है कि कानून और व्यवस्था की समस्या खड़ी हो जाए जो नियंत्रण से बाहर हो सकती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह मस्जिद हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक का प्रमुख मंच है। 2017 में एक अंडरकवर पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) को भी भीड़ ने मस्जिद के बाहर पीट-पीट कर मार डाला था।

द हिंदू के मुताबिक, इस कदम का स्थानीय लोगों ने विरोध दर्ज कराया है। ऐसा आरोप है कि लोगों को मस्जिद से सुबह-सुबह बाहर निकाला गया। कई दुकानदारों ने बताया कि उन्हें अपनी दुकानें बंद करने और मस्जिद परिसर से बाहर जाने के लिए कहा गया। जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी के अध्यक्ष अल्ताफ बुखारी ने जामिया मस्जिद को बंद करने पर ‘गहरा अफसोस’ व्यक्त किया और कार्रवाई को ‘धार्मिक स्वतंत्रता का निर्लज्ज उल्लंघन’ करार दिया। मस्जिद की देखभाल करने वालों ने कहा कि उन्हें रमजान के पवित्र महीने के आखिरी शुक्रवार को एक लाख से अधिक लोगों के सामूहिक नमाज अदा करने की उम्मीद थी। अंजुमन-ए-औकाफ जामा मस्जिद के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘लगभग सुबह 9:30 बजे प्रशासन और पुलिसकर्मियों मस्जिद के द्वार बंद करने के लिए कहा। इस अचानक और मनमाने प्रतिबंध का कारण समझ से परे है।’

बताते चले कि जब जम्मू कश्मीर एक राज्य था तो श्रीनगर के नौहट्टा इलाके में स्थित कश्मीर की सबसे बड़ी जामिया मस्जिद, जो जमात-उल-विदा और अन्य मुस्लिम त्योहारों पर कुछ सबसे बड़े धार्मिक जमावड़ों की मेजबानी किया करती थी, में हजारों लोग नमाज में हिस्सा लेते थे। हालांकि शुक्रवार को नौहट्टा में यातायात सामान्य रूप से चल रहा था और महिलाओं व बच्चों सहित कई नमाजी और स्थानीय लोग सामूहिक नमाज की आस में मस्जिद के बाहर सड़क पर जमा हो गए थे, इलाके में स्पष्ट तनाव देखा जा सकता था।

अर्धसैनिक बल सीआरपीएफ का एक वाहन भी कथित तौर पर क्षेत्र में किसी भी संभावित कानून व्यवस्था की समस्या पर नजर रखने के लिए मस्जिद के चारों ओर चक्कर लगा रहा था। यह इलाका कश्मीर में अलगाववादी भावनाओं का केंद्र रहा है। प्रशासन के फैसले की निंदा करते हुए मीरवाइज के नेतृत्व वाले हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने कहा कि मस्जिद में शुक्रवार की नमाज पर रोक लगाने का फैसला ‘लोगों के अपने धर्म का पालन करने संबंधी मौलिक अधिकार का सीधा उल्लंघन है।’ हुर्रियत ने एक बयान में कहा, ‘इस तरह के उपाय इस बात की याद दिलाते हैं कि कश्मीर में जमीनी चीजें वैसी नहीं हैं, जैसा बाहरी दुनिया में प्रचारित किया जा रहा है।’

नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष डॉ0 फारूक अब्दुल्ला ने भी मस्जिद को बंद करने की निंदा करते हुए कहा कि प्रतिबंध का अर्थ है कि ‘कश्मीर में सब ठीक नहीं है।’ उन्होंने भी सरकार से मीरवाइज उमर फारूक को नजरबंदी से रिहा करने की मांग की। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया, ‘हमसे लगातार जम्मू कश्मीर में सामान्य स्थिति होने के दावे किए जा रहे हैं और फिर भी प्रशासन अपने स्वयं के दावों से मुकर जाता है, जब वह हमारी सबसे पवित्र मस्जिदों में से एक को बंद करने का फैसला लेता है और लोगों को अंतिम दिन नमाज अदा करने का मौका नहीं देता है।’

 

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