लगातार दो महीने से जारी मणिपुर में हिंसा पर बोले सीएम विरेन सिंह ‘राज्य विभाजित नही होने देंगे’, सुप्रीम कोर्ट का हुक्म ‘हिंसा पर ‘विस्तृत स्थिति रिपोर्ट’ पेश करे, पढ़े क्या है मणिपुर में हिंसा की जड़
शाहीन बनारसी
डेस्क: मणिपुर में पिछले दो महीने से जारी जातीय हिंसा के बीच मुख्यमंत्री एन0 बीरेन सिंह का एक बड़ा बयान कल सोमवार को सामने आया है जिसमे उन्होंने कहा है कि वह राज्य को विभाजित नहीं होने देंगे। इसी बीच कल सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में जारी पिछले 2 माह से हिंसा पर चिंता व्यक्त करते हुवे मणिपुर सरकार को हुक्म दिया है कि वह राज्य में पिछले दो महीने से जारी जातीय हिंसा के मद्देनजर ‘जमीनी स्थिति’ के बारे में ‘विस्तृत स्थिति रिपोर्ट’ दाखिल करे।
क्या हुक्म है सुप्रीम कोर्ट का
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि वह मामले की अगली सुनवाई 10 जुलाई को होगी। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, एक मणिपुर ट्राइबल फोरम दिल्ली और दूसरी मणिपुर विधानसभा की हिल एरिया कमेटी के अध्यक्ष द्वारा दायर की गई है। पहले याचिकाकर्ता ने कुकी समुदाय के लिए सुरक्षा की मांग की है, वहीं दूसरे याचिकाकर्ता ने मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति श्रेणी के तहत शामिल करने पर विचार करने के मणिपुर हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सीजेआई ने मौखिक रूप से कहा, ‘सॉलिसिटर जनरल से एक अपडेटेड स्थिति रिपोर्ट चाहिए। हम इसे लंबे समय तक टाल नहीं रहे हैं। इसलिए हम जानना चाहते हैं कि जमीन पर क्या कदम उठाए गए हैं। हमें एक विस्तृत स्थिति रिपोर्ट दें।’
क्या है हिंसा का मुख्य कारण और कैसी है अभी स्थिति
मणिपुर में बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग के कारण हिंसा भड़की थी, जिसे पहाड़ी जनजातियां अपने अधिकारों पर अतिक्रमण के रूप में देखती हैं। इस हिंसा में अब तक 100 से अधिक लोगो की मौत हो चुकी है, और हज़ारो लोग शरणार्थी कैम्प में सहारा लिए है। वही मणिपुर में स्थिति संभलने का नाम नही ले रही है। मणिपुर की स्थिति कुछ इस प्रकार समझा जा सकता है कि सेना ने पिछले दिनों 12 उग्रवादियों को हिरासत में लिया था। जिनके पास से अत्याधुनिक असलहे बरामद हुवे थे। इनमे एक उग्रवादी वह भी था जिसके ऊपर कई सेना के जवानो की हत्या का आरोप है। मगर भीड़ ने सेना को मजबूर कर दिया और सेना को उन उग्रवादियों को छोड़ना पड़ा।
मणिपुर में मेईतेई समुदाय आबादी का लगभग 53 प्रतिशत है और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं। आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी शामिल हैं, आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं, जो घाटी इलाके के चारों ओर स्थित हैं। यह मुद्दा तब फिर उभर गया था, जब मणिपुर हाईकोर्ट ने बीते 27 मार्च को राज्य की भाजपा नेतृत्व वाली एन। बीरेन सिंह सरकार को निर्देश दिया था कि वह मेईतेई समुदाय को एसटी में शामिल करने के संबंध में केंद्र को एक सिफारिश सौंपे।
इसी क्रम में शनिवार को भी एक बार फिर हिंसा की घटना में कम से कम 4 लोगो के मारे जाने के समाचार आये थे। वही भाजपा के 9 विधायको सहित कुल 30 विधायको ने प्रधानमन्त्री को पत्र लिखा कर कहा था कि ‘सरकार जनता के बीच अपना विश्वास खो चुकी है।’ इन सबके बीच दो दिनों पहले एक समाचार आया कि मणिपुर के सीएम विरेन सिंह इस्तीफा देंगे। मगर कथित रूप से उनके समर्थको ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया और विरेन सिंह ने स्वयं ट्वीट कर यह जानकारी साझा किया कि वह इस्तीफा नही देने वाले है।
क्या बोले सीएम एन0 विरेन सिंह
मणिपुर जारी जातीय हिंसा के बाद सत्तारूढ़ भाजपा सहित प्रदर्शनकारी कुकी विधायकों और आदिवासी संगठन अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं। मुख्यमंत्री एन0 बीरेन सिंह ने कहा कि जातीय हिंसा के पीछे अंतरराष्ट्रीय हाथ की पुष्टि या खंडन करना संभव नहीं है, लेकिन यह पूर्व नियोजित लगता है। मैं किसी भी कीमत पर अलग प्रशासन नहीं बनने दूंगा। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, बीते शनिवार (1 जुलाई) को समाचार एजेंसी एएनआई के साथ दिए गए एक इंटरव्यू में मेईतेई समुदाय के सदस्य मुख्यमंत्री एन0 बीरेन सिंह ने कहा है कि ‘मैं बिना किसी अलग प्रशासन के निर्माण के मणिपुर की क्षेत्रीय एकता को अक्षुण्ण रखने का प्रयास करूंगा। मैं एक मुख्यमंत्री के रूप में और भाजपा की ओर से अपना वचन देता हूं कि मैं एक अलग प्रशासन के निर्माण के लिए मणिपुर को विभाजित नहीं होने दूंगा और राज्य की एकता के लिए सभी बलिदान दूंगा।’
विरेन सिंह ने कहा, ‘हम एक हैं। मणिपुर एक छोटा राज्य है, लेकिन हमारे पास 34 जनजातियां हैं। इन सभी जनजातियों को एक साथ रहना होगा।’ झड़पों के पीछे के कारण के बारे में पूछे जाने पर मुख्यमंत्री ने कहा, ‘मैं उलझन में हूं कि झड़पों पीछे क्या कारण है। यह (मणिपुर) हाईकोर्ट का एक आदेश था, जिसमें राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर सिफारिशें प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था कि क्या मेईतेई को एसटी श्रेणी में शामिल किया जाना चाहिए।’ इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा कि वह भी ‘भ्रम’ में हैं और केवल वे लोग ही इस सवाल का जवाब दे सकते हैं, जिन्होंने (3 मई की) रैली का आयोजन किया था, जिसके कारण झड़पें हुईं। उन्होंने कहा, ‘हाईकोर्ट ने हमारी सरकार से इस सवाल पर चार सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा था कि मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किया जाना चाहिए या नहीं। मैंने कहा था कि आम सहमति महत्वपूर्ण है। इससे पहले कि हम कोई निर्णय ले सकें, यह सब हो गया।’
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार इंटरव्यू के दौरान मुख्यमंत्री ने विपक्षी दलों, विशेषकर कांग्रेस पर भी निशाना साधते हुए कहा, ‘हम ‘जहरीले फल’ खा रहे हैं, जिसके बीज उन्होंने बोए थे। ये समस्याएं कहां से आई हैं? ये अपनी जड़ें गहराई तक जमाए हुए हैं। ये आज की समस्याएं नहीं हैं। जो लोग कांग्रेस की तरह आरोप लगा रहे हैं, हम ‘जहरीले फल’ खा रहे हैं, जिसके बीज उन्होंने बोए थे।’ उन्होंने आगे कहा, ‘पूरी दुनिया जानती है कि गलती किसकी थी।‘
उन्होंने कहा कि ‘कुकी और मेईतेई के बीच दो-तीन साल तक जातीय संघर्ष जारी रहा, नुकसान और मौतें हुईं, इसीलिए उस समय कुकी उग्रवादियों का उभार हुआ, उन्हें 2005-2018 तक 13 वर्षों के लिए खुली छूट दी गई, इसीलिए आज ऐसा हो रहा है।’ शांति की एक और अपील करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि मणिपुर की सभी 34 जनजातियों को एक साथ रहना चाहिए, भले ही उनमें से कुछ बाद में राज्य में आए हों या मूल निवासी हों। उन्होंने कहा, ‘सभी मेईतेई, कुकी, नगा, मेईतेई पंगल और अन्य को एक साथ रहना होगा, लेकिन हमें सावधान रहना होगा कि बाहर से लोग बड़ी संख्या में यहां आकर बस न जाएं, क्योंकि इससे उन पुराने लोगों की पहचान को नुकसान पहुंच सकता है, कोई जनसांख्यिकीय असंतुलन नहीं है और यह (स्वदेशी लोगों की) आर्थिक कमजोरी का कारण बनता है।’