बोल शाहीन के लब आज़ाद है तेरे: वाराणसी में सांझी विरासत की मिसाल है सलेमपुरा (कोयला बाज़ार) के कल्लू यादव, रमजान के पुरे माह इफ्तार के बाद मुफ्त पिलाते है नमाजियों को चाय
शाहीन बनारसी
वाराणसी: चंद दिनों शाहीन अगर परवाज़ न करे तो कौवे भी फलक को जागीर समझने लगते है। दरअसल शाहीन जब अपनी नई परवाज़ के लिए आराम तलब होती है तो यह ऐसा वक्त होता है जब कौवे फलक पर अपने जागीरी का एलान कर देते है। मगर उनको पता नही होता है कि फलक की उचाई तो शाहीन की परवाज़ के लिए बनी है। तो एक बार फिर शाहीन परवाज़ करने को तैयार है। आज हम आपको रूबरू करवा रहे है गंगा जमुनी शहर बनारस में सांझी विरासत की मिसाल कल्लू यादव से।
वाराणसी के आदमपुर थाना क्षेत्र स्थित कोयला बाज़ार के निकट बहलिया टोला इलाके में रमजान एक दिनों में इफ्तार के बाद बाद नमाज़-ए-मगरिब नमाजियों की भीड़ कल्लू यादव की दूकान पर चाय पीती हुई दिखाई देती है। आसपास और भी चाय की दुकाने है, मगर ग्राहक वहाँ नही दिखाई देते है। सभी नमाज़ी कल्लू के चाय की दूकान पर कुल्हड़ में चाय पीते हुवे पुरे रमजान माह में मगरिब की नमाज़ के बाद देखे जाते है।
दरअसल, कल्लू यादव अमूमन दूध दही आदि का कारोबार करते है। मगर रमजान माह में पुरे एक महीने इफ्तार के बाद नमाज़-ए-मगरिब से लेकर तरावीह की नमाज़ के बाद तक कल्लू यादव सभी नमाजियों को मुफ्त में चाय पिलाते है। यह काम कल्लू यादव विगत दो दशक से कर रहे थे। कल्लू यादव चाय के पैसे किसी से नही लेते है और एक चाय कोई पिए या फिर दो और तीन, मगर कल्लू किसी को मना नही करते है और मुस्कुराते हुवे चाय सभी को देते है।
ऐसा नही कि मुफ्त की चाय टेस्ट में कमज़ोर हो। खालिस दूध की बनी हुई कड़क चाय जो अमूमन बाज़ार में 10 रुपये का एक कुल्हड़ मिलती है। चाय का जायका हमने भी लिया और चाय का टेस्ट इतना उम्दा था कि हम दो चाय पी गए। सांझी विरासत यानी हिन्दू मुस्लिम एकता की यह अनूठी मिसाल हमको इस मुताल्लिक और जानने के लिए बेताब करना शुरू कर दी। हमने इस मुताल्लिक जब कल्लू यादव से पूछा तो उन्होंने बताया कि हमारी तीन पीढ़ी से इसी इलाके में मुस्लिम भाइयो से हमारा कारोबार है।
कल्लू यादव ने बताया कि हमको कभी लगा ही नही कि इस पुरे इलाके में कोई घर ऐसा है जो मेरा नही है। सभी हमारा घर जैसा ही है। हमको भी पूरा मोहल्ला अपने परिवार का हिस्सा मानता है। इस पुरे मोहल्ले में हर एक बुज़ुर्ग कोई मेरा चाचा है तो कोई बाबा और कोई दादा। नवजवान मेरे भाई है। एक साल के 11 महीने मैं दूध और दही का कारोबार करता हु। शादियों में दूध के स्टाल लगाता हु। रमजान के एक महीने की बरकत ऐसी होती है कि पुरे 11 महीने मेरे काम में कभी मंदा नही आता है। एक माह मैं अपने इस छोटे से प्रयास से रोजेदारो की सेवा करता हु। जिसका फल मुझे अगले 11 माह तक मिलता है और कारोबार में मेरे बरकत रहती है।
कल्लू यादव ने बताया कि आज तक ऐसा नही हुआ कि आज का मेरा कोई भी सामन जो मैं दूध दही से बना बेचता हु वह कभी रात दूकान बढाते वक्त तक बच जाए। ये सभी इसी सेवा के नतीजे होता है। इस सेवा का मुझे फल पुरे 11 माह तक मिलता है। सभी की दुआओं के लिए मैं सेवा करता हु और दुआओं को हासिल कर लेता हु। ऐसी ही स्टोरी से आपको रूबरू करवाती रहूंगी। शाहीन एक बार फिर आराम के बाद फलक तक अपनी परवाज़ भरने के लिए हाज़िर है।