ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इन्तेज़मियां मसाजिद कमेटी के एस0एम0 यासीन ने कहा ‘अपना बनारस साझी विरासत की मिसाल है कि हम 17 सालो से उस मुक़दमें में नामज़द हिन्दू मुस्लिम सभी की पैरवी कर रहे है’
तारिक़ आज़मी
वाराणसी: विगत दिनों से ज्ञानवापी मस्जिद की देख रेख करने वाली संस्था अंजुमन इन्तेज़मियां मसाजिद कमेटी द्वारा ‘अपना बनारस, साझी विरासत’ कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत अंजुमन के प्रतिनिधि मंडल द्वारा शहर-ए-बनारस की साझी विरासत जिसको गंगा जमुनी तहजीब कहा जाता है कि धरोहर को बचाए रखने के लिए शहर के संभ्रांत नागरिको से मुलाकात का दौर जारी है।
इस क्रम में आज अंजुमन के संयुक्त सचिव एसएम यासीन ने बनारस के गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल रहे एक घटना का उल्लेख किया। उन्होंने स्मरण करते हुवे बताया कि ‘आज से लगभग 17 वर्ष पूर्व शुक्रवार के दिन मुफ़्ती मौलाना अब्दुल बातिन साहब ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज़ अदा कराने जा रहे थे। तभी चेकिंग पर तैनात एक पुलिसकर्मी ने अभद्रता करते हुए पीछे से उनका कपड़ा खींच लिया। इसके विरोध में प्रदर्शन शुरू हो गया। उस समय मुसलमानों के साथ हिन्दू भी बड़ी तादाद में एकत्रित हो गए थे।’
उन्होंने बताया कि ‘पुलिस द्वारा भीड़ को तितर-बितर करने के लिए बल प्रयोग करना पड़ा और लगभग 14 हिन्दू-मुस्लिमानों पर झूठे मुक़दमात क़ायम किए। इनमें मुख्य रूप से शंकर गिरी, गुलशन कपूर, राजेन्द्र तिवारी, भानु मिश्रा आदि थे। मुसलमानों में एजाज मोहम्मद, शेर अली, गुलशेर, शमशेर, जहांगीर आदि के विरुद्ध संगीन धाराओॅ में मुकदमा कायम हुआ था। इन सब के मुकदमात की पैरवी का ज़िम्मा अंजुमन मसाजिद ने लिया और वकील के रूप में श्रीनाथ त्रिपाठी अभी तक पैरवी कर रहे हैं।‘
उन्होंने बताया कि ‘17साल का अर्सा और इतने लोगो की पैरवी अंजुमन मसाजिद अपने दम पर कर रही है। यह साझी विरासत की एक जिंदा मिसाल है। हर समाज में अच्छे बुरे होते हैं। लेकिन हमारा मानना है कि हमारे बनारस में अच्छों की तादाद ज़्यादा है। तुक्ष राजनीतिक, आर्थिक स्वार्थ के लिए भेदभाव पैदा करने वाले कभी कामयाब नहीं होंगे। हम सब होने भी नहीं देंगे। इसी उद्देश्य से अंजुमन मसाजिद काम कर रही है। बस हकीकत तो यही है कि “लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया।“ हम शहर बनारस के अमन पसंद शहरियों से अपने हक में दुआ की दरखास्त करते है। मैं इस साझी विरासत का अदना सा सिपाही हूँ।‘