नागरिकता संशोधन क़ानून की अधिसूचना जारी होने पर कही विरोध तो कही समर्थन के उठे सुर
ए0 जावेद
डेस्क: नागरिकता संशोधन क़ानून के तहत नियमों की अधिसूचना जारी होते ही इसके समर्थन और विरोध दोनों ही होने शुरू हो गए है। इस कानून के विरोध में पूर्वोत्तर के राज्य इसका विरोध कर रहे है। असम में स्थानीय संगठन आसू ने विरोध में प्रदर्शन करने की चेतावनी दिया है। वही ममता बनर्जी ने कहा है कि वह इसको लागू नही होने देंगी और इसका विरोध करेगी।
इसके स्वागत के क्रम में राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने एक्स पर लिखा, ‘मोदी जी की गारंटी यानी गारंटी पूरी होने की गारंटी। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व वाली भारत सरकार के नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लागू करने का निर्णय अभिनंदनीय है।’
उन्होंने कहा कि ‘सीएए एक मानवीय कानून है जिसके माध्यम से पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान के पीड़ित हिंदू एवं अल्पसंख्यक समुदाय को गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करते हुए भारत की नागरिकता के उनके वर्षों के सपने को साकार करने की दिशा प्रशस्त होगी।’ राजस्थान में पाकिस्तान से विस्थापित करीब 25 हज़ार लोगों को सीएए के तहत नागरिकता मिलेगी। इनकी सर्वाधिक संख्या जोधपुर में है, इसके बाद जैसलमेर, जयपुर और बाड़मेर में।
अयोध्या से वापस जयपुर पहुंचे सीएम ने एयरपोर्ट पर पत्रकारों से कहा, ‘आजादी के बाद हमारे जो हमारे भाई पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से प्रताड़ित होकर आए थे। उन लोगों को सहायता प्रदान करने के लिए मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को धन्यवाद देना चाहता हूं।’
क्या है नागरिकता संशोधन कानून ?
नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019, 11 दिसंबर 2019 में संसद में पारित किया गया था। इसका मक़सद पाकिस्तान,अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न की वजह से भारत आए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसी और ईसाई अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देना है। इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया है।
यही इस विवाद की वजह है। विपक्ष का कहना है कि ये संविधान के अनुच्छेद के 14 का उल्लंघन जो सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है। एक तरफ़ ये कहा जा रहा है कि ये धार्मिक उत्पीड़न के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की कोशिश है वहीं दूसरी ओर मुस्लिमों का आरोप है कि इसके ज़रिये उन्हें बेघर करने के क़दम उठाए जा रहे हैं।
इस क़ानून पर धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करने के आरोप लगाए गए हैं। भारतीय संविधान के अनुसार देश में किसी के साथ भी धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। लेकिन इस क़ानून में मुसलमानों को नागरिकात देने का प्रावधान नहीं है। इसी वजह से धर्मनिरपेक्षता के उल्लंघन के आरोप लगाए जा रहे हैं।