वाराणसी नगर निकाय चुनाव: त्रिकोणीय संघर्ष में रोचक हुई मेयर की कुर्सी हेतु जंग, त्रिकोण के उभरे चौथे कोण के कारण क्या फंसेगी भाजपा की ये प्रतिष्ठित सीट
तारिक़ आज़मी
वाराणसी: नगर निकाय चुनाव के लिए मतदान हो चुके है। 100 पार्षद पदों और एक मेयर पद हेतु कम मतदान के साथ प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो चुकी है। सर्वाधिक रोचक संघर्ष पिछले ढाई दशक में मेयर पद हेतु इस बार देखने को वाराणसी में मिल सकता है। क्योकि इस बार संघर्ष त्रिकोणीय होने के साथ साथ इस संघर्ष के त्रिकोण में उभरा चौथा कोण सभी कयासों को धुंधला कर रहा है।
वाराणसी की मेयर सीट पर पिछले ढाई दशक से एकतरफा जीत के साथ भाजपा के झोली में जाती है। चुनाव लगभग मेयर का एकतरफा ही रहता है और भाजपा प्रत्याशी दुसरे से जीत का अंतर काफी बड़ा रखता है। इस बार भाजपा ने वाराणसी से अशोक तिवारी पर विश्वास जताया है और उनको टिकट देकर वही कांग्रेस ने अपने पुराने नेता अनिल श्रीवास्तव पर विश्वास जताया जबकि सपा ने ओपी सिह को टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारा है। इस अनुसार लड़ाई त्रिकोणीय हो चली है।
मगर इस त्रिकोण वाले संघर्ष में चौथा कोण निकल कर सामने आया बसपा के टिकट घोषणा के साथ। बसपा ने सुभाष मांझी को टिकट देकर इस संघर्ष को और भी कडा कर दिया। इस प्रकार से त्रिकोणीय संघर्ष में चौथा कोण उभर कर सामने आ गया जब सुभाष मांझी माझी समाज और दलित वर्ग के मतों के बीच अपनी पैठ बना रहे थे। वही सपा के ओपी सिंह के समर्थको के दावो को देखे तो ठाकुर और भूमिहार वर्ग का समर्थन हासिल हुआ दिखाई तो देता है। इन दोनों वोट पॉकेट को देखे तो यह भाजपा के वोट बैंक में ही सेंध दिखाई देगी।
दूसरी तरफ कांग्रेस के अनिल श्रीवास्तव जो विधानसभा चुनावो में भी ताल ठोक चुके है को श्रीवास्तव मतों का भी विश्वास है। इन सबके बीच खामोश अल्पसंख्यक मतदाता किस तरफ गया इसका रुझान तो कम देखने को मिल रहा है। मगर अधिकतर की संख्या कांग्रेस के तरफ जा सकती है। अगर मतदान के उपरान्त ईवीएम में कैद हुई किस्मत खुलने पर भाजपा को कोई तगड़ा झटका लगे तो कोई बड़ी बात नही दिखाई दे रही है। मगर संघर्ष तो दिलचस्प हो चला है। शायद ढाई दशक में पहली बार वाराणसी के मेयर सीट पर ऐसा त्रिकोणीय कांटे का संघर्ष दिखाई दे रहा है।