प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट 1991 पर सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक के बाद बदायु जामा मस्जिद प्रकरण में हुई सुनवाई, अदालत 24 दिसंबर को सुनाएगी फैसला कि ‘केस चलने योग्य है या नहीं’
मो0 कुमेल
डेस्क: सुप्रीम कोर्ट प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली है। 12 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब तक इस एक्ट पर सुनवाई नहीं हो जाती है तब तक मस्जिद या मंदिर को लेकर कोई केस फाइल नहीं किया जाएगा। कोई भी कोर्ट किसी लंबित मामले पर फैसला नहीं सुनाया जाएगा।
आदेश में कोर्ट ने निचली अदालतों को ये भी कहा था कि वो किसी भी धार्मिक स्थलों को लेकर सर्वे का आदेश जारी नहीं करेंगी। इस रोक के बाद कल बदायु की एक अदालत ने जामा मस्जिद के मुताल्लिक दाखिल एक याचिका पर दोनों पक्षों को सुना है और अदालत 24 दिसंबर को यह फैसला देगी कि यह मामला सुनवाई योग्य है कि नहीं।
उत्तर प्रदेश में बदायूं की एक अदालत जामा मस्जिद शम्सी मामले में 24 दिसंबर को फैसला करेगी कि इस विवाद पर आगे सुनवाई होगी या नहीं। साल 2022 में अखिल भारत हिंदू महासभा के संयोजक ने दावा किया था कि मस्जिद की जगह पहले ‘नीलकंठ महादेव मंदिर’ हुआ करता था। उन्होंने मस्जिद परिसर में पूजा करने की अनुमति मांगी थी। हालांकि, प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद निचली अदालत 24 दिसंबर को ये फैसला लेगी कि मामले की सुनवाई जारी रहेगी या नहीं।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, 17 दिसंबर को मुस्लिम पक्ष की तरफ से पेश हुए वकील अनवर आलम ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की एक कॉपी सौंपी। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 12 दिसंबर को आदेश दिया है कि इस तरह के मामलों में फिलहाल निचली अदालत कोई आदेश पारित नहीं करेगी और न ही सर्वे पर कोई निर्णय लेगी। आलम ने दलील दी कि अगर कोर्ट कोई आदेश पारित नहीं कर सकता तो ऐसे मामलों की सुनवाई का कोई औचित्य नहीं है।
इसके जवाब में हिंदू पक्ष की तरफ से वकील विवेक रेंडर ने दलील रखी की कि सुप्रीम कोर्ट ने कहीं भी ये नहीं कहा है कि चल रही सुनवाई रोकी जाए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ आदेश दिया है कि जिन मामलों में सुनवाई चल रही है, उन्हें रोका नहीं जा सकता, लेकिन निचली अदालत किसी तरह का आदेश या अंतरिम आदेश जारी नहीं कर सकती। विवेक रेंडर ने आरोप लगाया कि मुस्लिम पक्ष के वकील जानबूझकर मामले में देरी करने के लिए ऐसी दलील पेश कर रहे हैं।
दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद सिविल जज अमित कुमार ने 24 दिसंबर की तारीख तय की। उसी दिन फैसला लिया जाएगा कि इस मामले में चल रही सुनवाई जारी रहेगी या नहीं। बताते चले कि चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली एक बेंच ने इन याचिकाओं पर सरकार को चार हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा था। 1991 का ये कानून आजादी के समय (15 अगस्त,1947) मौजूद धार्मिक या पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र को बदलने पर रोक लगाता है।