दिग्विजय सिंह के कलम से – और जारी है सडको पर इन बाहुबलियों के वर्चस्व की जंग
दिग्विजय सिंह.
कानपुर. दोपहर ढलने को थी. शाम नजदीक थी गर्म हवाए अपनी शिद्दत को कम करने के लिए बेताब नज़र आ रही थी. शहर गर्मी के इस लू के चपेटो से बचकर अब घरो और कार्यालयों से बाहर निकल कर सडको पर अपने रोज़मर्रा के काम निपटाने को भाग दौड़ कर रहे थे. स्टेशन पास होने पर यात्री ट्रेन पकड़ने या फिर ट्रेन से उतर कर अपने गंतव्य के तरफ जाने को सवारिया तलाश रहे थे. वही पास ही पुलिस कर्मी अपने दिनचर्या के अनुसार वाहनों की चेकिंग कर रहे थे.
इसी बीच सड़क के बीचो बीच नगर के दो बाहुबली (सांड) टहल रहे थे. दोनों ने अपने अपने राज को कायम रखने का इससे बड़ा मौका नहीं मिलता देख सडको के बीच ही सींग लड़ा लिया और शायद एक दुसरे से कहा होगा तू मेरा इलाका छोड़ दे. शायद दूसरा भी यही शब्द दुहरा रहा होगा तो फिर शुरू हो गई बाहू बल की एक लड़ाई. ये एक ऐसी लड़ाई होती है जिसमे हार जीत इन दोनों बाहुबली में किसी की हो. घायल केवल राहगीर होता है. नुक्सान इन बाहुबलियों का हो न हो मगर नुकसान आम राहगीर और इलाके के दुकानदारो और मकान वालो का होता है.
कुछ देर तक एक दुसरे के सर से सर लगाये ये बाहुबली अपने वर्चस्व की जंग को बीच चौराहे पर लड़ रहे थे. शायद ऐसे मौके आपने भी देखे होंगे कि दो बाहुबली बीच चौराहे पर अपने वर्चस्व की अनोखी जंग लड़ रहे हो और पास खड़ा पुलिस प्रशासन मूकदर्शक बना हो. यहाँ भी ऐसा ही हो रहा था. पास खड़ा प्रशासन केवल मूक दर्शक की भूमिका में था. और क्यों न हो डर तो उसको अपना भी है कि कही इन बाहुबलियों के वर्चस्व के इस जंग में मैं बोलू और ये बाहुबलियों के रक्षक आकर कही अपने राजनितिक रोटिया न सेकने लगे कि आखिर गोवंश पर तुमने क्यों हमला कर दिया.
खैर साहेब कुछ लोगो ने हिम्मत जुटाई. ये बाहुबली कही और जाकर अपने शक्ति प्रदर्शन करे मगर इस इलाके को छोड़ दे, कोई पानी तो कोई ;लाठी से इनको अलग करना चाहता था, मगर दोनों बाहुबलियों ने आज अपने अपने वर्चस्व को कायम करने की ठान लिया था और जंग शुरू हो चुकी थी. कुछ राजगीरो को धक्के लगे. कोई गिर गया. फुटपाथ पर फेरी वाले गरीबो का खोमचा उजड़ गया मगर बाहुबलियों ने अपनी जंग जारी रखा.अंततः एक बाहुबली ने अपने आपको हारा समझ कर किनारा कर लिया और दौड़ लगा दी. इस दौड़ ने भी आम राहगीरों को नुकसान पहुचाया.
इस घटना को देख कर दिमाग में एक बात कौंध रही है. नगर निगम के साहेब लोग शायद इसको समझ सकते है. सडको पर आवारा पशुओ को पकड़ने के लिए एक अलग से विभाग है. उसके पास मजबूत और महंगे वाहन है. कर्मचारियों की फ़ौज है. उनको मोटी तनख्वाह भी दिया जाता है फिर आखिर ये आवारा पशु सडको पर कैसे है. आपको यह स्थिति केवल एक जगह नहीं बल्कि पुरे शहर में दिखाई देगी. फिर आखिर इस विभाग का औचित्य क्या है. फिर आखिर इस विभाग के कर्मी क्या करते है. आखिर इस विभाग के कर्मी जब अपना काम नहीं करते है तो फिर नगर निगम के साहेब लोग उनको किस काम पर लगाये हुवे है. इस प्रश्न का उत्तर तो शायद नगर आयुक्त महोदय ही दे सकते है मगर साहेब शब्दों का क्या है कहा जायेगा हम देखते है जाँच करवाते है.