शरीर के अंगो को चुनाव निशान के रूप में न उपयोग किये जाने सम्बन्धी याचिका पढ़ कर नही रोक पाए सीजेआई अपनी हंसी, बोले ‘इसका उद्देश्य हाथ को चुनाव निशान से हटाना है, बर्खास्त की जाती है’
तारिक़ खान
डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने ‘मानव शरीर के अंगों’ जैसे दिखने वाले इलेक्शन सिंबल को हटाए जाने से जुड़ी एक याचिका को खारिज कर दिया है करते हुवे कहा है कि इस याचिका का उद्देश्य हाथ के पंजे को चुनाव निशान से हटाना है। शीर्ष अदालत ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए ये आदेश जारी किया। याचिका में भारत के चुनाव आयोग को पार्टी के प्रतीक के रूप में शरीर के अंगों के उपयोग पर रोक लगाने के निर्देश देने की मांग की गई थी।
बताते चले कि सुप्रीम कोर्ट में 4 अगस्त को ये जनहित याचिका दायर की गई थी। इसमें कहा गया था कि चुनाव आयोग के समक्ष निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए पार्टी के प्रतीक के रूप में शरीर के अंगों के इस्तेमाल को लेकर कई शिकायतें की गई थीं। लेकिन आयोग ने इस मामले में कोई भी कार्रवाई नहीं की।
याचिका में बताया गया था कि मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट में मतदान से 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार बंद करने का स्पष्ट उल्लेख है। इसके साथ ही बताया गया कि Representation of the People Act, 1951 का सेक्शन 130 मतदान के दिन 100 मीटर के दायरे में चुनाव चिह्न के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाता है। कोर्ट में दायर याचिका में दावा किया गया था कि इसलिए कुछ प्रतीक, जो मानव शरीर के अंगों से मिलते जुलते हैं या एक जैसे हैं, उन्हें छिपाया नहीं जा सकता। ऐसे मानव शरीर के अंगों के प्रदर्शन से चुनाव के दौरान उनका दुरुपयोग किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में ये जनहित याचिका वकील ओमप्रकाश परिहार के माध्यम से दायर कराई गई थी। इसमें ये मांग की गई थी कि कोर्ट ये निर्णय ले कि क्या भारत का चुनाव आयोग किसी भी पार्टी को चुनाव चिह्न के रूप में मानव शरीर के अंगों के प्रतीक को आवंटित कर सकता है? क्या ऐसे प्रतीकों का आवंटन भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 का उल्लंघन है?
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘ये कैसी याचिका है? कोई आंख नहीं, शरीर का कोई अंग नहीं… ठीक है। बर्खास्त।’ CJI ने सुनवाई के दौरान हंसते हुए कहा कि याचिका का इरादा सिर्फ हाथ के निशान (इंडियन नेशनल कांग्रेस) को हटाने का है।