मणिपुर के वायरल वीडियो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के डीजीपी को अगली सुनवाई पर निजी तौर पर हाज़िर रहने का दिया हुक्म, पुलिस जाँच को कहा ‘धीमा और बेहद सुस्त’, पढ़े क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
शाहीन बनारसी
डेस्क: मणिपुर के वायरल वीडियो मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नाराज़गी जताते हुए कहा कि राज्य में कानून व्यवस्था और संविधानिक मशीनरी पूरी तरह से चरमरा गई है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने राज्य पुलिस की जांच को ‘धीमा’ और ‘बेहद सुस्त’ करार दिया। मणिपुर में बेलगाम जातीय हिंसा के लिए राज्य की क़ानून लागू करने वाली एजेंसियों को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने क़ानून और व्यवस्था पर अपना नियंत्रण पूरी तरह से खो दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए मणिपुर के पुलिस महानिदेशक को अगली सुनवाई पर निजी तौर पर हाजिर रहने का हुक्म दिया है।
मणिपुर में दो महिलाओं की नग्न परेड से जुड़े वीडियो को सुप्रीम कोर्ट ने ‘बेहद तकलीफदेह’ बताते हुए कहा है कि इस घटना को लेकर एफआईआर दर्ज किए जाने में बहुत देरी की गई। इस वीडियो के सामने आने के बाद जातीय हिंसा से जूझ रहे मणिपुर में तनाव बढ़ गया था। चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने एक मौखिक टिप्पणी में कहा, ‘एक चीज़ तो बहुत साफ़ है कि वीडियो केस में एफआईआर दर्ज करने में बहुत देरी की गई।’
समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, सुनवाई की शुरुआत में मणिपुर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि राज्य में मई में जातीय हिंसा की शुरू होने के बाद 6,523 एफआईआर दर्ज की गई हैं। इस केस में केंद्र सरकार और मणिपुर राज्य की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बेंच को बताया कि महिलाओं की नग्न परेड के मामले में राज्य पुलिस ने ज़ीरो एफआईआर दर्ज की थी।
तुषार मेहता ने बताया कि इस केस में मणिपुर पुलिस ने अब तक सात लोगों को गिरफ्तार किया है जिसमें एक किशोर भी शामिल है। उन्होंने कोर्ट को ये भी बताया कि राज्य पुलिस ने वीडियो के सामने आने के बाद पीड़ित महिलाओं के बयान दर्ज किए थे। केस की सुनवाई फिलहाल जारी है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को मणिपुर यौन हिंसा मामले में मंगलवार की सुनवाई पूरी होने तक महिलाओं के बयान दर्ज नहीं करने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने अपने निर्देश में सीबीआई से कहा है कि आज की सुनवाई पूरी होने तक वो पीड़ित महिलाओं से बातचीत न करे और न उनके बयान ही दर्ज करे। पीड़ित मणिपुरी महिलाओं के वकील निज़ामुद्दीन पाशा ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि मंगलवार को दोपहर दो बजे इस मामले की सुनवाई है, इसलिए ये बेहतर रहेगा कि सुनवाई से पहले उनके मुवक्किल के बयान दर्ज न किए जाएं। मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच बीते ढाई महीनों से जारी हिंसक संघर्ष के बीच 19 जुलाई को मणिपुर की दो महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न का एक भयावह वीडियो सामने आया।
20 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब संसद के मॉनसून सत्र से पहले मीडिया से बात करने आए तो उन्होंने भी मणिपुर की घटना का ज़िक्र करते हुए कहा कि उनका हृदय पीड़ा से भरा हुआ है। पीएम मोदी ने कहा कि देश की बेइज्जती हो रही है और दोषियों को बख़्शा नहीं जाएगा। यह पहली बार था जब प्रधानमंत्री मोदी ने मणिपुर में जारी हिंसा पर कुछ कहा है। विपक्ष मणिपुर पर पीएम मोदी के न बोलने को लेकर लंबे समय से सवाल उठा रहा था।
मणिपुर पुलिस ने इस वीडियो की पुष्टि करते हुए बताया है कि ये महिलाएं बीती चार मई को मणिपुर के थोबल ज़िले में यौन उत्पीड़न की शिकार हुई थीं। राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने कहा है कि वह दोषियों को फांसी की सज़ा दिलवाने की कोशिश करेंगे। मणिपुर में मई के महीने से ही जातीय संघर्ष की स्थिति बनी हुई है। इस हिंसा में अब तक कम से कम 130 लोगों की मौत हो चुकी है और 60 हज़ार से अधिक लोगों को मजबूर होकर अपना घर-बार छोड़ना पड़ा है।