मुहर्रम का इतिहास समीर मिश्रा के कलम से

यह एक दर्दनाक कहानी है, लेकिन इसे बहाद्दुरी की मिसाल के तौर पर देखा जा सकता हैं.
यह समय सन् 60 हिजरी का था. कर्बला जिसे सीरिया के नाम से जाना जाता था. वहाँ यजीद इस्लाम का शहनशाह बनना चाहता था, जिसके लिए उसने आवाम में खौफ फैलाना शुरू कर दिया. सभी को अपने सामने गुलाम बनाने के लिए उसने यातनायें दी. यजीद पुरे अरब पर अपना रुतबा चाहता था, लेकिन उसके तानाशाह के आगे हजरत मुहम्मद के वारिस इमाम हुसैन और उनके भाईयों ने घुटने नहीं टेके और पुरे कुनबे को कुर्बान कर दिया.. बीवी बच्चो को हिफाज़त देने के लिए इमाम हुसैन मदीना से इराक की तरफ जा रहे थे.

तब ही यजीद ने उन पर हमला कर दिया. वो जगह एक गहरा रेगिस्तान थी, जिसमे पानी के लिए बस एक नदी थी जिस पर यजीद ने अपने सिपाहियों को तैनात कर दिया था. फिर भी इमाम ने उसकी हुकूमत न कबूल की.  वे सिर्फ 72 थे, जिन्होंने 8000 सैनिको की फ़ौज थी. वे सभी तो कुर्बान होने आये थे. दर्द, तकलीफ सहकर भूखे प्यासे रहकर भी उन्होंने कुर्बान होना स्वीकार किया मगर ज़ालिम कि हुकूमत नहीं स्वीकार कि. आखरी दिन इमाम ने अपने सभी साथियों को कब्र में सुलाया, लेकिन खुद अकेले अंत तक लड़ते रहे. यजीद के पास कोई तरकीब न बची और उनके लिए इमाम को मारना नामुमकिन सा हो गया. मुहर्रम के दसवे दिन जब इमाम नमाज अदा कर रहे थे, तब दुश्मनों ने उन्हें धोखे से क़त्ल कर दिया. इस तरह से यजीद इमाम को क़त्ल तो कर पाया, लेकिन हौसलों के साथ शहीद होकर इमाम जीते और शहीद कहलाया. तख्तो यही से यजीद के साम्राज्य का खात्मा हो गया.

किसी शायर ने क्या खूब इरशाद फ़रमाया है
कत्ले हुसैन असल में मरगे यजीद है
इस्लाम जिंदा होता है कर्बला के बाद.
उस दिन से आज तक मुहर्रम के महीने को शहीद की शहादत के रूप में याद करते हैं.
मुहर्रम का तम क्या हैं ?
मुहर्रम का पैगाम शांति और अमन ही हैं. युद्ध रक्त ही देता हैं. 

हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को कॉर्पोरेट के दबाव से मुक्त रखने के लिए आप आर्थिक सहयोग यदि करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें


Welcome to the emerging digital Banaras First : Omni Chanel-E Commerce Sale पापा हैं तो होइए जायेगा..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *