केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा लोक सभा में पेश किया गया IPC, CRPC और साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले विधेयक, राजद्रोह अपराध नहीं रहेगा, पढ़े और क्या बदल सकता है?
तारिक खान
डेस्क: केंद्र सरकार ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम में संशोधन करने और बदलने के लिए लोकसभा में तीन विधेयक पेश किए। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ‘भारतीय न्याय संहिता, 2023 (अपराधों से संबंधित प्रावधानों को समेकित और संशोधित करने के लिए और उससे जुड़े या उसके आकस्मिक मामलों के लिए) तथा ‘भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (दंड प्रक्रिया से संबंधित कानून को समेकित और संशोधित करने और उससे जुड़े या उसके प्रासंगिक मामलों के लिए)’ एवं ‘भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 (निष्पक्ष सुनवाई के लिए साक्ष्य के सामान्य नियमों और सिद्धांतों को समेकित करने और प्रदान करने के लिए)।‘
ये कानून भारत में अपराधों के अभियोजन प्रक्रिया की नींव हैं। कौन सा कृत्य अपराध है और उसके लिए क्या सज़ा होनी चाहिए ये भारतीय दंड संहिता के तहत तय होता है। दंड प्रक्रिया संहिता में गिरफ़्तारी, अन्वेषण और मुकदमा चलाने की विधि लिखी हुई है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम बताता है कि केस के तथ्यों को कैसे साबित किया जाएगा, बयान कैसे दर्ज होंगे और सबूत पेश की जिम्मेदारी (बर्डन ऑफ़ प्रूफ़) किस पर होगी। गृह मंत्री का कहना है कि ये क़ानून उपनिवेशवाद की विरासत हैं और इन्हें आज के हालात के अनुकूल बनाया जाएगा। बिल पेश करते हुए अमित शाह ने कहा, ‘1860 से 2023 तक अंग्रेजों के बने हुए क़ानून के आधार पर इस देश की आपराधिक न्याय प्रणाली चलती रही। इसकी जगह भारतीय आत्मा के साथ ये तीन क़ानून स्थापित होंगे और हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली के अंदर बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा।’
क्या होंगे बदलाव
- भारतीय न्याय संहिता बिल, 2023′ को पेश करने की वजह क़ानून व्यवस्था को मज़बूत बनाना और कानूनी प्रक्रिया का सरलीकरण बताया गया है।
- इंडियन एविडेंस एक्ट को हटाकर ‘भारतीय साक्ष्य अधिनियम’ लाने वाले बिल में लिखा है कि मौजूदा क़ानून पिछले कुछ दशकों में देश में हुई टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में तरक्की से मेल नहीं खाता इसलिए इसे बदलने की ज़रूरत है।
- सीआरपीसी को हटाकर ‘भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023’ नामक विधेयक संसद में पेश हुआ है। इसका उद्देश्य न्याय प्रक्रिया में देरी को रोकना बताया गया है।
- कहा गया है कि नये कानून में केस के निपटारे की टाइमलाइन होगी और इसमें फ़ॉरेंसिक साइंस के इस्तेमाल का भी प्रावधान होगा।
- अपने भाषण में अमित शाह ने कहा कि भारत में इस समय कन्विक्शन रेट काफ़ी कम है। फ़ॉरेंसिक साइंस की मदद से सरकार इसे 90 फ़ीसदी तक ले जाना चाहती है।
- इन तीनों विधेयकों में मौजूदा तीनों क़ानून में कई परिवर्तन करने के प्रावधान हैं। इसके तहत राजद्रोह को अब अपराध नहीं माना जाएगा।
- मई, 2022 में राजद्रोह के कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। तब अदालत ने कहा था कि सरकारों को इस क़ानून के तहत कोई कठोर कार्रवाई नहीं करनी चाहिए।
- हालांकि नए क़ानून के सेक्शन 150 के तहत एक नया अपराध जोड़ा गया है। इसके तहत भारत से अलग होने, पृथकावादी भावना रखने या भारत की एकता एवं संप्रभुता को ख़तरा पहुँचाने को अपराध बताया गया है।
- इसके लिए उम्र कैद या सात वर्ष की सज़ा के प्रावधान का प्रस्ताव है। मौजूदा राजद्रोह क़ानून में उम्र कैद या तीन साल की सज़ा का प्रावधान है।
- कई अपराधों को जेंडर-न्यूट्रल बना दिया गया है। साथ ही कुछ नए अपराध भी जोड़े गए हैं। इसमें सिंडिकेट क्राइम भी शामिल किया गया है। इसके अलावा बम बनाने को भी अपराध बनाया गया है।
- हत्या की परिभाणा में पांच या उससे अधिक लोगों द्वारा जाति या धर्म के आधार पर मॉब लिंचिग को शामिल किया गया है।
- इसके अलावा पहली बार कम्यूनिटी सर्विस को बतौर सज़ा के शामिल किया जा रहा है। अमित शाह ने कहा कि अब भी कम्यूनिटी सर्विस की सज़ा दी जाती है लेकिन इसका क़ानून में प्रावधान नहीं है। नए क़ानून में इसका प्रावधान होगा।
- कई अपराधों की सज़ा में भी बढ़ोतरी की गई है। मसलन गैंग रेप के मामले में फ़िलहाल कम से कम दस वर्ष की सज़ा का प्रावधान है। अब इसे बढ़ाकर बीस वर्ष किया जा रहा है।
- साक्ष्य क़ानून में अब इलेक्ट्रॉनिक इंफ़ोर्मेशन को शामिल किया गया है। साथ ही गवाह, पीड़ित और आरोपी अब इलेक्ट्रॉनिक तरीके सभी अदालत में पेश हो सकेंगे। अमित शाह ने कहा कि परिवर्तनों के साथ चार्जशीट दाख़िल करने से लेकर ज़िरह तक ऑनलाइन ही मुमकिन होगी।
- नए विधेयक में फ़ॉरेंसिक के इस्तेमाल और मुकदमे की सुनवाई की टाइमलाइन भी तय कर दी गई है। मिसाल के तौर पर सेशन कोर्ट में किसी केस में ज़िरह पूरी होने के बाद, तीस दिन के भीतर जजमेंट देना होगा। इस डेडलाइन को 60 दिन तक बढ़ाया जा सकता है।
- फ़िलहाल इसके लिए कोई समय सीमा तय नहीं है। इसके अलावा अब अदालतों को 60 दिन के भीतर चार्ज फ्रेम करने होंगे। नए बिल में सर्च के दौरान वीडियोग्राफ़ी का भी प्रावधान है।
ये अहम है कि तीनों विधेयक संसद की स्टैंडिंग कमिटि के पास भेजे गए हैं। मई 2020 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इन तीन कानूनों में परिवर्तन सुझाने के लिए एक कमेटी का गठन किया था। इसके बाद कई रिटायर जजों, वरिष्ठ वकीलों और रिटायर ब्यूरोक्रेट्स ने कमेटी को अपने विचार भेजे थे। उनका कहना था कि कमेटी में विविधता का अभाव है और इसे पारदर्शी तरीके से काम करना चाहिए।
अब बिल संसदीय समिति के सामने हैं जहां विपक्ष इन पर अपनी राय रखेगा। इन बिलों को लॉ कमिशन के पास भी भेजा जाएगा। इसके बाद ही इन्हें संसद में दोबारा लाया जाएगा, जहाँ इनपर बहस होगी और फिर इन्हें पारित किया जा सकेगा। एक बार अंतिम प्रारूप सामने आए तभी पता चलेगा कि इन परिवर्तनों का मौजूद मुकदमों पर क्या असर पड़ेगा। संविधान के अनुच्छेद 20 के अनुसार किसी व्यक्ति को केवल उस चीज़ के लिए दोषी ठहराया जा सकता है जो घटना के समय अपराध थी। इसलिए जो भी बदलेगा वो भविष्य में होने वाले अपराधों के लिए ही बदलेगा।