एशियन ब्रिज इंडिया द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर युवाओं को सशक्त करने का महत्वपूर्ण प्रयास

शफी उस्मानी

वाराणसी: एशियन ब्रिज इंडिया ने आज अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर वाराणसी के कांशीराम आवास और पक्की बाजार में एक व्यापक जागरूकता अभियान चलाया, जिसमें स्थानीय युवाओं और समुदाय के सदस्यों को सामाजिक समानता, बंधुत्व, न्याय और अधिकारों के प्रति संवेदनशील बनाया गया।

काशीराम आवास में कुल 85 युवाओं और 34 अभिभावकों ने भाग लिया जिसमें सांप सीढ़ी और अधिकार की टोकरी आदि खेल के माध्यम से हिंसा मुक्त समाज के निर्माण में युवाओं की भूमिका के महत्व पर जोर दिया गया और रचनात्मकता से युवाओं को भारतीय संविधान के मूल्यों और अधिकारों के प्रति जागरूक किया। युवाओं को हिंसा, हिंसात्मक मर्दानगी और भेदभाव के विरुद्ध जागरूक करने के लिए चर्चा और सवाल जवाब के माध्यम से युवाओं की संवैधानिक मूल्यों और अधिकारों के प्रति जागरूक एवम् समाज में बंधुत्व, न्याय और समानता को स्थापित करने में युवाओं की भूमिका पर एक सशक्त संदेश दिया।

प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता मूसा भाई ने अपने ऐतिहासिक संबोधन में समाज में व्याप्त असमानताओं और मौलिक अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने लोगों से एकजुटता, सम्मान और न्याय के मूल्यों को अपने जीवन का हिस्सा बनाने का आह्वान किया। साधिका, मेन एंगेज इंडिया और मेसवा संगठन के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम ने मानवाधिकारों की व्यापक समझ को और अधिक स्पष्ट किया।

वाराणसी के प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता और नट मुसहर समुदाय के अधिकारों की आवाज़ के रूप पहचाने जाने वाले श्री प्रेम नट ने अपने उद्बोधन में बताया कि वर्तमान भारत में दलित और अल्पसंख्यक के अधिकारों पर सर्वाधिक हमले हो रहे हैं ऐसे में इन हमलों को रोकने और भारतीय संविधान के मूल्यों की पुनर्स्थापना करने के लिए एक मात्र रास्ता है कि दलित और अल्पसंख्यक समाज के युवाओं को आगे आना होगा और अपने अधिकारों की स्वयं रक्षा करनी होगी।

विशिष्ट अतिथि के रूप में वाराणसी में महिला और LGBTQIA+ समुदाय के अधिकारों के संरक्षण की लड़ाई लड़ने वाली प्रिज्मेटिक फाउंडेशन की अध्यक्ष नीती ने बताया कि अगर समाज में शान्ती और संपूर्ण विकास चाहिए तो सबसे पहले अपने अपने घरों में रहने वाली लड़कियों और महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा को खत्म करना होगा क्योंकि आपके परिवार की महिलाओं के साथ कोई बाहर, पड़ोस या दूसरे इलाके से आने वाला व्यक्ति नहीं करता वो घर का या जानकार व्यक्ति ही होता है जो आपके परिवार की महिलाओं के साथ हिंसा करता है।

हाफिज अल्ताफ साहब ने बताया कि बढ़ती बेरोजगारी और सरकारी नौकरियों में नियुक्तियों के नहीं होने की वजह से अल्पसंख्यकों के अंदर ये भावना बैठ गई है कि उनके बच्चों को नौकरी नहीं मिलेगी इसके उन्होंने कहा कि जब देश आजाद हुआ था तो उस समय कितने प्रतिशत मुसलमान सरकारी नौकरियों में थे और इन पचहत्तर वर्षों में किस तरह से मुसलमानों को सरकारी नौकरियों से वंचित किया गया जिसका परिणाम है कि अब आपकी शायद ही किसी विभाग में कोई मुसलमान सरकारी नौकरी करता दिखेगा। यही कारण है कि मुसलमानों ने अपने बच्चों को पढ़ने के बजाय सत्रह वर्ष तक आते आते उनको मजदूरी करने, ठेला लगाने या टोटो एवं ऑटो आदि की ड्राइवरी में लगा देते हैं जिससे मुसलमान युवा टैक्स तो भरता है लेकिन सरकार की किसी भी सुविधा का लाभ नहीं ले पाता उल्टे इन मुस्लिम युवाओं को बोझ बताया जाता है। ऐसे में अब अल्पसंख्यकों को फिर से शिक्षा की तरफ आना होगा और अपने अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए खुद पहल करनी होगी।

कार्यक्रम में विभिन्न सामाजिक वर्गों के लोगों ने भाग लिया और अपने अनुभव साझा किए। इस मौके पर मूसा आज़मी ने रेखांकित किया कि मानवाधिकार केवल एक अवधारणा नहीं, बल्कि मानवीय गरिमा का मूल आधार है। उन्होंने यह भी बताया कि वित्तीय वर्ष 2023-2024 में 144 युवाओं को एशियन ब्रिज इंडिया के माध्यम से उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की गई। कार्यक्रम का उद्देश्य समाज में समानता, शिक्षा और मानवाधिकारों को बढ़ावा देना था। कार्यक्रम का संचालन राम प्रकाश ने किया और दीक्षा, पंकज, चंदन, अफसाना और वंदना ने कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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