फिर भी दोस्ती जिंदा है,शिक्षक से सेवानिवृत हुवे हाजी जी और संत जी की दोस्ती अभी भी बरक़रार

फारूख हुसैन 
लखीमपुर (खीरी)निघासन= दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जिसकी इज्जत खुद ईश्वर भी करता है अगर कोई महसूस कर उसे निभा सके तो उसके आगे सारे रिश्ते फीके लगने लगते है फिर उनके लिए मजहब और धर्म माने नहीं रखता एक ऐसी ही दोस्ती की मिसाल हमें देखने को मिली हमारे ही क्षेत्र में जहाँ उन्होंने अपना पूरा जीवन व्यतीत कर दिया ।हाँ  हम  ऐसे ही उन दो  मित्रो की बात करने जा रहे है जिनके लिए हर धर्म से ऊपर है दोस्ती। दोनों  अलग अलग धर्म के हैं परंतु वो हर धर्म को मानते है और वो सभी धर्मों का सम्मान (आदर) भी करते हैं।
ऐसे ही एक दोस्ती की मिसाल हमें देखने को मिली तहसील निघासन के गाँव झंडी के सय्यद काजिम हुसैन और कामता प्रसाद दीक्षित की जिन्होंने अपनी दोस्ती की मिसाल कायम कर दी है। दोनों मित्रो ने एक साथ में पढाई पूरी की थी और साथ  में ही नौकरी की और सबसे अच्छी बात इन दोस्तों के लिए यह रही कि दोनों  की नौकरी बेसिक शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापक के रूप में ही लगी।
काजिम हुसैन सन्  1997 में नौकरी से रिटायर हुए और कामता प्रसाद दीक्षित 1998 में रिटायर हुए। दोनों मित्र जब रिटायर हुए तो काजिम हुसैन हज करने चले गये वहाँ से आने के बाद ये हाजी हो गये और कामता प्रसाद दीक्षित माँ काली के भक्ति में लीन हो गये और गेरआ वस्त्र धारण कर बाबा हो गये और माँ काली की पूजा अर्चना करने लगे जिससे उन्हें सब बाबा जी कहने लगे तो दूसरे  को हाजी जी कहने लगे ।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आपस में सब भाई भाई की कहावत को सच कर दिखाने वाले दोनों दोस्त सभी जाति व धर्म के लोगों को पूरा सम्मान देते हैं आज तक किसी ने उन्हें एक दूसरे के प्रति बैरागी देखा कभी कभी तो दोनों के लिए दोस्ती ही सर्व मान्य हो जाती है  और सभी के साथ कदम से कदम मिलकर चलते हैं और सभी की हर संभव मदद में भी हमेशा आगे रहते हैं । जिससे गाँव के सभी लोग उनके इस काम की सराहना करते है। गृहस्थ जीवन में रहकर भी यह दोनों साथी सामाजिक कार्यो में भी भाग लेते रहते है और आज भी उनकी दोस्ती लोगों के लिए मिसाल बनी हुई है ।

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