वाराणसी पुलिस के साथ मारपीट मामले में नामज़द 3 अभियुक्तों को मिली जमानत, अदालत में पेश नही कर सकी एसीपी दशाश्वमेघ की पुलिस सीसीटीवी फुटेज, कई अधूरे सवाल क्या एसीपी साहिबा तलाशेगी इसका जवाब?

अनुराग पाण्डेय

वाराणसी: वाराणसी की दशाश्वमेघ एसीपी साहिबा और उनकी टीम अवाम के सुरक्षा हेतु बड़े दावे करती है। मगर दूसरी तरफ उनके खुद के एक नवजवान दरोगा को बीच सड़क पर अपनी इज्ज़त उतरवानी पड़ी। उसको उन्मादी युवको ने पीटा, ऍफ़आईआर के अनुसार जानलेवा हमला किया। जिसका वीडियो जमकर वायरल हुआ। कल इसके 3 अन्य नामज़द अभियुक्तों को अदालत ने ज़मानत दे दिया है।

ज़मानत पर बाहर आकर अब भौकाल तो जमेगा ही। आखिर एक दरोगा जो वर्दी में है के साथ मारपीट करने के बाद भी कठोर कार्यवाही की बात तो कहा गया मगर कितनी कठोर कार्यवाही पुलिस ने किया इसका एक जीता जागता सबूत ये है कि नामज़द अभियुक्तों में किसी को गिरफ्तार नही कर पाई पुलिस और 19 ठिकानों पर छापेमारी की बात कहती रही।

सभी 4 अभियुक्तों ने अदालत में समर्पण कर दिया। पुलिस के दावे कड़ी कार्यवाही के कैसे रहे होंगे कि एक भी अभियुक्त की वह एक घंटे भी रिमांड नही ले सकी। यही नहीं पहले अभियुक्त की ज़मानत के बाद अब तीन अन्य अभियुक्तो की ज़मानत हो गई है। अदालत ने सभी 3 आरोपियों की जमानत मंजूर करते हुवे कहा है कि पुलिस सीसीटीवी फुटेज नही पेश की है।

जबकि एसीपी दशाश्वमेघ की पुलिस का दावा है कि उसने सीसीटीवी फुटेज से तलाश कर नामजद एफआईआर दर्ज किया है। जब फुटेज पुलिस के पास था तो पुलिस ने आखिर अदालत में क्यों नही पेश किया? क्या पुलिस अदालत ने उक्त फुटेज को पेश करके ज़मानत का विरोध नहीं कर सकती थी और अन्य अभियुक्तों के शिनाख्त हेतु पुलिस रिमांड नही मांग सकती थी?

तो फिर आखरी पुलिस को घटना का सीसीटीवी फुटेज पेश-ए-अदालत करने में क्या दिक्कत थी। क्या इसको दशाश्वमेघ पुलिस के कार्यशैली पर बड़ा सवालिया निशान नही कहा जायेगा। आपको खुद लगेगा कि हद तो तब खत्म है जब उस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ है। सबने देखा, हमने भी देखा के तर्ज पर ही सही पुलिस क्या सीसीटीवी फुटेज नहीं निकाल सकती थी? आश्चर्य की बात नही तो फिर इसको और क्या कह सकते है।

अदालत ने कहा कि घटना का कोई स्वतंत्र साक्षी नहीं है। मतलब पुलिस इतनी भीड़ के बीच एक गवाह ऐसा नही तलाश कर पाई कि वह घटना की गवाही दे सके। अदालत ने कहा कि आरोपियों का आपराधिक इतिहास नहीं है। एक आरोपी नितेश नरसिंघानी की जमानत अर्जी पहले ही मंजूर हो चुकी है। ऐसे में तीन अन्य आरोपियों की सशर्त जमानत अदालत ने मंजूर कर लिया है। विशेष न्यायाधीश (एससी-एसटी एक्ट) अनिल कुमार पंचम की अदालत ने आरोपियों को सशर्त ज़मानत दिया है। क्या इसके बाद दशाश्वमेघ पुलिस खुद की पीठ खुद थपथपा सकती है? क्या एसीपी साहिबा इस मामले में अपने अधिनस्थो से वार्ता करेगी? शायद हाँ? शायद न? फिलहाल तो यही है कि ‘कारवा गुज़र गया, गुबार देखते रहे।’

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