बिहार : इलाज की आड़ में मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़….जानें कैसे
गोपाल जी,
पटना : पहले सस्ते इलाज का लालच और फिर अनाप-शनाप बिल. पटना के बाइपास पर कुकुरमुत्तों की तरह खुले निजी नर्सिंग होम व अस्पतालों की बस यही कहानी हो गयी है. हर दिन इन अस्पतालों में हजारों की संख्या में मरीज पहुंचते हैं, जिनमें बड़ी संख्या में गरीब होते हैं. इनको पहले तो सस्ते इलाज का लालच देकर फंसाया जाता है. फिर महंगे इलाज व दवाओं के बोझ तले दबा दिया जाता है.
इनमें से कई मरीज घर-जमीन बेच कर या भीख तक मांग कर बिल चुकाते हैं. कई मजबूरीवश पैसा जमा नहीं कराने पर अस्पताल प्रशासन द्वारा बंधक तक बना लिये जाते हैं. हाल ही में अगमकुआं स्थित मां शीतला इमरजेंसी हॉस्पिटल के प्रबंधक को नियम के विपरीत इलाज करने व मरीज को बंधक बनाये रखने के मामले में गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है. आज से हम बाइपास पर खुले इन अस्पतालों की पड़ताल करती शृंखला की शुरुआत कर रहे हैं. पेश है इसकी पहली कड़ी.
एक नजर में समझें इन अस्पतालों का खेल
– 12 किलोमीटर में करीब 105 प्राइवेट अस्पताल, लेकिन किसी ने नहीं कराया रजिस्ट्रेशन – स्वास्थ्य विभाग को पता नहीं बाइपास इलाके में कितने प्राइवेट अस्पताल हो रहे संचालित
– प्रदेश के दूर दराज जिलों से होता है इनका संबंध, मरीज लाने के बदले मिलता है कमीशन
– ओपीडी नि:शुल्क, मरीज की कर देते हैं सीधे भर्ती, यहां से शुरू होता है खेल
– क्लिनिकल इस्टाब्लिशमेंट एक्ट की खुलेआम उड़ रही धज्जियां, चार कमरे में संचालित हो रहे अस्पताल
– नामी डॉक्टरों के नेम प्लेट लगाकर मरीजों को करते हैं भर्ती, लेकिन जूनियर डॉक्टर करता है इलाज परेशान होकर आते, लुट कर जाते हैं यहां आने वाले मरीज सेहत से हो रहा खिलवाड़
इन अस्पतालों में मरीजों की सेहत के साथ खुलेआम खिलवाड़ किया जाता है. न तो उनके पास पर्याप्त उपकरण होते हैं, न ही नर्सिंग सेवा उपलब्ध कराने को पर्याप्त मैन पावर. इनमें भर्ती होने वाले अधिकांश मरीज इमरजेंसी प्रकृति के होते हैं, इसलिए अस्पताल प्रशासन द्वारा उनको ब्लैकमेल करना भी आसान होता है. बड़ी बात यह है कि कोई भी अस्पताल साइलेंस जोन में नहीं है.
– 24 घंटे वाहनों के शोर गुल: मरीजों को बाईपास की वजह से 24 घंटे वाहनों के शोर गुल के बीच ही रहना पड़ता है. अस्पताल इसके लिए प्रदूषण बोर्ड से नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट भी नहीं लेते.
स्वास्थ्य विभाग को पता नहीं
सबसे पहले हमारे रिपोर्टर ने अनिसाबाद गोलंबर से लेकर जीरो माइल तक 12 किमी की पड़ताल की तो सिर्फ मुख्य सड़क पर ही 105 छोटे-बड़े अस्पतालों के बोर्ड नजर आये. यह अस्पताल पिछले दस वर्षों में काफी तेजी से खुले हैं. हर अस्पताल के बाहर मरीज व उनके परिजन की भीड़ दिखायी पड़ती है. मजे की बात यह है कि किसी भी अस्पताल ने क्लिनिकल इस्टाब्लिशमेंट एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है जिसके चलते उनमें उपलब्ध सुविधाओं का ऑडिट नहीं हो पाता. सभी अस्पताल एक्ट के नियम को ताक पर रख कर संचालित हो रहे हैं.
नामी डॉक्टरों के नाम पर लूट
बाइपास इलाके में संचालित हो रहे अधिकांश अस्पताल बिहार के नामी डॉक्टरों के नेम प्लेट लगाकर मरीजों को लूटने का खेल कर रहे हैं. यह खेल डॉक्टरों और अस्पताल संचालकों की मिलीभगत से हो रहा है. इस मामले में स्वास्थ्य विभाग ने अभी तक एक भी अस्पताल को चिह्नित नहीं किया है. मरीज नामी डॉक्टर के नाम पर संबंधित अस्पताल में चले तो आते हैं, लेकिन जब इलाज कराने जाते हैं तो नामी डॉक्टर के बदले दूसरे डॉक्टर से इलाज करा दिया जाता है. वहीं, अगर मरीज विरोध करता है तो अस्पताल के संचालक कई तरह का बहाना भी बना देते हैं. मरीजों के मुताबिक रजिस्टर में नामी डॉक्टर की इंट्री दिखाई जाती है. मरीजों के ऑपरेशन भी इनके नाम से किये जाते हैं.