खुशियों के चन्द पल: लल्लापुरा चौकी इंचार्ज एसआई पंकज पाण्डेय ने मनाया ‘एक दीपावली बच्चो के साथ’
माही अंसारी
वाराणसी: किसी फिल्म का एक खुबसूरत नगमा है कि ‘न धर्म का हो बंधन’। नगमानिगार शायद इस नगमे में उस मुहब्बत और खुशियों को हर तरफ तकसीम करने की बात कहता है जो आपको मिलती है। एक तरफ जब आपसी इकराहियत की बाते किताबो तक ही सीमित रह गई है, वही दूसरी तरफ काफी ऐसे लोंग है, जो अपनी खुशियों में उनको भी शामिल करते है, जो छोटी छोटी खुशियों से भी महरूम रह जाते है।
ऐसा ही एक जीता जागता उदाहरण कल हमारी नजरो से गुज़रा शहर बनारस के सिगरा थाना क्षेत्र स्थित माताकुंड इलाके में। हमारा गुज़र माताकुंड स्थित लल्लापुरा चौकी के बाहर से हो रहा था। अमूमन तो अपने रोज़मर्रा के कामो में इतनी मसरूफियत रहती है कि आसपास क्या चल रहा है, इसकी तस्दीक दूसरो से करना पड़ता है। मगर जो कुछ हमारे निगाहों ने कल लल्लापुर चौकी के बाहर देखा, उसको देख कर हमारे कदम रुक गए और तकसीम होती खुशियों को देख कर हमारे लब भी मुस्कुरा उठे।
मंज़र कुछ ऐसा था कि लल्लापुरा चौकी इंचार्ज और उनके अधीनस्थ पुलिसकर्मियों के चारो तरफ नन्हे मुन्ने बच्चे खड़े थे। देखने में ही गरीब तबके के लगने वाले बच्चो को एसआई पंकज पाण्डेय और उनके साथी पुलिस कर्मी अपने हाथो से मिठाई के डब्बे और फुलझड़ी, चुटपुटिया के साथ बजाने वाली बन्दुक और दीगर बच्चो के पटाखे दे रहे थे। एसआई पंकज पाण्डेय बच्चो के बीच ऐसे लग रहे थे जैसे खुद का बचपन एक बार दुबारा जी रहे हो।
ना नाम में मज़हब की तलाश और न ही उम्र की बंदिशे। कुछ नकाबपोश महिलाहो के साथ गुजरने वाले बच्चो को भी रोक कर उनको पटाखे और मिठाई का डब्बा वह दे रहे थे। बच्चो के चेहरे की खुशियों को देख कर एसआई पंकज पाण्डेय के चेहरे पर फुल जैसी कोमल खुशियाँ दिखाई दे रही था। हाल खुच ऐसे खुशियों के तकसीम का था कि जो भी उधर से गुज़र रहा था ठिठक कर रुक जाता और इस खुशियों के तक्सीमात उसके लबो पर मुस्कान ला देते थे। एक अरसा दराज़ के बाद ऐसे खुशियों को तकसीम करते हुवे किसी को मैंने देखा था।
न कैमरों की चमक के बीच शो-ऑफ़ और न हो हल्ला, मैंने धीरे से इस खुशियों के तक्सीमी लम्हात को अपने मोबाइल कैमरे में कैद किया। अचानक एसआई पंकज पाण्डेय की नज़र मेरे ऊपर पड़ी तो एक मिठाई का पैकेट जब मेरे तरफ किया तो मैंने उनके हाथो में दूसरा खुला मिठाई का डब्बा देखा और उसमे से एक छोटी मिठाई के डली उठा कर अपने मुह में डालते हुवे ‘हैप्पी दीपावली’ कहा। उन्होंने ने भी कोमल मुस्कान के साथ मुझे दीपावली मुबारक कहा और फिर दुबारा बच्चो के साथ मशगुल हो गये। मैंने भी अपने कदम अपने दफ्तर की तरफ बढाये और अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में शामिल हो गई।