मथुरा शाही ईदगाह प्रकरण: प्लेसेस ऑफ़ वोर्शिप एक्ट 1991 के तहत सुनवाई हेतु मस्जिद कमेटी की याचिका पर सीजेआई की बेंच में होंगी सुनवाई, पढ़े क्या है पूरा मामला और मस्जिद कमेटी का पक्ष

तारिक आज़मी

डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद से जुड़ी मस्जिद समिति की हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सोमवार यानि 9 दिसंबर को सुनवाई करेगा। हाई कोर्ट ने मस्जिद समिति की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें उसने हिंदू पक्ष के 18 मामलों की सुनवाई की योग्यता को ही चुनौती देते हुवे प्लेसेस आफ वरशिप एक्ट 1991 का उलंघन बताया था।

इस मामले में जब हाई कोर्ट इलाहाबाद ने मथुरा ईदगाह समिति की याचिका को खारिज कर दिया तो मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर दस्तक दिया और अपनी गुहार लगाया है। इस याचिका पर चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने कहा कि 9 दिसंबर को दोपहर दो बजे याचिका पर विस्तार से सुनवाई करेंगे। चीफ जस्टिस ने कहा कि उन्हें पहली नजर में लगता है कि हाई कोर्ट की सिंगल जज की बेंच के 1 अगस्त के आदेश के खिलाफ एक इंट्रा-कोर्ट अपील होगी। बेंच ने कहा, ”हम निश्चित रूप से आपको बहस करने का मौका देंगे।”

बताते चले कि 1 अगस्त को, हाई कोर्ट ने मथुरा में मंदिर-मस्जिद विवाद से जुड़े 18 मामलों की सुनवाई की योग्यता को चुनौती देने वाली प्रबंधन समिति, ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह की याचिका को खारिज कर दिया था और फैसला सुनाया था कि शाही ईदगाह के “धार्मिक चरित्र” को निर्धारित करने की आवश्यकता है। हाई कोर्ट के पास दायर याचिका में मस्जिद समिति का तर्क था कि कृष्ण जन्मभूमि मंदिर और निकटवर्ती मस्जिद के विवाद से संबंधित हिंदू वादियों द्वारा दायर किए गए मुकदमे पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) कानून का उल्लंघन करते हैं – और इसलिए सुनवाई योग्य नहीं हैं।

मस्जिद कमेटी ने तर्क दिया था कि 1991 का यह कानून कहता है कि देश की आजादी के दिन मौजूद जिस धार्मिक स्थल का धार्मिक चरित्र जैसा है उसे वैसा ही रखा जाएगा, कानून उसमें किसी बदलाव पर रोक लगाता है। इसमें केवल एक अपवाद रखा गया: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को। जिसके बाद हाई कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि 1991 का कानून “धार्मिक चरित्र” शब्द को परिभाषित नहीं करता है और “विवादित” स्थान में मंदिर और मस्जिद का दोहरा धार्मिक चरित्र नहीं हो सकता है, जो एक ही समय में “एक दूसरे के उलट” हैं।

हाई कोर्ट ने कहा, ‘या तो जगह मंदिर है या मस्जिद। इस प्रकार, मुझे लगता है कि विवादित स्थान का धार्मिक चरित्र, जैसा कि 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में था, दोनों पक्षों के नेतृत्व में दस्तावेजी और मौखिक सबूत द्वारा निर्धारित किया जाना है।’ हाई कोर्ट के इसी फैसले के खिलाफ मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। वही दूसरी तरफ प्लेसेस आफ वरशिप एक्ट 1991 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 5 दिसंबर से सुनवाई कर रहा है। यह याचिकाए भी सीजेआई के बेंच में लगी है। इन याचिकाओं में एक याचिका जमियत उल ओलमा ए हिन्द के जानिब से भी दाखिल है, और जमियत की याचिका पर भी सुनवाई इसी दिन होगी। जिसमे जमियत ने प्लेसेस आफ वरशिप एक्ट 1991 को मुल्क में कड़ाई से लागू करने की गुहार लगाया है।

क्या है पूरा मामला

ये पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है, जिसमें 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। हिंदू पक्ष का दावा है कि पहले यहां मंदिर था, जिसे औरंगजेब ने तुड़वाकर मस्जिद बनवा दी। हिंदू पक्ष का दावा है कि जिस जगह पर ईदगाह मस्जिद को बनाया गया है, ये वही जगह है जहां कंस का कारागार हुआ करता था। इसी कारागार में देवकी ने श्रीकृष्ण को जन्म दिया था। हिंदू पक्ष ने पूरी 13.37 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक देने की मांग की है।

श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सदस्य गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी ने विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स में बताया है कि श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही मस्जिद ईदगाह के बीच पहला मुकदमा 1832 में शुरू हुआ था। तब से लेकर विभिन्न मसलों में कई बार मुकदमेबाजी हुई, लेकिन जीत हर बार श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान की हुई। अताउल्ला खान ने 15 मार्च 1832 में कलेक्टर के यहां प्रार्थना पत्र दिया। जिसमें कहा कि 1815 में जो नीलामी हुई है उसको निरस्त किया जाए। ईदगाह की मरम्मत की अनुमति दी जाए। 29 अक्टूबर 1832 को कलेक्टर डब्ल्यूएच टेलर ने आदेश दिया जिसमें नीलामी को उचित बताया गया और कहा कि मालिकाना हक पटनीमल राज परिवार का है। इस नीलामी की जमीन में ईदगाह भी शामिल थी।

दावा है कि श्री कृष्ण जन्म भूमि और शाही मस्जिद को लेकर 1897, 1921, 1923, 1929, 1932, 1935, 1955, 1956, 1958, 1959, 1960, 1961, 1964, 1965-66 में भी मुकदमे चल चुके हैं। वही 1965 में इस मुताल्लिक एक रजिस्टर्ड समझौता भी हुआ था। जिसको अब हिन्दू पक्ष मानने को तैयार नही है। इस पुरे मामले में शाही ईदगाह कमेटी की ओर से कहा गया है कि ये विवाद जबरन पैदा किया जा रहा है। दोनों ही धार्मिक स्थलों के रास्ते अलग-अलग हैं। कृष्ण की नगरी में सभी भाईचारे के साथ रहते हैं। पूर्व में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट और शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट में सौहार्दपूर्ण ढंग से रजिस्टर्ड समझौता हुआ था। अब कुछ लोग बिना वजह इस मामले तूल देने में लगे हैं।

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