राष्ट्रीय राज मार्ग के मुआवजा मामला – फिर सुलगने लगी है मुआवजे की मांग को चिंगारी

सुभाष गुप्ता

बसखारी ,अंबेडकरनगर। १९२१मे आजादी के लिए बसखारी की धरती से शुरु हुए किसान अन्दोलन की चिंगारी एक बार फिर मुआबजे की माग को लेकर सुलगने लगी है। तब और अभी के आन्दोलन मे फर्क सिर्फ इतना है कि तब किसानो की लडाई अग्रेजो के विरूद्ध आजादी के लिए थी और अब अपनी जमीनो के मुआबजे व वैचारिक स्वत्रन्ता के लिए।अंबेडकर नगर जिले के राष्ट्रीय राजमार्ग २३३(लुम्बनी-वाराणसी)के निर्माण से प्रभावित किसानों का आंदोलन कोई नया व पहला आंदोलन नहीं है।

अपनी मांगों व अपने साथ हुए अत्याचार को लेकर किसानों ने आजादी के पहले और आजादी के बाद भी कई आंदोलनो को अंजाम दिया है। अंबेडकर नगर जिले में भी मुआवजा बढ़ाए जाने की मांग को लेकर  किसानों के अब तक के आंदोलन व स्थानीय प्रशासन की  कार्य शैली को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि जमीन की लड़ाई में उनके असली हकदार जमीन पर ही कमजोर पड़ रहे हैं।इसे प्रशासन की बेरुखी कहें या किसानों की कमजोरी जो किसानों को उनकी मांगों को लेकर कई बार आश्वासन देने के बावजूद भी उनके हक में फैसला नहीं दे पा रहा है जिससे  आंदोलन कर रहे किसानों के अन्दर प्रशासन , एनएच के अधिकारियों व सड़क निर्माण में लगे कार्यदायी संस्था के कर्मचारियों व अधिकारियों के प्रति आक्रोश बढ़ता जा रहा है। किसानों का आरोप है कि सरकार बगैर मुआवजा दिए उनकी जमीनों का अधिग्रहण कर जबरदस्ती सडक निर्माण कर रही है।जबकि किसानों के अनुसार सड़क निर्माण से उन्हें कोई आपत्ति नहीं है बशर्ते उन्हें आजमगढ़ के समकक्ष या वर्तमान सर्किल रेट के हिसाब से मुआवजा मिलना चाहिए।सडक निर्माण के दौरान निर्माण कार्य में लगे कर्मियों व प्रभावित किसानों के बीच आये दिन हो रही तू तू मैं मैं को देखते हुए जिले में भी भट्टा-पारसौल जैसी किसी अनहोनी घटना से इंकार भी नहीं किया जा सकता। भट्टा परसौल में किसानों का विरोध प्रदर्शन आज भी लोगों की जेहन में है। यहां पर भी अपनी जमीन के लिए सड़कों पर उतरे किसानों का आंदोलन हिंसक उठा था।अब उसी प्रकार अंबेडकरनगर के टांडा व आलापुर तहसील में राष्ट्रीय राजमार्ग २३३ से करीब ४३ गांव के लगभग छह हजार प्रभावित किसानों ने  संघर्ष मुआवजा समित के नेतृत्व में ४ अगस्त २०१६ को डोडो ग्राम सभा में प्रभावित सैकड़ों किसानों की महापंचायत कर मुआवजा बढाये जाने के लिए आंदोलन करने की रणनीति बनाकर कई एक दिवसीय धरना व महापंचायत कर अपनी मागो से सम्बधित ज्ञापन प्रशासन को सौप चुके है।किसानो ने अपनी मांगों को पूरा ना होता देख बसखारी थाना क्षेत्र के भोजपुर में स्थित कार्यदाई संस्था के बेस कैंप के सामने अपनी मांगों को पूरा करवाने हेतु ५ दिसंबर २०१६ से अनिश्चितकालीन धरना शुरु कर दिया, जिसकी लौ जिला मुख्यालय होते हुए दिल्ली के जंतर मंतर तक भी जा पहुंची थी।किसानों के इस धरने व आंदोलन को भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) व अखिल भारतीय किसान संघर्ष मोर्चा समित के साथ साथ काफी अन्य राजनैतिक व गैर राजनैतिक लोगों का भी समर्थन प्राप्त रहा। इस बीच  जिलाधिकारी अंबेडकरनगर से लेकर सुबे के मुख्यमंत्री ,चुनाव आयोग,प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति तक को अपनी मांगों से संबंधित ज्ञापन सौप चुके है।आजमगढ़ के समकक्ष या वर्तमान सर्किल रेट पर ही मुआवजे लेने की माँग को लेकर  धरना दे रहे किसानो के आन्दोलन को समाप्त कराने के लिए स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों व निर्माण कार्य में लगी कार्यदाई संस्था के कर्मचारियों व अधिकारियों ने साम-दाम-दंड-भेद आदि कई अन्य विधियां अपना कर भी जब समाप्त नहीं करवा पाये तो प्रदेश में होने वाले चुनाव के  मद्देनजर विगत ४ जनवरी को जारी चुनाव आचार संहिता के लागू होते ही प्रशासनिक अमले को जैसे कोई बज्रबाण मिल गया हो ,चुनाव आचार संहिता और धारा १४४ का प्रयोग करते हुए जिले के प्रशासन  ने पी एस सी व पैरामिलिट्री के जवानों के बल पर किसानों के महीनों से चल रहे धरने को जबरन समाप्त करवा पाने में तो सफल रहा लेकिन इस दौरान किसानों के ऊपर दर्ज हुए मुकदमें व बलपूर्वक धरने को समाप्त कराए जाने से नाराज कुछ किसानो ने दिल्ली के जंतर मंतर पर भी धरना देना शुरु कर दिया।वही प्रशासन को बज्रबाण के रुप में मिले चुनाव आचार संहिता व धारा १४४ के हथियार की अवधि भी अब कुछ दिनों में खत्म होने की कगार पर है। किसानों की माने तो प्रशासन व प्रभावित किसानों के बीच हुई वार्ता मे प्रशासन ने आर्बिट्रेशन में आने पर किसानों के हक में फैसला सुनाने का वादा किया था लेकिन आर्बिट्रेशन में तारीख पर तारीख देकर किसानों को गुमराह करने का आरोप भी आर्बिट्रेशन में गए किसानों ने प्रशासन के ऊपर लगाया।वही आर्वीटेशन में तारीख पर तारीख मिलने से आक्रोशित किसानों के १६ मार्च से पुनरूआंदोलन करने की  सुगबुगाहट तेज होने लगी है। मुआवजे की मांग को लेकर राष्ट्रीय राजमार्ग २३३ से प्रभावित किसानों के आंदोलन व  प्रशासन व राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण के अधिकारियों के अभी तक के रुख को  देखते हुए बस इतना ही कहा जा सकता है कि जमीन के बदले मुआवजे की माँग की लड़ाई में उन के असली हकदार जमीन पर ही कमजोर पड़ रहे हैं।

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