पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दुसरे राज्यों को आलू बिक्री पर रोक के खिलाफ शुरू हुई हड़ताल, मंडियों में बढ़ा आलू का दाम
तारिक खान
डेस्क: पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से दूसरे राज्यों को आलू की बिक्री पर लगी रोक के विरोध में थोक व्यापारियों ने सोमवार की आधी रात से हड़ताल शुरू कर दी है। इस कारण मंगलवार को राज्य के विभिन्न बाजारों में आलू की खुदरा कीमत दो से नौ रुपये प्रति किलो तक बढ़ गई।
कृषि मंत्री बेचाराम मन्ना के साथ आलू व्यापारियों की बैठक नाकाम रहने के बाद पश्चिम बंगाल प्रगतिशील आलू व्यवसायी समिति ने हड़ताल जारी रखने का एलान किया है। इस हड़ताल का कोल्ड स्टोरेज मालिकों ने भी समर्थन किया है। पश्चिम बंगाल सरकार ने दूसरे राज्यों और बांग्लादेश को आलू भेजने पर रोक लगा दी है। सरकार का कहना है कि राज्य की घरेलू मांग पूरी होने के बाद आलू बाहर भेजा जा सकता है। इससे पहले बीते सप्ताह सीमा पर आलू से लदे कई ट्रकों को रोक दिया गया था।
हड़ताल की वजह से आलू की कीमत और बढ़ने की आशंका है। कृषि मंत्री कहते हैं, ‘लगातार बारिश के कारण इस साल आलू की खेती 15 दिन पिछड़ गई है। जो आलू 20 से 25 दिसंबर तक मिल जाता था। वह अब जनवरी में ही मिल सकेगा, लेकिन सरकार खुदरा बाजारों में आलू को भेजे जारी रखने का प्रयास कर रही है।’ उनका कहना था कि फिलहाल राज्य में कोल्ड स्टोरेज में रखा आलू का भंडार 40-45 दिनों के लिए पर्याप्त है। इसी वजह से सरकार ने दूसरे राज्यों या बांग्लादेश को आलू बेचने पर पाबंदी लगा दी है।
पोटैटो ट्रेडर्स एसोसिएशन के राज्य सचिव लालू मुखर्जी ने हड़ताल जारी रखने की बात कही है। उन्होंने कहा, ‘सरकार जब तक दूसरे राज्यों में आलू की बिक्री से पाबंदी नही हटाती, हड़ताल जारी रहेगी।’ बीते साल राज्य में 63.58 लाख मीट्रिक टन आलू की पैदावार हुई थी। लेकिन इस साल प्रतिकूल मौसम की वजह से यह घट कर उत्पादन 58.64 लाख मीट्रिक टन रह गया है। कृषि विभाग के एक अधिकारी बताते हैं, ‘राज्य में आलू की दैनिक खपत करीब 15 हजार मीट्रिक टन है। इसमें से अकेले राजधानी कोलकाता में ही पांच हजार मीट्रिक टन की खपत होती है। फिलहाल कोल्ड स्टोरेज में 6.32 लाख टन आलू का भंडार है।’
दूसरे राज्यों को आलू की बिक्री पर रोक के सरकार के आदेश का सबसे ज्यादा असर पड़ोसी राज्य झारखंड और ओडिशा का होने का अंदेशा है। झारखंड में आलू की कुल खपत का करीब 60 प्रतिशत बंगाल से ही जाता है। इसी तरह ओडिशा साढ़े चार हजार टन की दैनिक खपत के लिए काफी हद तक बंगाल पर ही निर्भर है।