उदारीकरण के नायक से लेकर प्रधानमंत्री तक का सफ़र करने वाले पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की ज़िन्दगी का रुका सफ़र, पढ़े देश की अर्थव्यवस्था को वह कैसे लाये थे पटरी पर

तारिक आज़मी

डेस्क: पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह का गुरुवार को निधन हो गया। वो 92 साल के थे। मनमोहन सिंह को गुरुवार की शाम तबीयत बिगड़ने पर दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स में भर्ती कराया गया था। मनमोहन सिंह दो बार देश के प्रधानमंत्री रहे। वो 22 मई 2004 से 26 मई 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। एम्स के मीडिया सेल ने मनमोहन सिंह के निधन की जानकारी दी है।

एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा गया है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 92 साल की उम्र में निधन हो गया है। उन्हें उम्र संबंधी स्वास्थ्य कारणों की वजह से गुरुवार (26 दिसंबर 2024) शाम को आठ बजकर छह मिनट पर एम्स में भर्ती कराया गया था। वो अपने घर में अचानक बेहोश हो गए थे।उन्हें घर पर ही उपचार देने की कोशिश की गई।इसके बाद उन्हें एम्स की इमरजेंसी में लाया गया।लेकिन काफी कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका।उन्होंने रात 9 बज कर 51 मिनट पर अंतिम सांस ली। मनमोहन सिंह लगातार दो बार भारत के प्रधानमंत्री रहे और उनकी व्यक्तिगत छवि काफी साथ-सुथरी रही।

मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत में हुआ था। यह हिस्सा अब पाकिस्तान में है। पंजाब यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया और ऑक्सफॉर्ड से डी फिल किया। मनमोहन सिंह की बेटी दमन सिंह ने अपनी किताब में लिखा है कि कैंब्रिज में पढ़ाई के दौरान उन्हें आर्थिक तंगी से गुज़रना पड़ा था।

दमन सिंह ने लिखा था, ‘उनकी ट्यूशन और रहने का खर्च सालाना लगभग 600 पाउंड था। पंजाब यूनिवर्सिटी की स्कॉलरशिप से उन्हें करीब 160 पाउंड मिलते थे, बाकी के लिए उन्हें अपने पिता पर निर्भर रहना पड़ता था। मनमोहन बेहद सादगी और किफायत से जीवन बिताते थे। डाइनिंग हॉल में सब्सिडी वाला भोजन अपेक्षाकृत सस्ता था, जिसकी कीमत दो शिलिंग छह पेंस थी।’ दमन सिंह ने अपने पिता को ‘घर के कामों में पूरी तरह असहाय” बताते हुए कहा कि ‘वो न तो अंडा उबाल सकते थे और न ही टीवी चालू कर सकते थे।’

मनमोहन सिंह को भारत में आर्थिक सुधारों का श्रेय जाता है। फिर चाहे उनका 2004 से 2014 का प्रधानमंत्री का कार्यकाल रहा हो या फिर इससे पूर्व वित्त मंत्री के रूप में उनका कामकाज। मनमोहन सिंह के नाम एक और उपलब्धि दर्ज है, वह जवाहरलाल नेहरू के बाद पहले भारतीय थे, जिन्हें पूर्ण कार्यकाल के लिए लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री चुना गया। मनमोहन सिंह ने 1984 के सिख दंगों के लिए संसद में माफ़ी मांगी थी। 1984 में हुए सिख दंगों में लगभग 3000 सिख मारे गए थे। मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री के रूप में दूसरा कार्यकाल खासा चर्चित रहा। इस दौरान भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए। कई लोगों का मानना है कि इन घोटालों की वजह से ही 2014 के आम चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।

मनमोहन सिंह साल 1991 में भारत के वित्त मंत्री के तौर पर उभरे, ये ऐसा दौर था जब देश के आर्थिक हालात बहुत ख़राब थे। उनकी अप्रत्याशित नियुक्ति ने उनके लंबे और सफल करियर को नई ऊंचाई दी। उन्होंने एक शिक्षाविद और नौकरशाह के रूप में तो काम किया ही, सरकार के आर्थिक सलाहकार के रूप में भी योगदान किया और भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर भी रहे। वित्त मंत्री के रूप में अपने पहले भाषण में उन्होंने विक्टर ह्यूगो का हवाला देते हुए कहा, ‘इस दुनिया में कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया है।’

ये भाषण उनके महत्वाकांक्षी और अभूतपूर्व आर्थिक सुधार कार्यक्रम की शुरुआत थी। उन्होंने टैक्स में कटौती की, रुपये का अवमूल्यन किया, सरकारी कंपनियों का निजीकरण किया और विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया। इससे अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ, उद्योग तेजी से बढे़, बढ़ रही महंगाई पर काबू पाया गया और 1990 के दशक में विकास दर लगातार ऊंची बनी रही।

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