लगभग विपक्ष विहीन हो चुके सदन में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता, साक्ष्य विधेयक लोकसभा में पेश करते हुवे पुरानी सभी सरकारों पर साधा जमकर निशाना
तारिक़ खान
डेस्क: पुराने सभी सरकारों पर निशाना साधते हुवे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आज बुधवार को संसद में आपराधिक क़ानूनों में संशोधन के लिए तीन नए विधेयक पेश किए हैं। लोकसभा में अपने भाषण के दौरान उन्होंने कहा कि सन् 1860 में बनने वाली भारतीय दंड संहिता का उद्देश्य, न्याय देना नहीं, दंड देना था।
पुराने क़ानूनों की जगह लेने वाले क़ानून
- भारतीय दंड संहिता, 1860 की जगह भारतीय न्याय संहिता लेगा।
- सीआरपीसी, 1998 की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 अमल में आएगा।
- भारतीय साक्ष्य क़ानून, 1872 की जगह भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 अमल में आएगा।
अमित शाह ने कहा कि ये क़ानून, एक विदेशी शासक की ओर से अपने शासन को बनाए रखने के लिए बनाए गए क़ानून थे, एक ग़ुलाम प्रजा पर शासन करने के लिए बनाए गए क़ानून थे और इसकी जगह अब ये जो क़ानून आ रहे हैं, वो हमारे संविधान के तीन मूल चीज़ें व्यक्ति की स्वतंत्रता, मानव के अधिकार, और सबके साथ समान व्यवहार के आधार पर बनाए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इन वर्तमान क़ानूनों में न्याय की कल्पना ही नहीं है, दंड देने की बात को ही न्याय माना जाए। हमारे विचारों में दंड की कल्पना न्याय से उपजी है। उन्होंने कहा कि ‘अभी हम जो क़ानून निरस्त करने जा रहे हैं, उनमें मानव वध और किसी महिला के साथ अत्याचार से पहले सरकारी ख़जाना लूटने की सज़ा, रेलवे की पटरी उखाड़ने की सज़ा, और ब्रिटिश ताज के अपमान की सज़ा को रखा गया है।’
अमित शाह ने विपक्ष विहीन लगभग हो चुके सदन में तीनो विधेयक पेश करते हुवे कहा कि ‘प्राथमिकता अत्याचार और दुर्व्यवहार की पीड़ित महिला को न्याय दिलाना नहीं था, प्राथमिकता ख़जाने, रेलवे की रक्षा के साथ ही ब्रिटिश राज की सलामती थी। अब इसे बदलकर महिलाओं और बच्चों के ख़िलाफ़ अपराध को प्राथमिकता दी गयी है।’