बहुचर्चित नगरडीह हत्याकांड में सहआरोपी को नही खोज सकी पुलिस

हरिशंकर सोनी.
सुलतानपुर। बहुचर्चित नगरडीह हत्याकांड में हाईकोर्ट के निर्देश पर निष्पक्ष जांच का दावा करने वाली पुलिस घटना के करीब एक वर्ष बाद भी मुख्य आरोपी के साथ घटना में संलिप्त अन्य आरोपियों की तलाश नही कर सकी है। जबकि जांच कर रहे थानाध्यक्ष ने ही कुछ दिनों पूर्व आरोपी का सुराग लग जाने की बात कहते हुए उसे पकड़ना मात्र ही शेष रहने की बात कही थी।पर अब यह बात भूलकर थानाध्यक्ष सीजेएम कोर्ट में विचाराधीन मानिटरिंग में बगैर मुल्जिम की गिरफ्तारी हुए ही विवेचना समाप्त कर देने का तथ्य पेश कर रहे है। अभियोजन पक्ष ने थानाध्यक्ष की विवेचना पर सवाल खड़ा करते हुए हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखने की बात कही है।
मालूम हो कि पीपरपुर थाना क्षेत्र के नगरडीह की रहने वाली अनीता बीते वर्ष 17 दिसम्बर की शाम गेहू की सिंचाई करने गयी हुई थी। इसी दौरान गांव के ही आरोपी सूरज पांडेय ने युवती अनीता से छेड़खानी की। जब उसने विरोध जताया तो अरोपियों ने राज खुलने के डर से उसे जहर खिला दिया। हालत नाजुक होने पर उसे जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां पर उसका मृत्यु से पहले बयान भी दर्ज हुआ और फिर उसने दम तोड़ दिया।
मृतका के परिजनों ने घटना की शुरूआत में ही तत्कालीन थानाध्यक्ष भरत उपाध्याय को मामले की सूचना दी, लेकिन थानाध्यक्ष ने आरोपियों के प्रभाव में मुकदमा ही नही दर्ज किया। फिलहाल उन्हें जब पीड़िता की हालत गम्भीर होने के बाद मौत हो जाने की सूचना मिली तो आनन-फानन में एफआईआर दर्ज कर लिया गया। इस मामले में पुलिस की कार्यशैली एफआईआर दर्ज करने से लेकर, पोस्टमार्टम कराने, विसरा व अन्य जांच सम्बंधी स्लाइड के लिफाफे को नष्ट करने का प्रयास कर जांच को प्रभावित करने एवं विवेचना में भी सवालों के घेरे में रही। पुलिस की इन्ही कार्यशैलियों की वजह से विधि-विज्ञान प्रयोगशाला लखनऊ में भेजा गया विसरा बगैर जांच किए ही वापस भेज दिया गया। मालूम हो कि एफआईआर में मृतका की बड़ी माॅ ने अपनी जानकारी के मुताबिक सूरज पांडेय व दो अन्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। वहीं पीड़िता ने मृत्युपूर्व बयान में सूरज पांडेय के अलावा एक अन्य को आरोपी बताया। इस मामले में पुलिस ने आरोपी सूरज पांडेय को गिरफ्तार कर घटना के बाद ही जेल भेज दिया था। जबकि अज्ञात आरोपियों की तलाश जारी रही। फिलहाल पुलिस की यह तफ्तीश इतनी धीमी रही कि करीब 10 महीनों तक अज्ञात आरोपियों का सुराग लगा पाने में पुलिस असफल रही।
यह रवैया देखकर निष्पक्ष जांच की मांग को लेकर मृतका के पिता रामनेवाज मौर्य ने हाईकोर्ट की शरण ली। हाईकोर्ट ने प्रकरण को गम्भीरता से लेते हुए एसपी अमेठी को दो माह के भीतर मामले की निष्पक्ष जांच कराए जाने के सम्बंध में बीते एक सितम्बर को आदेश पारित किया। जिसके कुछ ही दिनों बाद अभियोजन पक्ष ने आदेश की काॅपी मामले के वर्तमान विवेचक डीके सिंह को एसपी के माध्यम से उपलब्ध करा दिया। फिलहाल हाईकोर्ट के निर्देश के बाद भी थानाध्यक्ष डीके सिंह ने विवेचना में खास दिलचस्पी नही दिखाई। नतीजतन हाईकोर्ट के निर्देशानुसार दो माह का समय बीत जाने के बाद भी पुलिस अज्ञात आरोपियों का सुराग नही लगा सकी। पुलिस की इस कार्यशैली को देखकर मृतका के पिता रामनेवाज ने हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन कराने के लिए सीजेएम कोर्ट में मानिटरिंग अर्जी दी।
इस दौरान अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता अशोक कुमार सिंह ने पुलिसिया कार्यशैली पर विरोध जताते हुए कार्यवाही की मांग की। जिस पर सुनवाई के पश्चात सीजेएम विजय कुमार आजाद ने बीते 24 नवम्बर को एसपी अमेठी को पत्र भेजकर प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराकर शीघ्र अवगत कराने का निर्देश दिया। अदालत के इसी आदेश के क्रम में थानाध्यक्ष डीके सिंह बुधवार को सीजेएम कोर्ट में तलब हुए जिन्होनें बीते 04 दिसम्बर को विवेचना समाप्त कर देने की बात अदालत में कही है। इस दौरान थानाध्यक्ष डीके सिंह कोे उनके व्यक्तिगत व्यवहार के चलते कोर्ट की कड़ी फटकार भी सुननी पड़ी। वहीं थानाध्यक्ष से विवेचना समाप्त कर देने के बाद दूसरे आरोपी के विषय में पूंछा गया तो उन्होंने बताया कि उनकी जांच में कोई अन्य आरोपी मिल ही नही रहा है तो किसको वह मुल्जिम बना दे। फिलहाल उन्होंने बीते 11 अक्टूबर को इसी सम्बंध  में पूछने पर बयान दिया था कि आरोपी का सुराग लग चुका है उसकी तलाश जारी है।
उनके इस बयान पर अगर गौर किया जाए तो आखिर थानाध्यक्ष का वह बयान सही था या फिर यह बयान? यहीं नही अभियोजन पक्ष की माने तो उन्होंने घटना के कुछ ही दिनो के बाद एसपी को गवाहों की बयानहल्फी भी भेजी थी। जिसमें चश्मदीद गवाहों ने आरोपी विकास उर्फ लकी एवं सुरेन्द्र पांडेय का नाम सहआरोपी के रूप में बताया था। फिलहाल अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान को पुलिस ने नकारते हुए मन-मुताबिक विवेचना की। जिन्हे जांच में सूरज पांडेय के अलावा अन्य किसी का नाम मिला ही नही। अभियोजन पक्ष ने थानाध्यक्ष पर जेल में निरूद्ध सूरज पांडेय का रिमांड न लेने एवं उससे जान-बूझकर पूछताछ न करने का भी आरोप लगाया है।
फिलहाल थानाध्यक्ष डीके सिंह सभी आरोपो को इनकारते हुए अपने को बहुत साफ-सुथरी जांच करने वाला पुलिस अधिकारी बता रहे है।वहीं देखा जाय तो इतने गम्भीर मामले में पूर्व विवेचक भरत उपाध्याय के बाद थानाध्यक्ष डीके सिंह की कार्यशैली भी सवालो के घेरे में है।आखिर जिस विवेचक को अपनी जांच के बाद ही कुछ दिनों पूर्व दूसरे आरोपी का भी सुराग लग चुका हो और बाद में उसकी गिरफ्तारी ही न हो पाये और उसके बाद मामले की जांच ही खत्म कर दी जाय ,यह बातें स्वयं में थानाध्यक्ष डीके सिंह की कार्यशीली व बयान पर संदेह पैदा कर रहीं है।यह जांच आखिर किस वजह से प्रभावित हुई यह भी अभी रहस्य बना हुआ है।पुलिस की इस विवेचना पर असंतोष व्यक्त करते हुए मृतका के पिता ने हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखकर न्याय की मांग करने की बात कही है।

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