43 साल पुराने भाजपा नेता ने किया बागी प्रत्याशी के तौर पर नामांकन, क्या आदिविशेश्वर (बेनिया) वार्ड के लिए भाजपा का मास्टर प्लान साबित होगा शकील सिद्दीकी का यह नामांकन
शाहीन बनारसी
वाराणसी: वाराणसी नगर निकाय चुनावो का बिगुल बज चूका है। नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। पर्चो की जाँच का क्रम जारी है साथ ही अब प्रत्याशी भी अपने अपने क्षेत्र में सक्रिय दिखाई दे रहे है। इस दरमियान सबकी निगाहे प्रतिष्ठित आदिविशेश्वर (बेनिया) वार्ड पर लगी हुई थी। यह वार्ड काफी बड़ा हो जाने के बाद भी मतदाताओं के आधार पर अल्पसंख्यक बाहुल्य दिखाई पड़ रहा है जहा 65:35 रेशियो निकल रहा है।
चुनाव में निर्दल एक प्रत्याशी के अलावा कांग्रेस से मो0 सलीम को सबसे पहले टिकट की घोषणा हुई। इसके बाद सपा ने पूर्व पार्षद अरशद खान ‘विक्की’ का टिकट काट कर श्याम यादव को दिया। श्याम यादव पूर्व पार्षद स्व0 मुरारी यादव के परिवार से है। वही देर रात विक्की खान ने बतौर निर्दल नामांकन का फैसला लिया। दूसरी तरफ 43 साल से लगातार भाजपा की सेवा कर रहे शकील सिद्दीकी जो इलाके में ‘शकील भाजपा’ के नाम से जाने पहचाने जाते है ने पार्टी की तीन दशक सेवा के बाद उन्होंने पार्टी से पार्षद का टिकट माँगा था। मगर भाजपा ने उनको टिकट न देकर इन्द्रेश कुमार पर विश्वास जाता दिया।
इसके बाद सूत्र बताते है कि ‘शकील भाई’ ने चुनाव न लड़ने का फैसला क्या और पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा दिखाते हुवे आज इन्द्रेश कुमार के साथ कदम से कदम मिला कर जाकर नामांकन करवाया। इसी दरमियान सपा और कांग्रेस प्रत्याशी मो0 सलीम और श्याम यादव ने भी नामांकन किया। अरशद खान ‘विक्की ने अपने समर्थको सहित नामांकन बतौर निर्दल प्रत्याशी किया। यहाँ तक तो सब कुछ ‘आल इज वेल’ की स्थिति थी। मगर दर्शको को अचंभित करते हुवे कहानी में ट्वीस्ट आ गया। इस ट्वीस्ट को जिसने देखा वह खुद को सौभाग्यशाली समझ रहा था कि ऐसे ड्रामेटिक मूवमेंट को उन्होंने अपने जीती जागती निगाहों से देखा।
कहानी में ट्वीस्ट ये था कि आज सुबह तक चुनाव न लड़ने का फैसला करने वाले शकील सिद्दीकी अचानक नामांकन स्थल निर्दल प्रत्याशी के तौर पर नामांकन करने पहुचे और उन्होंने अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। शकील सिद्दीकी का दावा है कि यह उनका अपना खुद का फैसला है और वह निर्दल अपने बल पर चुनाव जीत रहे है। शकील सिद्दीकी के नामांकन को लेकर सभी अचम्भिर भी दिखाई दे रहे है। क्योकि आज सुबह वह खुद भाजपा प्रत्याशी के नामांकन के लिए साथ में गए थे और अचानक उन्होंने खुद चुनाव लड़ने का फैसला ले लिया।
क्या जातिगत समीकरण है ज़ेहन में
वैसे इलाके के मुस्लिम मतदाताओं को देखे तो शकील सिद्दीकी के नामांकन की असली वजह समझ में आती है। चुनाव में भाजपा त्रिकोणीय मुकाबले में फायदे में रहती है। इस इलाके में भाजपा कभी सीट जीत नही सकी है। मगर जिस प्रकार के अब नामांकन के बाद समीकरण बने वह भाजपा को फायदा पंहुचा रहे है। मुस्लिम बाहुल्य मतो के विभाजन तीन के बजाए दो ही हिस्सों में होता दिखाई दे रहा था। मुस्लिम मतो का रुझान कांग्रेस और निर्दल प्रत्याशी विक्की खान के जानिब होता। इससे नुकसान भाजपा को होता क्योकि दुसरे मतदाताओं में सेंधमारी सपा भी करती। ऐसे में टक्कर कांटे की हो जाती और अगर बाहुल्य मत एक तरफ जाता तो ये भाजपा को नुकसान दे सकता था।
ऐसे में संकट को खत्म करने के लिए शकील सिद्दीकी का नाम बड़ा है। अब अगर देखे तो शकील सिद्दीकी अल्पसंख्यको में ‘राजगीर’ समुदाय से आते है। इस वार्ड में राजगीर समुदाय में आपसी सहमती काफी होती है और इस समुदाय का मत लगभग 1500 है। जिसकी 60 फीसद पोलिंग होती है। इस प्रकार मुस्लिम मतों में विभाजन तीन हिस्सों का होने से फायदा कहा होगा इसको समझना आसान होगा। स्थानीय एक अल्पसंख्यक भाजपा नेता से इस समीकरण पर बात करने पर उन्होंने जवाबा तो नही दिया मगर कुटिल मुस्कान बिखार के जिगर चाक कर डाला। सब मिलाकर मामला बड़ा रोचक दिखाई दे रहे है। शकील सिद्दीकी के नामांकन को लेकर इलाके में चर्चाओं का बाज़ार गर्म है। वैसे शकील सिद्दीकी के पुत्र भाजपा आईटी सेल से जड़े है। वही स्थापना वर्ष से ही भाजपा का परचम शकील सिद्दीकी के हाथो में है।