असम के वन विभाग के अधिकारियों द्वारा ‘भाजपा को वोट न देने पर बुलडोज़र कार्यवाही की धमकी’ का आरोप लगा ग्रामीणों ने खटखटाया अदालत का दरवाज़ा

फारुख हुसैन

डेस्क: असम के करीमगंज संसदीय क्षेत्र के एक मुस्लिम बहुल गांव के लोगों ने असम वन विभाग के नौ अधिकारियों के खिलाफ एक स्थानीय अदालत का दरवाजा खटखटाया है। इन ग्रामीणों का आरोप है कि उन्हें कथित तौर पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार को वोट देने या ‘बुलडोजर कार्रवाई’ के लिए तैयार रहने की धमकी दी गई है। नामज़द नौ वन अधिकारियों में मुख्य सचिव एमके यादव का नाम भी शामिल हैं।

यादव के अलावा भाजपा उम्मीदवार कृपानाथ मल्लाह के खिलाफ भी गांव वालों ने शिकायत दी है। इस सीट पर शुक्रवार (26 अप्रैल) को मतदान हुआ है। हैलाकांडी जिले के बुटुकुसी गांव से संबंधित याचिकाकर्ताओं ने करीमगंज के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत से मतदान से पहले ‘एक स्वतंत्र प्राधिकारी’ को नियुक्त करके उनकी कथित ‘आपराधिक धमकी’ पर ‘निष्पक्ष जांच’ का आदेश देने की मांग की है।

करीमगंज सीजेएम की अदालत में 24 अप्रैल की याचिका सोइदुल अली, दिलवर हुसैन, मोजमुन नेहर और अलीमुन नेसा द्वारा दायर की गई थी, जो हैलाकांडी जिले के रतबारी थाना क्षेत्र में बुटुकुसी गांव के सभी निवासी हैं। यादव के साथ, जिन लोगों को नामज़द किया गया है, उसमें सिलचर के मुख्य वन संरक्षक राजीव कुमार दास, हैलाखंडी वन प्रभाग के जिला वन अधिकारी अखिल दत्ता, आईएफएस अधिकारी और कछार प्रभाग के डीएफओ विजय टिंबक पाल्वे, चेरंगी रेंज के रतबारी उप प्रभारी मनोज सिन्हा, चेरंगी रेंज के वनपाल अजीत पॉल, दुल्लावचीरा बीट अधिकारी फैज अहमद बोरभुया, चेरांगी वन रक्षक तापस दास, चेरांगी बीट अधिकारी अब्दून नूर, और चेरांगी वन रक्षक फैजुद्दीन लस्कर के नाम शामिल हैं।

याचिका में ये भी कहा गया है कि ‘काले कपड़ों में कई अन्य वन कर्मचारी, पुलिसकर्मी, असम पुलिस कमांडो और वन बल के कुल 40 से 45 व्यक्ति थे, उन सभी के नाम और पते ज्ञात नहीं हैं।’ शिकायतकर्ताओं ने अदालत में अपनी अपील में स्पष्ट रूप से कहा है कि 21 अप्रैल से पड़ोसी मुस्लिम-बहुल गांवों में भी इन अधिकारियों द्वारा इसी तरह की धमकी दी गई है। उन्होंने बताया कि पिछले तीन दिनों से आरोपी असम पुलिस के कमांडो और वन बल के साथ 40 से 45 की संख्या में काले कपड़ोंं में सशस्त्र पुलिस, सशस्त्र वन रक्षकों के साथ बुटुकुसी, रोंगपुर, चेरंगी, जलालवाद, निविया और अन्य इलाकों में दिन और रात में घर-घर जा रहे हैं।

आरोप लगाया गया है कि ये लोग यहां घरों के निवासियों से पूछताछ कर रहे हैं, उन्हें घर से बाहर बुलाकर उनके घर की तस्वीरें ले रहे हैं। उनसे भाजपा उम्मीदवार कृपानाथ मल्लाह को वोट देने के लिए कहा जा रहा है। साथ ही धमकी भी दी जा रही है कि अगर वे लोग ऐसा नहीं करते तो 4 जून, 2024 (आम चुनाव के लिए वोटों की गिनती) के बाद उन्हें बुलडोजर द्वारा उनके घरों से बेदखल कर दिया जाएगा।

याचिका में यह भी कहा गया है कि आरोपी इन लोगों के लिए रिफ्यूजी, ‘बंगाल से आए लोग’ जैसी अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। इन सभी लोगों से भाजपा उम्मीदवार को वोट देने के लिए कहा जा रहा है और यह भी कहा गया है कि क्या ये लोग यहां रहना चाहते हैं। यदि ये लोग चाहते हैं कि यहां घर में शांति और खुशी से रहें,तो इन्हें भाजपा उम्मीदवार को वोट देना होगा, नहीं तो यहां से इन्हें बेदखल कर दिया जाएगा…’

याचिकाकर्ताओं ने अदालत को यह भी बताया कि उनके पास घटना की कई तस्वीरें और वीडियो क्लिप हैं और इन लोगों ने अदालत से आग्रह किया कि उन्हें ‘मामले की उचित सुनवाई के लिए पेश करने की अनुमति दी जाए।’ इसे ‘आरोपियों द्वारा जानबूझकर दी गई आपराधिक धमकी और अपमान’ बताते हुए ग्रामिणों ने एक स्वतंत्र प्राधिकारी से  इस  मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है। घटना पर रिपोर्ट करते हुए असमिया दैनिक एक्सोमिया प्रतिदिन ने कहा कि ग्रामीणों के अनुसार, आरोपियों ने वन भूमि पर बने ‘पिछले 50-60 वर्षों’ के घरों की भी पहचान की है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, ‘उनके पास अदालत को सत्तारूढ़ दल की ओर से राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा धमकाए जाने को दिखाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं।’

एमके यादव एक विवादित भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारी हैं, जो इस साल फरवरी में राज्य के मुख्य वन संरक्षक और राज्य के वनों के मुख्य वन्यजीव वार्डन के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। दिलचस्प बात यह है कि आम चुनावों के ठीक पहले हिमंत बिस्वा शर्मा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा उन्हें फिर से विशेष मुख्य सचिव (वन) नियुक्त किया गया।

उनकी पुनर्नियुक्ति को लेकर हंगामा भी हुआ था और इसका कारण था की असम में बाघ संरक्षण के लिए धन के दुरुपयोग और भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की काजीरंगा यात्रा के दौरान बिलों की बेतहाशा वृद्धि सहित अन्य भ्रष्टाचार की कई घटनाओं में उनकी कथित संलिप्तता सामने आई थी। उस समय, इन विवादों ने शर्मा सरकार को उन्हें राज्य के प्रमुख वन संरक्षक और मुख्य वन्यजीव वार्डन के पद से अस्थायी रूप से हटाने के लिए मजबूर कर दिया था।

उनकी पुनर्नियुक्ति के तुरंत बाद कांग्रेस विधायक और असम विधानसभा में विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया ने राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया को पत्र लिखकर दस कारण भी बताए थे कि क्यों यादव को असम सरकार द्वारा नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए था। सैकिया ने जिन मुद्दों का जिक्र किया था, उसमें इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के साथ छेड़छाड़ का आरोप भी शामिल था, जो कथित तौर पर तब हुआ था जब यादव एईडीसीएल-एएमट्रॉन के प्रबंध निदेशक के रूप में कार्यरत थे। ये सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी आम चुनावों के लिए इन मशीनों की आपूर्ति करती है। सीएम शर्मा, तब कांग्रेस में थे और एमट्रॉन के अध्यक्ष थे।

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