महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने कहा वह हाजी मलंग दरगाह की ‘मुक्ति’ के लिए प्रतिबद्ध हैं, बोले दरगाह के ब्राह्मण ट्रस्टी चन्द्रहास केतकर ‘राजनितिक लाभ के लिए दरगाह को मन्दिर बताया जा रहा है’

तारिक़ आज़मी

डेस्क: महाराष्ट्र के ठाणे जिले में माथेरान पहाड़ी श्रृंखला पर समुद्र तल से 3,000 फीट ऊपर एक पहाड़ी किले मलंगगढ़ के सबसे निचले पठार पर स्थित यमन के 12वीं शताब्दी के सूफी संत हाजी अब्द-उल-रहमान जिन्हें हाजी मलंग बाबा के रूप में भी जाना जाता है की मजार जिसको हाजी मलंग बाबा का के रूप में पहचाना जाता है आजकल महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे के बयान के बाद चर्चा का केंद्र बनी हुई है।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे मगलवार को सदियों पुरानी हाजी मलंग दरगाह जिसके मंदिर होने का दक्षिणपंथी समूह दावा करते हैं पर कहा था कि वह उस की ‘मुक्ति’ के लिए प्रतिबद्ध हैं। एकनाथ शिंदे के इस बयान पर अब दरगाह के हिन्दू ट्रस्टीयो ने भी विरोध जताते हुवे इसको राजनैतिक लाभ लेने के लिए इस विवाद को तुल दिया जा रहा है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, दरगाह के तीन सदस्यीय ट्रस्ट के दो ट्रस्टियों में से एक चंद्रहास केतकर, जिनका परिवार पिछली 14 पीढ़ियों से दरगाह का प्रबंधन कर रहा है, ने कहा है कि ‘जो कोई भी दरगाह के मंदिर होने का दावा कर रहा है, वह ऐसा राजनीतिक लाभ के लिए कर रहा है। राजनेता अब इस विवाद को सिर्फ अपने वोट बैंक को आकर्षित करने और एक राजनीतिक मुद्दा खड़ा करने के लिए उछाल रहे हैं।’

उन्होंने कहा, ‘1954 में सुप्रीम कोर्ट ने केतकर परिवार के भीतर दरगाह के नियंत्रण से संबंधित एक मामले में टिप्पणी की थी कि दरगाह एक मिश्रित संरचना है, जिसे हिंदू या मुस्लिम कानून से शासित नहीं किया जा सकता है, बल्कि केवल इसके अपने विशेष रीति-रिवाजों या ट्रस्ट के सामान्य कानून द्वारा शासित कर सकते हैं। राजनेता अब इस विवाद को सिर्फ अपने वोट बैंक को आकर्षित करने और एक राजनीतिक मुद्दा खड़ा करने के लिए उछाल रहे हैं।’ ट्रस्टी परिवार से ही ताल्लुक रखने वाले अभिजीत केतकर के अनुसार, हर साल हजारों लोग अपनी मन्नत पूरी करने के लिए यहां आते हैं।

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में वर्तमान ट्रस्टी चंद्रहास केतकर ने कहा, ‘हमारे ट्रस्ट बोर्ड में पारसी, मुस्लिम और हिंदू समुदायों के साथ-साथ स्थानीय कृषि समुदाय के सदस्य भी थे। हालांकि 2008 के बाद से ट्रस्ट में कोई नई नियुक्ति नहीं हुई है।’ यह दरगाह, जिसे कई लोग महाराष्ट्र की समन्वयवादी संस्कृति का प्रतिनिधि मानते हैं, विवादों से अछूती नहीं रही है। शिंदे के राजनीतिक गुरु आनंद दीघे 1980 में इस संबंध में आंदोलन करने वाले पहले व्यक्ति थे, जिनका दावा था कि इस इमारत की जगह पर योगियों के एक संप्रदाय नाथ पंथ से संबंधित एक पुराना हिंदू मंदिर ‘मछिंद्रनाथ मंदिर’  हुआ करता था।

साल 1996 में वह यहां पूजा करने के लिए 20,000 शिवसैनिकों को मंदिर में ले जाने पर अड़ गए थे। उस वर्ष तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी के साथ-साथ शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे भी पूजा में शामिल हुए थे। तब से सेना और दक्षिणपंथी समूह इस इमारत को श्री मलंगगढ़ के नाम से पुकारते हैं। 1990 के दशक में सत्ता में आने पर इस मुद्दे को शिवसेना ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था, लेकिन अब शिंदे ने इस मुद्दे को फिर से हवा देने का फैसला किया है।

दरगाह पर पहला विवाद 18वीं शताब्दी में शुरू हुआ, जब स्थानीय मुसलमानों ने इसका प्रबंधन एक ब्राह्मण द्वारा किए जाने पर आपत्ति जताई थी। बाद में तत्कालीन स्थानीय प्रशासक ने 1817 में ‘लॉटरी निकालकर’ इस विवाद का निपटारा किया। गजट में कहा गया है कि लॉटरी काशीनाथ पंत के पक्ष में निकली और वे संरक्षक घोषित किए गए थे। तब से केतकर हाजी मलंग दरगाह ट्रस्ट के वंशानुगत ट्रस्टी हैं और दरगाह के रखरखाव में उनकी भूमिका रही है। ऐसा कहा जाता है कि ट्रस्ट में हिंदू और मुस्लिम दोनों सदस्य हैं, जो सौहार्द्रपूर्ण तरीके से काम करते हैं।

इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में दरगाह के इतिहास पर भी प्रकाश डाला है और बताया है कि इसका उल्लेख विभिन्न ऐतिहासिक अभिलेखों में मिलता है, जिसमें 1882 में प्रकाशित बॉम्बे प्रेसीडेंसी का गजट भी शामिल है। इसमें कहा गया है कि दरगाह अरब मिशनरी हाजी अब्द-उल-रहमान, जो हाजी मलंग के नाम से लोकप्रिय थे, के सम्मान में बनाई गई थी। कहा जाता है कि स्थानीय शासक नल राजा के शासनकाल के दौरान सूफी संत यमन से कई अनुयायियों के साथ आए थे और पहाड़ी के निचले पठार पर बस गए थे।

दरगाह का बाकी इतिहास पौराणिक कथाओं से ओत-प्रोत है और स्थानीय स्तर पर दावा किया जाता है कि नल राजा ने अपनी बेटी की शादी सूफी संत से की थी। दरगाह परिसर के अंदर हाजी मलंग और मां फातिमा दोनों की कब्रें स्थित हैं। बॉम्बे प्रेसीडेंसी के गजट में कहा गया है कि इमारत और कब्रें 12वीं शताब्दी से अस्तित्व में हैं और पवित्र मानी जाती हैं। गजट में इसका भी उल्लेख है कि 18वीं शताब्दी में मराठा संघ ने भी ब्राह्मण काशीनाथ पंत केतकर से दरगाह में प्रसाद भेजा था। वहीं, काशीनाथ पंत ने इसकी मरम्मत कराई थी और इमारत का प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया था।

हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को कॉर्पोरेट के दबाव से मुक्त रखने के लिए आप आर्थिक सहयोग यदि करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें


Welcome to the emerging digital Banaras First : Omni Chanel-E Commerce Sale पापा हैं तो होइए जायेगा..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *