ज़मीन पर सोकर ज़िन्दगी बसर कर रही है सुशासन बाबु की पुलिस
बिहार. (नवादा) समाज में जब कोई पीड़ित होता है तो उसे पुलिस का सहारा लेना पड़ता है। अपराध हो तो पुलिस, चक्काजाम हो तो पुलिस , अतिक्रमण हटवाना हो तो पुलिस हर छोटी से बड़ी परेशानी में लोग पुलिस को ही याद करते है। जनता के सामने खुद को बोल्ड दिखाने वाले पुलिस कर्मियों के भीतर कितना दर्द है क्या आप उसे जानते है ? हमे उनके दर्द को भी जानना होगा जनता को उन्हें भी समझना होगा। यह सत्य है कि कभी-कभी पुलिसकर्मियों के अमानवीय कृत्य पूरे विभाग को शर्मसार करते है मगर सभी को एक ही चश्मे से देखना भी बेमानी होगी।
बहुत कम ऐसे लोग होंगे जिन्हें पुलिसकर्मियों द्वारा उठाई जा रही परेशानियों के बारे में पता हो। सरकारी सभी विभागों में ड्यूटी का निश्चित समय है पुलिस विभाग को छोड़कर। बारह घंटे की ड्यूटी करने के बाद भी जरुरत पड़ने पर उन्हें फिर से ड्यूटी पर वापस बुला लिया जाता है, ज्यादातर पुलिसकर्मियों को सरकारी आवास न मिलने पर बैरक में रहने को मजबूर होना पड़ता है। जी हां ताजा मामला नवादा का है जंहा उत्पाद विभाग में तैनात होमगार्ड व सैफ के जवानों को दिन या रात भर डयूटी करने के बाद उन्हें एक बेड भी सुशासन बाबु की सरकार मुहैया नही करा सकती. वह कैदियों की तरह ज़मीन पर सोने को मजबूर है. एक कोठारी में ही रहना और खाना सब होता है. इन तस्वीरो को देख कर आपको अंदाजा हो सकता है कि आखिर किस हाल की ज़िन्दगी जी रहे है ये पुलिस कर्मी.
कहने को तो बिहार में शासन की बागडोर संभाले हुवे मुख्यमंत्री खुद को सुशासन बाबु कहलाना पसंद करते है मगर इस तरफ इनका शायद ध्यान न गया हो. ज़रा इन कमरों का कभी जायजा ले ले सुशासन बाबु. एक आम इंसान सिर्फ एक हफ्ते में बीमार पड़ जायेगा इन कमरों में. सीलन भरे कमरे की सीत शायद पेट की आग बुझाने के लिये जलने वाले चूल्हे से कम हो जाती है. कपडे सुखाने और रखने की व्यवस्था न होने के कारण सर के ठीक ऊपर ही डोरी बाँध कर उसके ऊपर लटकाना पड़ता है. खाना बनाने के लिये जगह नहीं होने पर बिस्तर के बगल में ही खाना बना लेना पड़ता है. और तो और साहेब खुद के सामन रखने की जगह तक इन कमरों में नहीं है तो ये लोग उन सामानों को भी बगल में बिस्तर के लगा कर ज़मीन पर सो लेते है.
अब सवाल यह पैदा होता है कि आखिर इसके लिये जवाबदेही किसकी बनती है. शासन की अथवा स्थानीय प्रशासन की.