वाराणसी नगर आयुक्त साहब….! आपके जलकल विभाग के खोखले दावो की देखे असली कहानी, एक चुल्लू बारिश के बाद पितृकुंड पर भर गया कितना सीवर का पानी, खडखड नाऊ तिराहे की आवाम कैसे गुज़ारे जिंदगानी ?

तारिक़ आज़मी

वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के नगर निगम द्वारा जलकल जीएम के दावो को सत्य मानते हुवे साफ़ सफाई और उत्तम सीवर तथा पानी की स्थिति के सम्बन्ध में खुद की पीठ थपथपाने का कोई मौका छोड़ा नही जाता है। खुद की जयकारा कहने वालो की भीड़ अपने आसपास खडी करके नगर निगम शायद सोचता है कि शहर में सभी व्यवस्था उत्तम कर रखा है उसने। इसी मुगालते में दिन गुज़रते जा रहे है। मगर ज़मीनी हकीकत से रूबरू होने वाला कोई है ही नही।

इसका जीता जागता उदाहरण देखना है तो आज हुई चुल्लू भर बारिश के बाद सीवरों की स्थिति शहर के पुराने इलाकों में देखा जा सकता है। सबसे नरकीय स्थिति में तो पितृकुंड, दालमंडी और नई सड़क इलाका रहता है। डबल इंजन के बजाये अब तो ट्रिपल इंजन होने के बाद भी विकास की धारा ऐसी बह रही है कि जर्जर सीवर अपनी असली कहानी दिखा रहा है। पितृकुंड वर्षो से नरकीय स्थिति में पहुचता जा रहा है। यहाँ तो स्थिति सीवर की ऐसी है जैसे कद से छोटी चादर हो। जहा सर ढको तो पाँव खुला और पाँव ढको तो सर खुला।

हाल कुछ पितृकुंड इलाके का ऐसा ही है। जर्जर हो चुकी सीवर की स्थिति ऐसी है कि अगर एक कोना ठीक होता है तो दूसरा कोना रोना चालू कर देता है। दूसरा ठीक होता है तो पहला रोना शुरू कर देता है। तस्वीरे गवाह है कि चुल्लू भर बारिश में किस तरीके से पितृकुंड स्थित खडखड नाऊ तिराहा से लेकर पान दरीबा तिराहे तक की स्थिति नरकीय हो गई है। ये स्थिति ऐसा नही कि बस आज की है। रोज़ की कहानी है। कभी सुबह शाम इधर से गुज़र हो तो सड़क पर लगा सीवर का पानी है।

अब आप खुद सोचे नगर आयुक्त साहब, इस नरकीय ज़िन्दगी में कैसी आवाम गुजारती अपनी ज़िन्दिगानी है। मगर आपके जलकल विभाग जीएम साहब कहते है ‘आल इज वेल’। वैसे वह वक्त और हुआ करता था जब अधिकारियों की सोच ‘निंदक नियरे राखिये’ की होती थी। उस दौर में बाबा हरदेव सिंह के मुखालफत में लिखी खबरों को वह तरजीह देते थे और लिखने वाले पत्रकार की सराहना करते थे। ऐसी स्थिति जिलाधिकारी प्रांजल यादव के कार्यकाल तक थोडा कम थी मगर कायम तो रही। अब हाल ऐसा है जब से पादुका पूजन पत्रकारिता आई है तब से अधिकारियो की सोच भी बदल गई है।

पहले कुर्सी पर बैठे अधिकारी सोचते थे ‘निदक नियरे राखिये’, मगर अब काफी आधिकारियो की सोच शायद ऐसी ही हो गई है कि ‘निंदक को देख भागिये, ससुरा बुराई बतियाये, अपनी तारीफ जब खुदही करो, आईना हमका दिखाई।’ तो ऐसे में पादुका पूजको को अधिक नज़दीक रखा जाता है। ताकि उनके जयकारो से मन प्रफुल्लित हो जाए। अब हमारे जैसे लोग बता देते है कि पितृकुंड के खडखड नाऊ तिराहे में मुख्य सीवर एक माह से अधिक समय से बजबजा रहा है। वही पादुका पूजक होगा तो कहेगा शहर चमचमा रहा है। हमारे जैसे पत्रकार बता देते है कि खडखड नाऊ तिराहा से सराय फाटक तक मार्ग गड्ढा मुक्त नही। गड्ढा युक्त है जिससे रोज़ ही कोई न कोई टोटो पलट जाती है। पादुका पूजक बतायेगा नहीं साहब, आपकी गलती नही, वह जानबूझ के पलटने आती है।

वैसे साहब  स्थिति नरकीय है ये बात हमने आपको बता दिया। वो हमारे काका हमसे कहे थे कि ‘बतिया है करतुतिया नाही।’ हमको याद है। हमारे पास भी बाते और समस्याए है। हल हमारे पास नही है वो आपके और आपके अधिनस्थो के पास है। वैसे तीन बोरिया मिटटी और 25 डमरू वाला चौका से समस्त गड्ढे भर सकते है। सीवर पर मशीन लगा कर सिल्ट अगर साफ़ करवा दिया जाए तो सीवर समस्या का समाधान हो सकता है। मगर बात फिर वही आकर रूकती है कि आखिर ये ज़हमत स्थानीय ज़िम्मेदार कर्मी और अधिकारी तो उठा नहीं रहे तो फिर करेगा कौन? वैसे बढ़िया काम तो ये भी है कि खुद ही कहे ‘आल इज वेल।’ वैसे नियमो के अनुसार हमारे पास जीएम जलकल का बयान नही है। क्योकि हमने जीएम साहब ने हमारे फोन करने पर सन्देश द्वारा बताया कि वह मीटिंग में व्यस्त है। तो हमने समस्या बता दिया है।

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