मुहब्बत की इसी मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते है: ज्ञानवापी मस्जिद के 1991 के मुक़दमे में वादी हरिहर पाण्डेय का निधन, सुचना पर शोक संतप्त परिवार को सान्तवना देने गये ज्ञानवापी मस्जिद की देख रेख करने वाली संस्था अंजुमन इन्तेजामियां कमेटी के पदाधिकारी

तारिक़ आज़मी

वाराणसी: गंगा जमुनी तहजीब की नगरी काशी में सांझी वरासत हर लम्हा अपनी झलक दिखाया करती है। ‘नगरी है काशी नगीना, कोई आता है चार दिन को, मगर यहाँ की मुहब्बत देख रह जाता है महिना।’ बेशक यह लफ्ज़ हंसी मजाक में लोग एक दुसरे से कहते है। मगर हकीकत तो यही है कि यहाँ की मुहब्बत दुनिया में बेमिसाल है। भले लाख कोशिशे हो कि ये मुहब्बत तकसीम हो जाये। मगर होती नही है। आज भी कलीम के अबीर और गुलाल से होली मनाने वाली काशी, राजेश की सिवई से ईद मनाती है।

फाइल फोटो: हरिहर पाण्डेय

आज इसका एक जीता जागता उदाहरण देखने को मिला जब ज्ञानवापी मस्जिद के मुताल्लिक चल रहे सबसे पुराने केस जो वर्ष 1991 में वाद संख्या 610 के तौर पर दाखिल हुआ था, और इसमें चार वादी मुकदमा थे। उस वाद के आखरी वादी हरिहर पाण्डेय का निधन हो गया। लम्बे समय से विभिन्न बीमारियों से ग्रसित हरिहर पाण्डेय के निधन का समाचार शहर में शोक की लहर लेकर आया। समाचार मिलते ही ज्ञानवापी मस्जिद की देख रेख करने वाली संस्था अनुमान इंतेजामिया मसाजिद कमेटी का एक प्रतिनिधि मंडल शोक संतप्त परिवार को सन्तवना देने उनके आवास औरंगाबाद पंहुचा और परिजनों को इस दुख के लम्हे को सहन करने की शक्ति देने की दुआ किया।

पंडित हरिहर पाण्डेय के निधन की सुचना पर उनके आवास पर शोक संतप्त परिजनों को सन्तवना देने पहुचे अंजुमन इन्तेजामियाँ मसाजिद कमेटी का प्रतिनिधिमंडल

अंजुमन इन्तिज़ामिया मसजिद कमेटी के प्रतिनिधिमंडल में अंजुमन के संयुक्त सचिव एसएम यासीन सहित एड0 एखलाक अहमद और शमशेर अली आदि शामिल थे। आवास पर परिजनों को सन्तवना देने के उपरांत अंजुमन के संयुक्त सचिव एसएम यासीन ने हरिहर पाण्डेय के पुत्र एड0 प्रणय पाण्डेय को सन्देश भेज कर दुःख व्यक्त किया। एसएम यासीन ने एड0 प्रणय पाण्डेय को लिखे सन्देश में लिखा कि ‘आदरणीय भाई साहब, आदाब…! आज पांडेय जी के देहांत का दुखद समाचार मिला, बहुत दुख हुआ ईश्वर से प्रार्थना है कि मरहूम की आत्मा को शान्ति प्रदान करे और पूरे परिवार को इस अपूर्णीय क्षति को सहन करने की शक्ति प्रदान करे। मैं एड0 एख़लाक अहमद, तथा शमशेर अली सदस्य अंजुमन इन्तज़ामिया मसाजिद कमेटी के साथ आप के आवास पर उपस्थित हुआ था, परन्तु आप लोग घाट के लिए प्रस्थान कर गए थे। अफसोस हुआ। इस दुःख की घड़ी में हम सब आपके साथ है।’

अब आप समझ सकते है कि काशी की सांझी वरासत जिसको ‘तानी बाने का रिश्ता’ कहा जाता है, कितना मजबूत है। अमूमन लोग एक दुसरे से मामूली मुद्दों पर मनमुटाव के बाद बातचीत बंद कर देते है। मगर काशी की सांझी वरासत और मुहब्बत है कि एक दुसरे के सुख दुःख पर सभी खड़े रहते है। कही इस बात का किताबो में उल्लेख तो नही है कि ‘मुहब्बत’ शब्द का जन्म कहा हुआ था। मगर काशी की सांझी वरासत देख कर आप कह सकते है कि बेशक ‘मुहब्बत और आपसी इकराहित (भाईचारा)’ का जन्म काशी में हुआ होगा।

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