ज़लालत के दस साल गुज़ारने के बाद गैंग रेप की घटना अदालत में साबित हुई झूठी, तीन अलग अलग रंजिशो का बदला लेने के थी महज़ साजिश, ट्रायल के दरमियान चौथे आरोपी की हो चुकी है मौत
मो0 कुमेल
कानपुर: कानपुर की एक अदालत ने दस साल तक चले गैंगरेप और धमकी के मामले को झूठा पाते हुवे सभी आरोपियों को बा-इज्ज़त बरी कर दिया है। अदालत ने यह माना कि तीन अलग अलग रंजिशो के बदला लेने के लिए एक पिता ने अपनी पुत्री का सहारा लेकर यह मामला दर्ज करवाया था। दस साल गैगरेप के इलज़ाम की ज़लालत झेलने वाले तीन लोग और धमकी देने के आरोपों एक महिला सहित दो अभियुक्त आज ब-इज्ज़त बरी तो हो गये। मगर ट्रायल के दरमियान ही एक अभियुक्त की मौत हो चुकी है।
पूरा मामला ये था कि बिठूर निवासी एक पिता ने कोर्ट में एक प्रार्थना पत्र देकर कहा था कि 18 मार्च 2013 को जब वह और उसकी पत्नी काम पर गए थे तभी उसकी 14 वर्षीय नाबालिग बेटी को घर पर अकेला पाकर क्षेत्र के सूबेदार नगर निवासी अरुण गोस्वामी, ब्रह्मनगर निवासी दीपू गुप्ता व रमेल नगर निवासी अनिल कुमार गौड़ ने दबोच लिया और तीनों ने सामूहिक दुष्कर्म किया। शाम को मां-बाप के लौटने पर बेटी ने सारी बात बताई तो बेटी को साथ लेकर वह थाने रिपोर्ट दर्ज करवाने जा रहे थे। तभी रास्ते में अरुण, उसकी मां तपेश्वरी व पिता शंकरदयाल मिले और रुपये लेकर मामला खत्म करने को कहा। विरोध करने पर जान से मारने की धमकी दी।
वादी ने आरोप लगाया कि डरकर पिता उस समय तो घर लौट गया, लेकिन बाद में कोर्ट में अर्जी देकर पांच लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी। अदालत में अरुण, दीपू व अनिल के खिलाफ सामूहिक दुष्कर्म और शंकरदयाल व तपेश्वरी के खिलाफ धमकाने के मामले में आरोप तय हुए थे। मुकदमे की सुनवाई के दौरान शंकरदयाल की मौत हो गई, जबकि सबूतों और गवाहों के आधार पर कोर्ट ने बाकी चारों को दोषमुक्त करार दे दिया। अपने पिता पर लगे इस झूठे आरोप से उन्हें बरी कराने के लिए अनिल कुमार गौड़ के बेटे ऋषभ व बेटी उपासना ने खुद वकालत की पढ़ाई पढ़ी।
दोनों ने एलएलबी की परीक्षा भी पास कर ली। यूपी बार कौंसिल में उपासना का पंजीकरण अभी नहीं हो सका है, जबकि ऋषभ का पंजीकरण हो गया था। उपासना ने मुकदमे की तैयारी की। ऋषभ ने खुद अपने पिता का मुकदमा लड़ा। कोर्ट के सामने बहस कर पिता का पक्ष रखा और पिता को झूठे आरोप से मुक्त कराने में सफलता हासिल की। मुकदमे से बरी होने पर पिता ने दोनों की शिक्षा पर गर्व जताया। कोर्ट में अरुण की ओर से तर्क रखा गया कि एकतरफा प्यार में पीडि़ता उससे शादी करना चाहती थी लेकिन उसकी शादी पीडि़ता की बड़ी बहन से तय थी।
दलील पेश करते हुवे अरुण के अधिवक्ता ने अदालत को बताया था कि 25 मार्च 2013 को शादी होनी थी। दोनों प्रेम विवाह कर रहे थे। बड़ी बहन को पहले पति से तलाक पर 1।20 लाख रुपये मिले थे। यह रुपये मां-बाप लेना चाहते थे। न देने पर साजिश के तहत रंजिश मानकर झूठे मुकदमे में फंसा दिया। तपेश्वरी का भी कहना था कि घटना के समय पीडि़ता बालिग थी। उसे, पति व बेटे को झूठा फंसा दिया। जबकि अदालत में अनिल गौड़ की ओर से तर्क रखा गया कि पीडि़ता के बाबा शमशान घाट पर ड्यूटी करते थे। शमशान घाट के रास्ते पर उसका खेत पड़ता था।
दलील में अदालत को बताया गया कि आते-जाते उनसे राम-राम होती थी। एक दिन उन्होंने उसका खेत बटाई पर मांगा लेकिन वह पहले से दूसरे को दे चुका था। इस पर उन्होंने झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी दी थी। वह पीडि़ता व उसके परिवार को जानता तक नहीं है। कोर्ट में दीपू की ओर से तर्क रखा गया कि पीडि़ता का परिवार उसे पहले से जानता था। पीडि़ता की बड़ी बहन की मौत पर दहेज हत्या के मुकदमे में उसे नामजद आरोपी बनाया गया था। मुकदमे में वह बरी हो गया था। इसी रंजिश के कारण उसे दूसरे मुकदमे में झूठा फंसा दिया गया।
कोर्ट ने आदेश में कहा कि तीन व्यक्ति जो अलग-अलग उम्र के हैं। अलग-अलग स्थान पर रहते हैं। अलग-अलग काम करते हैं। वह एक ही दिन, समय और स्थान पर एक ही बालिका के साथ दुष्कर्म करने के लिए क्यों और कैसे तैयार हो गए यह अभियोजन साबित नहीं कर सका। बचाव पक्ष द्वारा पेश किए गए सबूतों से साफ है कि पीडि़ता के परिवार की अरुण, दीपू और अनिल से अलग-अलग कारणों से रंजिश थी। पीडि़ता के बयान भी अविश्वसनीय हैं। अभियोजन साक्ष्यों से घटना साबित नहीं होती इसलिए सभी दोषमुक्त किए जाने योग्य हैं।
अब एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि दस साल तक ज़लालत की ज़िन्दगी जीने वाले झूठे गैंग रेप के आरोपियों ने जो नातायश अपनी ज़िन्दगी में झेली उसका क्या ? उन्होंने जिस ज़लालत की ज़िन्दगी का सामना किया कि दुनिया उनको शक और हिकारत के नज़र से दस साल तक देखती रही क्या उसका इन्साफ उनको मिल पायेगा? क्या ज़िन्दगी के ये दस साल कोई वापस दे सकता है और जो एक आरोपी ट्रायल के दरमियान ही इस झूठे इलज़ाम को अपने माथे पर कलंक के तौर पर लेकर इस दुनिया से चला गया उसका क्या वह सामाजिक सम्मान वापस मिल पायेगा?