पंजाब के पूर्व डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल और अकाली दल कोर कमेटी सदस्य को जूठे बर्तन धोने और बाथरूम साफ़ करने की श्री अकाल तख़्त साहिब ने दिया सज़ा, पैर में चोट के कारण सुखबीर को मिली ये राहत, जाने क्या है आरोप
आफताब फारुकी
डेस्क: पंजाब के अमृतसर स्थित सिख धर्म के सबसे बड़े धार्मिक स्थल श्री अकाल तख़्त साहिब (गोल्डन टेंपल) ने सोमवार को पंजाब के पूर्व उपमुखंयमंत्री और अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल को ‘सज़ा’ सुनाई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, सुखबीर सिंह बादल के अलावा अकाली दल के कुछ और नेताओं को भी ‘सज़ा’ सुनाई गई है। यह सज़ा अकाल तख़्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह ने सुखबीर सिंह बादल समेत अकाली दल की कोर कमेटी के सदस्यों और 2015 में कैबिनेट सदस्य रहे नेताओं को सुनाई है।
इसके अलावा पंजाब के भूतपूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत प्रकाश सिंह बादल को दी गई फ़ख़्र-ए-कौम की उपाधि को भी वापस लेने का एलान किया गया। ज्ञानी रघबीर सिंह ने कहा कि तीन दिसंबर को ये सभी दोपहर 12 बजे से 1 बजे तक बाथरूम साफ़ करेंगे, उसके बाद नहाकर लंगर परोसेंगे, फिर नितनेम और सुखमनी साहिब का पाठ करेंगे। इसके साथ ही ज्ञानी रघबीर सिंह ने कहा कि चूंकि सुखबीर सिंह बादल के पैर में चोट है और सुखदेव सिंह ढींडसा बुजुर्ग हैं, जिस कारण वे दोनों इस सज़ा को निभा पाने में असमर्थ हैं। इसलिए ये दोनों गुरु के घर की चौखट के बाहर सेवकों के साथ सेवा करेंगे।
इसी तरह, ये तख्त केसगढ़ साहिब, दमदमा साहिब, फतेहगढ़ साहिब और मुक्तसर साहिब में काम करेंगे। इसके अलावा पाचों लोगों को अपने कस्बे, शहर या आसपास के गुरुद्वारों में रोजाना एक घंटे तक बर्तन, लंगर, साफ़-सफ़ाई और खाना पकाने की सेवा करनी होगी। जत्थेदारों ने कहा कि सुखबीर सिंह बादल, सुच्चा सिंह लंगाह, गुलजार सिंह, दलजीत सिंह चीमा, भुंदर और गबरी से ज़ुर्माना भी वसूला जाएगा। इस सज़ा पर प्रतिक्रिया देते हुए शिरोमणि अकाली दल के वरिष्ठ नेता दलजीत सिंह चीमा ने कहा, ‘हम अपनी ग़लतियों को स्वीकार करना चाहते हैं और माफ़ी मांगना चाहते हैं। यहां कोई बहस नहीं होती, गुरु सब जानते हैं। हम अकाल तख़्त के फ़ैसले का पालन करेंगे।’
बताते चले कि अकाली दल सरकार के दौरान सांप्रदायिक मुद्दों के चलते कई लोगों की मौत हुई। इन सब पर आरोप है कि इन्होने सिख युवकों को पीटने वाले पुलिस अधिकारियों को प्रमोशन दिया और उनके परिवार वालों को टिकट दिया। साथ ही इलज़ाम है कि जत्थेदारों को घर बुलाकर इन्होने पूछा कि डेरा सच्चा सौदा को माफ़ किया जाए या नहीं। आरोप है कि इनकी सरकार के दौरान गुरु का अपमान किया गया। गंदे पोस्टर लगए गए। तत्कालीन अकाली दल की सरकार आरोपियों का पता भी नहीं लगा पाई। इसके बाद गुरु ग्रंथ साहिब की पुस्तकें फाड़ दी गईं और बाद में प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाई गईं। डेरा प्रमुख को दी गई माफ़ी को सही ठहराने के लिए विज्ञापन के लिए शिरोमणि कमेटी के पैसे का दुरुपयोग किया गया।