वाराणसी: नगर आयुक्त साहब पितृकुंड के जियापुरा की ये गलियाँ भी नगर निगम के क्षेत्र में है, जहाँ आपके सफाई कर्मी झाड़ू नही लगाते न कूड़ा उठाते है, मोहल्ले वालो को अपने हाथ से झाड़ू लगाना पड़ता है, फोटो देख ले

तारिक़ आज़मी

वाराणसी: वाराणसी नगर निगम खुद को कामयाब बता कर खुद ही अपनी पीठ थपथपाया करता है। थोडा बहुत कमी रहती है तो ‘पादुक़ा पूजक’ लोग जयकारा कह कर पूरी कर देते है। ‘साहब आप बेमिसाल है’ कहने वालो की कमी थोड़ी न है। वह वक्त कुछ और था जब अधिकारियो की सोच होती थी कि ‘निंदक नियरे राखिये’, अब तो सोच हो गई है कि ‘निदक को दुरे से भगाइए, ससुरा सच कह जाए’। सच कड़वा होता है इससे कोई इंकार नही कर सकता है।

बहरहाल, हमको क्या है? हम तो अच्छाई बताये या न बताये मगर अगर कछु कमी रह जाए है तो ज़रूरे बता देत है। मामला पितरकुंडा इलाके के जियापुरा की गलियों का है। इन गलियों में सफाई कर्मियों द्वारा झाड़ू लगाया जाना तो दूर रहा, कूड़ा भी सप्ताह में एक बार उठता है। वह भी स्थानीय निवासी जब बड़ी जी-हुजुरी करे है तो सफाई कर्मी उठा लेते है। झाड़ू की बात जहां तक रही तो भाई इन गलियों का बनारस देखने कौन आता है? इसीलिए झाड़ू नही लगता है। अब गलियाँ गन्दी हो जा रही है तो मोहल्ले वाले अपने अपने हिस्से की गलियों को खुद ही झाड़ू देकर साफ़ कर दे।

यह कही दूर दराज़ के नए नवेले वार्ड में जुडा हुआ इलाका नही है। ये है जियापुरा जहा भवन संख्या सी 10/50 से लगायत सी0 10/67 तक के भवनों के आगे की गलियों की स्थिति है। तस्वीरे गवाह है कि कैसे मोहल्ले वाले घर के बाहर की गलियों में खुद से झाड़ू लगा कर सफाई करते है। कर भी और क्या सकते है। कहा जाए और कहा कहे ? अल्लामा इकबाल का शेर है कि ‘इकबाल कोई महरम अपना नही जहाँ में, जाकर किसके सुनाये दर्द-ए-नेहा हमारा’, तो बस ऐसे ही इन गलियों का कोई पुरसाहाल नही है।

स्थानीय निवासियों का आरोप है कि हफ्ते में एक दिन कूड़ा उठ जाता है वह भी सफाई सुपरवाईजर से काफी गुहार लगाने के बाद। शायद हो सकता है कि सफाई के सुपरवाइज़र साहब सुपर से दुई तल्ला ऊपर के वाइज़र हो, तभी थोडा रहम कर देते होंगे कि हफ्ते में एक दिन कूड़ा उठवा देते है। भाई काम तो कर रहे है भले कागज़ पर घोड़े ही दौड़ा कर काम चल रहा है, मगर काम तो चल रहा है न? फिर क्या फर्क पड़ता है कि कूड़ा उठा या नही उठा। कागज़ पर उठ गया यही बहुत है।

स्थानीय निवासियों का आरोप है कि झाड़ू तो त्योहारों पर नही लगता है तो आम दिनों में कैसे लगेगा? खुद ही हम लोग अपने अपने घरो के आगे की गलियों को झाड़ू लगा कर साफ़ कर देते है। अब स्थिति आप समझ सकते होंगे कि कैसी होगी। एक जानकार जो इस मोहल्ले के नही है ने हमको एक शब्द बोला जो समझ में नहीं आया मुझे, हो सकता है कि सफाई के सुपरवाईज़र साहब समझा दे। उन्होंने कहा कि ‘दस्तूरी का फितूरी है, तीन के बजाये एक से काम इसीलिए मज़बूरी है।’ वैसे सुपरवाइजर साहब, गन्दगी से मोहल्ला बजबजा रहा है, तनिक सफाई करवा कर वो जो सफ़ेद सफ़ेद पाउडर होता है, वही जिसको डीडीटी आप लोग कहते है छिड़कवा दे, मोहल्ले वाले दुआ देंगे।

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