अरशद रज़ा की कलम से – परिषदीय शिक्षको का कार्य बंजर भूमि मे फसल उगाने जैसा
अमरोहा. परिषदीय शिक्षको का कार्य उस किसान के कार्य के समान है जो कड़ी मेहनत कर बंजर भूमि मे फसल उगा देता है ये बात शिक्षक समाज को भी समझना चाहिये। परिषदीय शिक्षक वह कठिन कार्य करते है जिसे करने कि कोई व्यक्ति सोचता भी नही है।ये शिक्षक उन बच्चो को स्कूल लाते है जिनका नाता शिक्षा से दूर दूर तक नही होता। इन बच्चो को अभिभावक पढ़ाने के बजाय खेती व गृह कार्य मे लगाना पसन्द करते है।
परिषदीय शिक्षक इन अभिभावको का मिथ्य तोड़कर व उन्हे विश्वास मे लेकर इन बच्चो को स्कूल लाने का कठिन कार्य भरपूर रूप से करते है। बच्चो को स्कूल लाने के बाद शिक्षको की डगर और कठिन हो जाती है क्योकि इन बच्चो मे ज्यातर बच्चे वह होते है जिन पर न तो पेन्सिल होती है और न ही काॅपी।शिक्षक ऐसे बच्चो को अपनी जेब से भी ये सामग्री लाकर दे देते है।साथ ही साथ बच्चो के उत्साहवर्धन के लिये पुरूस्कार आदि का प्रबन्ध भी शिक्षक अपनी ही जेब से करते है। वही दूसरी ओर और भी समस्याऐ होती है जिससे शिक्षक दो चार होते है जैसे- बच्चो के साथ उनके छोटे गोद के भाई बहन का आना, स्कूल मे असामाजिक तत्वो , जुआरियो व शराबियो का हुड़दन्ग आदि।
परिषदीय शिक्षको को शिक्षण कार्य के अतिरिक्त गैर शैक्षणिक कार्य जैसे – पोलियो, मिड डे मील, बी एल ओ, सर्वे, निर्वाचन, राशन कार्ड , हाई स्कूल व इण्टर परीक्षाओ आदि मे भी लगाया जाता है।इन कार्यो से शिक्षण कार्य पर प्रभाव पड़ता है तथा शिक्षको की समाज मे नकारात्मक छवि बन जाती है कि वह स्कूल नही आते,जबकि शिक्षक इन सरकारी कार्यो मे स्कूल से बाहर रहते है।यूनेस्को की स्कूली शिक्षा पर प्रकाशित 2017-18 की एक रिपोर्ट के अनुसार स्कूली शिक्षा की खराब गुणवत्ता के लिऐ सिर्फ शिक्षक ही जिम्मेदार नही है बल्कि समाज, सरकार व अभिभावक भी बराबर के ही जिम्मेदार है।
एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार सरकारी शिक्षक सबसे कम स्कूल से अनुपस्थित रहते है।अगर विश्लेषण किया जाये तो समाज मे सरकारी शिक्षको की छवि नकारात्मक दिखाई जाती है जो सही नही है।इतनी ईमानदारी व लगन से कार्य करने पर भी शिक्षको पर निलम्बन की तलवार हर समय लटकी रहती है।ज़रा-ज़रा सी गलती पर ही शिक्षको को निलम्बित कर दिया जाता है जो भारतीय समाज मे कदाचित उचित नही है क्योकि भारतीय समाज मे गुरूजनो को सबसे उच्च स्थान प्रदान किया गया है।अगर भारतवर्ष मे ही गुरूओ का सम्मान नही होगा तो फिर कहा होगा।शिक्षको को उनका खोया हुआ मान सम्मान वापस मिलना ही चाहिये।
नोट – लेख में लिखे तथ्य लेखक की अपनी अभिव्यक्ति है,