ईवीएम के मुताल्लिक दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित, अदालत ने उठा केरल में ईवीएम मोकड्रिल के दरमियान भाजपा को अधिक वोट मिलने का मामला, ECI ने बताया खबर को फर्जी
मो0 कुमेल
डेस्क: सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम के मुताल्लिक दाखिल याचिका पर आज अदालत ने पुरे दिन सुनवाई के बाद फैसला सुरशित रख लिया है। अदालत में सभी पक्षों ने अपनी दलील रखते हुवे अपनी बाते और तथ्यों को रखा। इस दरमियान अदालत ने कई तल्ख़ सवालात भी पूछे। बताते चले कि याचिका VVPAT के साथ इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन डेटा के 100% सत्यापन की मांग करते हुवे दाखिल हुई थी।
दिन भर चली सुनवाई और बीते मंगलवार यानी 16 अप्रैल को आधे दिन की सुनवाई के बाद जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (एडीआर) और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया। सुनवाई के दौरान, पीठ ने EVM की कार्यप्रणाली और सुरक्षा विशेषताओं को समझने के लिए भारत के चुनाव आयोग के एक अधिकारी के साथ लंबी बातचीत किया। इस दरमियान केरल में ईवीएम के मोकड्रिल के दरमियान भाजपा को अधिक मत पड़ने का मुद्दा भी उठा।
याचिकाकर्ताओं की जानिब से एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड प्रशांत भूषण ने सुझाव दिया कि इस अग्रिम चरण में, क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनावों का पहला चरण कल से शुरू हो रहा है, ECI के लिए सबसे आसान काम यह है कि पूरे मतदान के दौरान VVPAT स्क्रीन की लाइट जलती रहे, जिससे मतदाता पर्ची कटते और गिरते हुए देख सके। दूसरी ओर, वकील निज़ाम पाशा ने सुझाव दिया कि मतदाता को VVPAT पर्ची भौतिक रूप से लेने और मतपेटी में जमा करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
इस पर जस्टिस खन्ना ने पूछा कि क्या इससे मतदाता की निजता का उल्लंघन नहीं होगा तो पाशा ने कहा कि मतदाताओं की गोपनीयता का उपयोग उनके अपने अधिकारों को हराने के लिए नहीं किया जा सकता है। जिस पर जस्टिस खन्ना ने टिप्पणी किया कि ‘मुझे आशा है कि आप जो चाह रहे हैं, उसके व्यावहारिक परिणाम आप समझेंगे।‘ वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने इस बात पर जोर दिया कि VVPAT ‘ऑडिट’ के लिए है। उनका सुझाव था कि EVM वोटों की गिनती के बाद सभी VVPAT पर्चियों को भी ‘ऑडिट’ के लिए गिना जाना चाहिए।
उन्होंने अपनी दलील में कहा कि ‘गिनती तत्काल है। ऑडिट में समय लग सकता है। एक अलग ऑडिट होना चाहिए, जिससे गिनती प्रक्रिया में अधिक विश्वसनीयता आएगी। कृपया विचार करें कि क्या सुरक्षा उपाय किए जा सकते हैं।‘ न्यायालय से इस मुद्दे पर विचार न करने का अनुरोध करते हुए जैसा कि 2019 के फैसले (जिसने संसदीय क्षेत्र में प्रति विधानसभा क्षेत्र में VVPAT की नंबर 5 EVM तक बढ़ाने का निर्देश दिया) द्वारा निष्कर्ष निकाला गया, हेगड़े ने दलील दिया कि इस मुद्दे को ‘प्रगति पर काम’ के रूप में देखा जाना चाहिए और सिस्टम में मतदाताओं का विश्वास बढ़ाने के किसी भी उपाय का स्वागत किया जाना चाहिए।
केरल मामले का हुआ ज़िक्र
सुनवाई के दौरान, भूषण ने केरल के कासरगोड निर्वाचन क्षेत्र में किए गए मॉक पोल के दौरान EVM में भाजपा के लिए अतिरिक्त वोट दर्ज करने की शिकायतों के बारे में मनोरमा ऑनलाइन द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट का भी हवाला दिया। पीठ ने चुनाव आयोग से इस मामले की जांच करने को कहा। दोपहर 2 बजे ECI के अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उद्धृत समाचार रिपोर्ट ‘पूरी तरह से झूठी’ है। यह देखते हुए कि EVM के बारे में सभी आशंकाओं को दूर किया जाना चाहिए, पीठ ने सुरक्षा सुविधाओं के तकनीकी पहलुओं को समझने के लिए ECI के एक अधिकारी के साथ बातचीत करने का विकल्प चुना, जो अदालत में मौजूद था।
जस्टिस दत्ता ने सवाल पूछते हुवे कहा कि ‘यह चुनावी प्रक्रिया है। इसमें पवित्रता होनी चाहिए। किसी को भी यह आशंका नहीं होनी चाहिए कि जो कुछ अपेक्षित है, वह नहीं किया जा रहा है।‘ जस्टिस खन्ना ने कहा कि ‘तो, चुनाव से 7 दिन पहले, उम्मीदवारों की उपस्थिति में, आप (ECI) VVPAT की फ्लैश मेमोरी में छवियों को फीड कर रहे हैं। एक बार अपलोड होने के बाद इसे बदला नहीं जा सकता, क्योंकि यह है किसी भी कंप्यूटर, लैपटॉप से कनेक्ट नहीं है।‘ अधिकारी ने पीठ को बताया कि लगभग 17 लाख VVPAT मशीनें हैं। उन्होंने बताया कि निर्माता को यह नहीं पता होता है कि कौन-सी मशीन किस निर्वाचन क्षेत्र में जा रही है और कौन-सा बटन किस पार्टी को आवंटित किया गया। इसके अलावा, VVPAT मशीन में कोई सॉफ्टवेयर लोड नहीं होता है और यह महज प्रिंटर है।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ के इस सवाल पर कि विधानसभा क्षेत्र में VVPAT पर्चियों को गिनने में 5 घंटे क्यों लगते हैं, अधिकारी ने कहा कि VVPAT पर्चियां ‘वास्तव में गिनती के लिए नहीं हैं’। वे छोटे, चिपचिपे कागज़ होते हैं (जैसे एटीएम मशीनों से निकलने वाले कागज़)। इसलिए मैन्युअल गिनती बोझिल प्रक्रिया है, जिसमें समय लगता है। एक EVM के VVPAT को गिनने में कम से कम एक घंटा लग जाता है। अधिकारी ने कहा, इस प्रकार, 2019 एससी निर्देश के अनुसार प्रक्रिया को पूरा करने में कम से कम 5 घंटे लगते हैं।
ECI अधिकारी ने पीठ को बताया कि VVPAT पर्चियों और EVM वोटों के बीच कभी भी बेमेल नहीं हुआ है। जिस पर जस्टिस खन्ना ने जवाब में टिप्पणी करते हुवे कहा कि ‘अगर कभी कोई बेमेल नहीं हुआ है तो यह खुद ही बताता है।‘ वहीं, सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह (ECI के लिए) ने याचिकाकर्ताओं की कागजी मतपत्रों की वापसी की मांग को ‘प्रतिगामी कदम’ करार दिया। सिंह ने जोर देकर कहा कि EVM छेड़छाड़-रोधी और हेरफेर से परे हैं। उन्होंने कहा कि ‘मैन्युअल गिनती में मानवीय त्रुटि से इनकार नहीं किया जा सकता। वर्तमान प्रणाली के तहत मानवीय भागीदारी को कम कर दिया गया।‘ याचिकाकर्ताओं की जवाबी दलीलों के दौरान, पीठ ने एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड प्रशांत भूषण से कहा कि जब उन्होंने गैर-पारदर्शी VVPAT स्क्रीन के संबंध में तर्क उठाया तो उन्हें हर चीज पर संदेह नहीं करना चाहिए।
जस्टिस खन्ना ने कहा कि ‘अब आप बहुत आगे जा रहे हैं। हर चीज पर संदेह नहीं किया जा सकता। आप हर चीज की आलोचना नहीं कर सकते। अगर उन्होंने कुछ अच्छा किया है तो कृपया उसकी भी सराहना करें। हमने आपकी बात सुनी क्योंकि हम भी चिंतित हैं।‘ जिस पर प्रशांत भूषण ने अपनी याचिका की मांग को दोहराया कि मतदाता को VVPAT पर्ची कटकर नीचे गिरती हुई दिखनी चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि VVPAT की गिनती कोई कठिन काम नहीं है। इस संबंध में उन्होंने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ0 एसवाई कुरैशी का हवाला दिया, जिन्होंने कथित तौर पर एक इंटरव्यू में कहा कि मतपत्रों की गिनती के लिए दो दिन पर्याप्त हैं।
बहस के दरमियान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शुरुआत में ही स्पष्ट करते हुए कहा कि वह अदालत के अधिकारी के रूप में पेश हो रहे हैं, उन्होंने कहा कि चुनाव प्रणाली पर सवाल उठाने के लिए समय-समय पर चुनाव की पूर्व संध्या पर ऐसी याचिकाएं दायर की जाती हैं। ‘लोकतंत्र को नुकसान’ की ओर इशारा करते हुए एसजी ने ऐसे याचिकाकर्ताओं पर जुर्माना लगाने का भी आह्वान करते हुवे कहा कि ‘यह चुनाव की पूर्व संध्या पर समय-समय पर होता है। इसका मतदान प्रतिशत पर असर पड़ता है, लोकतंत्र को नुकसान पहुंचता है। वे मतदाताओं की पसंद को मजाक बना रहे हैं। मैंने अपनी तरफ से सभी से कहा है कि कल के लिए कुछ मनगढ़ंत लेख/समाचार लेख के लिए तैयार रहें।‘
सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन और संतोष पॉल ने भी याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें दीं। संक्षेप में कहें तो एनजीओ-एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स सहित याचिकाकर्ताओं ने प्रार्थना की कि चुनाव आयोग की प्रति विधानसभा क्षेत्र में 5 EVM को यादृच्छिक रूप से सत्यापित करने की मौजूदा प्रथा के बजाय सभी VVPAT को सत्यापित किया जाए। याचिकाकर्ता यह सुनिश्चित करने के लिए भी उपाय चाहते हैं कि वोट ‘डाले गए वोट के रूप में दर्ज किए जाएं’ और ‘रिकॉर्ड किए गए वोट के रूप में गिने जाएं’।
इस मामले की 16 अप्रैल को बड़े पैमाने पर सुनवाई हुई, जब याचिकाकर्ताओं के मतपत्र से मतदान और/या VVPAT पर्चियों की मैन्युअल गिनती का सहारा लेने के सुझाव के जवाब में जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि मानवीय हस्तक्षेप से समस्याएं पैदा होंगी। पीठ ने भारत की बड़ी आबादी को देखते हुए वोटों की भौतिक गिनती की व्यवहार्यता पर भी संदेह जताया। अदालत द्वारा EVM से छेड़छाड़ के लिए जुर्माने के संबंध में एक प्रश्न भी रखा गया, जिसका जवाब देने के लिए ECI के वकील ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 132और 132ए का हवाला दिया। जस्टिस खन्ना ने कहा कि ‘यह प्रक्रिया से कहीं अधिक गंभीर है, इसमें कुछ आईपीसी अपराध होने चाहिए’ ECI वकील ने जांच करने और जवाब देने के लिए समय मांगा।