यूपी पुलिस कांस्टेबल सूरज पाल जाटव कैसे बना ‘भोले बाबा’?, एक नही विभिन्न राज्यों में दर्ज है 5 मुक़दमे, कर चुके है बाबा जेल यात्रा, सफ़ेद सूट-टाई में प्रवचन, मगर लोगो में आस्था भी गज़ब की है, बिना दान दक्षिणा के ऐसी आलीशान ज़िन्दगी?
तारिक़ आज़मी
डेस्क: हाथरस हादसे के बाद एक बड़ा सवाल ये उठ खड़ा हुआ कि आखिर किसका सत्संग था जो इतनी भीड़ उमाद पड़ी। इसका जवाब अगर तलाशना है तो हाथरस की सडको पर देखे। यह सत्संग नारायण साकार हरि नाम के कथावाचक का था, जिसके पोस्टर हाथरस की सड़कों पर लगाए गए थे। इस कथावाचक को लोग भोले बाबा और विश्व हरि के नाम से भी जानते हैं। जुलाई महीने के पहले मंगलवार को होने वाले आयोजन को मानव मंगल मिलन कहा गया था और उसके आयोजक के तौर पर मानव मंगल मिलन सद्भावना समागम समिति का नाम है।
दरअसल ‘भोले बाबा’ पहले सूरजपाल जाटव था। इस पूर्व पुलिस कॉन्स्टेबल ने नौकरी छोड़कर यह रास्ता अपनाया और देखते-देखते लाखों भक्त बना लिए। नारायण साकार हरि एटा ज़िले से अलग हुए कासगंज ज़िले के पटियाली के बहादुरपुर गांव निवासी हैं। उत्तर प्रदेश पुलिस की नौकरी के शुरुआती दिनों में वह स्थानीय अभिसूचना इकाई (एलआईयू) में सहित कई थानों में भी तैनात रहा है।
तैनाती के दरमियान क़रीब 28 साल पहले छेड़खानी के एक मामले में अभियुक्त होने के कारण निलंबन की सज़ा मिली। निलंबन के कारण सूरजपाल जाटव को पुलिस सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। हालांकि इससे पहले सूरजपाल जाटव क़रीब 18 पुलिस थाना और स्थानीय अभिसूचना इकाई में अपनी सेवाएं दे चुके थे। इटावा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक संजय कुमार बताते हैं कि छेड़खानी वाले मामले में सूरजपाल एटा जेल में काफ़ी लंबे समय तक क़ैद रहे और जेल से रिहाई के बाद ही सूरजपाल बाबा की शक्ल में लोगों के सामने आए। पुलिस सेवा से बर्खास्त होने के बाद सूरजपाल अदालत की शरण में गए फिर उनकी नौकरी बहाल हो गई लेकिन 2002 में आगरा ज़िले से सूरजपाल ने वीआरएस ले लिया।
पुलिस सेवा से मुक्ति के बाद सूरजपाल जाटव अपने गांव नगला बहादुरपुर पंहुचा जहाँ कुछ दिन रुकने के बाद उन्होंने ईश्वर से संवाद होने का दावा किया और ख़ुद को भोले बाबा के तौर पर स्थापित करने की दिशा में काम शुरू किया। कुछ सालों के अंदर ही उसके भक्त उन्हें कई नामों से बुलाने लगे और बड़े-बड़े आयोजन शुरू हो गए, जिनमें हज़ारों लोग शरीक होने लगे।
इटावा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक संजय कुमार ने बताया कि 75 साल के सूरजपाल उर्फ़ भोले बाबा तीन भाई हैं। सबसे बड़ा सूरजपाल है, दूसरे नंबर पर भगवान दास हैं, जिनकी मौत हो चुकी है जबकि तीसरे नंबर पर राकेश कुमार हैं, जो पूर्व में ग्राम प्रधान भी रह चुके हैं। इस बात की पुष्टि हुई है कि अपने गाँव में अब बाबा का आना-जाना कम रहता है। हालांकि बहादुरपुर गांव में उनका चैरिटेबल ट्रस्ट अब भी सक्रिय है। अपने सत्संगों में नारायण साकार ने यह दावा कई दफ़ा किया है कि उन्हें यह नहीं मालूम कि सरकारी सेवा से यहां तक खींचकर कौन लाया।
दिलचस्प ये भी है कि नारायण साकार अपने भक्तों से कोई भी दान, दक्षिणा और चढ़ावा आदि नहीं लेते हैं लेकिन इसके बावजूद उनके कई आश्रम स्थापित हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश में कई दूसरे स्थानों पर स्वामित्व वाली ज़मीन पर आश्रम स्थापित करने का दावा भी किया जा रहा है। नारायण साकार हरि अपने सत्संगों में अपने भक्तों की सेवा सेवादार बनकर करते नज़र आते हैं। बहुत संभव है कि ये सब वह अपने भक्तों में लोकप्रिय होने के लिए सोच समझकर करते हों।
अपराध से पुराना याराना, जेल यात्री भी रह चुके है बाबा
उत्तर प्रदेश के डीजीपी रह चुके विक्रम सिंह ने खुलासा किया है कि एसपी सिंह के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज हैं जिनमें से एक मामला यौन शोषण का भी है। पुलिस विभाग से होने के बावजूद एसपी सिंह उर्फ बाबा भोले न सिर्फ पुलिस के सामने मुल्जिम बनकर जा चुके हैं बल्कि जेल की हवा भी खा चुके हैं।
बाबा उर्फ सूरज पाल जिन दिनों इटावा की लोकल इंटेलिजेंस यूनिट (LIU) में तैनात थे उस दौरान उनके खिलाफ यौन शौषण की FIR दर्ज हुई थी। ये बात 1997 की है जब यौन शोषण के आरोपों के बाद सूरज पाल उर्फ एसपी सिंह को जेल तक जाना पड़ा था। इतना ही नहीं, बाबा भोले के खिलाफ अब तक कुल पांच मुकदमे दर्ज हो चुके हैं जिनमें से एक-एक केस आगरा, इटावा, कासगंज, फर्रूखाबाद और राजस्थान के दौसा में दर्ज हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि पुलिस में होने के बावजूद जेल जाने के बाद ही एसपी सिंह उर्फ सूरज पाल सिंह जाटव का पुलिस महकमे की नौकरी से मोह भंग हो गया था और उसके बाद वीआरएस (वॉल्युंटरी रिटायरमेंट) ले लिया था। अचानक 1998 में स्वैच्छिक सेवानिवृति यानी वीआरएस लेने के बाद एक रोज बाबा ने ऐलान कर दिया कि परमात्मा के साथ उनका साक्षात्कार हो गया और देखते ही देखते वो बाबा बन गए।
बताया जा रहा है कि सत्संग के दौरान बाबा भोला उर्फ नारायण साकार विश्व हरि के पास जो महिला बैठती हैं वो असल में उनके रिश्ते की मामी हैं। हालांकि ये बात अब तक किसी को समझ नहीं आई है कि आखिर मामी को साथ बैठाकर बाबा क्यों सत्संग करते हैं। सिक्के के दूसरे पहलू का एक हिस्सा ये है कि बाबा का चोला धारण करने से पहले बाबा भोले को लोग सूरज पाल सिंह उर्फ SP सिंह के नाम से ही जानते थे। पुलिस में नौकरी करने के दौरान वो आगरा के केदारनगर के एक छोटे से मकान में रहते थे जिसे उनके बाबा बनने के बाद मंदिर का दर्जा दे दिया गया है।
लोग अब उस ताला लगे मकान को बाबा की कुटिया कहते हैं। मंगलवार को पूरे देश में हाहाकार मचाने वाली इस खबर के सामने आने के बाद भी आगरा के उस मकान के सामने बाबा भोले के अनुयायियों की भीड़ कम नहीं हुई। दर्जनों लोग मकान को बाबा की कुटिया बताकर उसके आगे माथा टेकते नजर आए। हालांकि आस पास के लोगों का कहना है कि इस मकान में न तो कोई मंदिर है और न ही कोई ऐसी चीज जिसकी पूजा की जाए।
बेटी के शव को रख कर जिंदा करने का किया था दावा
आगरा के जिस मकान की चौखट पर लोग मत्था टेकना अपना सौभाग्य समझ रहे हैं उसी मकान में सूरज पाल सिंह ने बहुत पहले कानून को ठेंगा दिखाने की हिमाकत की थी। 29 साल पहले सूरज पाल सिंह को सबसे पहले पुलिस ने इसीलिए गिरफ्तार किया था। बाबा तब गोद ली हुई बेटी के शव को दो दिन तक रखे रहे थे। जिंदा करने के जतन करने की अफवाह पर पहुंची पुलिस से बाबा ने कहा था कि ये मैं नहीं, मेरे अनुयायी कह रहे हैं। बाबा ने उस वक्त बेटी का शव दो दिन तक घर में यह कह कर रखा कि उसे जिंदा किया जा रहा है। हालांकि बेटी जिंदा नहीं हुई। इस पर उत्सुकतावश बड़ी भीड़ जमा हो गई थी। उस वक्त मौके पर आई पुलिस से भोले बाबा ने कहा था कि बेटी को जिंदा करने का दावा मेरा नहीं है बल्कि ये तो लोगों की मुझको लेकर आस्था है। यहीं से भोले बाबा चर्चा में आ गए थे। हालांकि पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर मल्ल का चबूतरा श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार करा दिया था।
बाबा की कुटिया यानी आगरा के मकान के बाहर लगे एक हैंडपंप की कहानी भी अनोखी है। बाबा के अनुयायी उसे बाबा से जोड़ कर देखते हैं और बड़ी संख्या में इसी हैंडपम्प से पानी पीने यहां आते हैं। बाबा के अनुयायियों का ये यकीन है कि इस हैंडपंप का पानी उन्हें आयुष्मान यानी निरोग कर देगा। और जो बीमार है उसका इलाज महज इस हैंडपम्प से पानी पीने भर से हो जाएगा।
वह हमेशा सफ़ेद कपड़ों में दिखते हैं। नारायण साकार पायजामा कुर्ता, पैंट-शर्ट और सूट तक में नज़र आते हैं। हालांकि इंटरनेट पर वह बहुत लोकप्रिय नहीं हैं। सोशल मीडिया पर उनके भक्तों की बहुत मौजूदगी नहीं दिखाई देती है। उसके फ़ेसबुक पेज आदि पर बहुत ज़्यादा लाइक्स नहीं हैं लेकिन ज़मीनी स्तर पर उनके भक्तों की संख्या लाखों में है। उनके हर सत्संग के दौरान हज़ारों भक्तों की भीड़ दिखाई देती है। ऐसे आयोजनों में सैकड़ों स्वयं सेवक और स्वयं सेविकाएं सेवा की कमान संभालती हैं। पानी, भोजन से लेकर ट्रैफिक की व्यवस्था सुचारू रूप से चले, इसकी कोशिश की भी भक्तों की समिति करती है।