पुराने अनुभवों की जमीन पर कुम्भ 2019 की नई तैयारियों के लिए मंथनपुराने अनुभवों की जमीन पर कुम्भ 2019 की नई तैयारियों के लिए मंथन

कनिष्क गुप्ता

इलाहाबाद। कुम्भ 2019 के आयोजन की तैयारियों के लिए विगत कुम्भ आयोजनों के अनुभवी अधिकारियों ने प्रयाग के कुम्भ 2019 के सम्बन्ध में कार्यरत अधिकारियों के साथ अपने अनुभव साझा किए। सर्किट हाउस इलाहाबाद के सभागार में कुम्भ में आपदा प्रबन्धन विषय पर आधारित कार्यशाला का उद्घाटन एवं अध्यक्षता मण्डलायुक्त डाॅ. आशीष कुमार गोयल ने की तथा मुख्य अतिथि देवेश चतुर्वेदी वर्तमान संयुक्त सचिव एवं पूर्व मण्डलायुक्त इलाहाबाद थे। उत्तर प्रदेश के राहत आयुक्त संजय कुमार के संयोजकत्व में आयोजित इस कार्यशाला में बिहार राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण के पूर्व सदस्य अनिल के. सिन्हा, राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण के सलाहकार ब्रिगेडियर अजय गंगवार, महाराष्ट्र सरकार के प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान के कर्नल सुतनेकर, रेलवे से आई.आर.टी.एस. के वरिष्ठ प्रोफेसर संजय त्रिपाठी, ऐन.डी.आर.एफ. ग्यारहवी बटालियन के सी.ओ.ओ सहित कई वरिष्ठ अधिकारी तथा कुम्भ आयोजन से जुड़े सभी प्रमुख विभागों के अधिकारी पूरे दिन कार्यशाला में उपस्थित रहे। इस कार्यशाला में कुम्भ आपदा प्रबन्धन के साथ-साथ कुम्भ आयोजन के सभी पहलुओं पर बहुत विस्तार से विचार-विमर्श हुआ।

इस सेमिनार में विगत कुम्भ 2013 तथा उज्जैन और नासिक कुम्भ से जुड़े अधिकारियों ने आपदा और भीड़ प्रबन्धन  पर अपने आयोजन की रणनीति पर विस्तार से चर्चा की। कार्यशाला के प्रारम्भ में मण्डलायुक्त डाॅ. आशीष कुमार गोयल ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यशाला का उद्घाटन किया तथा उत्तर प्रदेश शासन ने विषय प्रवर्तन किया। संजय कुमार ने कहा कि कुम्भ का आयोजन इलाहाबाद के अधिकारियों के लिए एक चुनौती की तरह है, जिसमें हर बार हम अपने ही बेहतर रिकार्ड तोड़ कर आगे बढ़ते है। एन.डी.एम.के सलाहकार ब्रिगेडियर अजय गंगवार ने एक तकनीकि प्रेजेंटेशन से भीड़ का सही अनुमान तथा आगन्तुकों की सही संख्या आकलित करने की तकनीकि पर प्रकाश डाला।

गंगवार ने कहा कि इस वृहद आयोजन में देश के अलावा दुनिया के 75 से अधिक देशों के लोग आते है अतः भीड़ का सही पूर्वानुमान ही आयोजन के प्रबन्धन की सही दिशा दे सकता है। मुख्य अतिथि के तौर पर 2013 कुम्भ के समय मण्डलायुक्त एवं वर्तमान में संयुक्त सचिव भारत सरकार देवेश चतुर्वेदी ने कहा कि आपदा प्रबन्धन के नाम पर कुम्भ की यह कार्यशाला वास्तव में कुम्भ के सकल प्रबन्धन की कार्यशाला है। चतुर्वेदी ने कहा कि किसी भी प्रकार की आपदा में हानि मानव की होती है। अतः जान-माल की सुरक्षा को केन्द्र में रखकर किया जाने वाला हर प्रबन्धन आपदा प्रबन्धन की श्रेणी में आता है। कुम्भ में आने वाले हर आगंतुक को संतुष्ट और प्रसन्न रखते हुए स्नान कराकर उसे वापस पहुंचा देना ही सबसे बड़ा प्रबंन्धन है। चतुर्वेदी ने कुम्भ आयोजन के अनेक अनुभव कार्यशाला में उपस्थित अधिकारियों से साझा किए तथा व्यवहारिक रूप से आने वाली तत्कालिक समस्याओं से निपटने के गुण सिखाए।

चतुर्वेदी ने कहा कि कुम्भ के रूप में एक विशाल जन सम्मेलन आयोजित होता है जिसमें सभी विभाग अपने-अपने विषय से जुड़े प्रबन्धन के लिए जिम्मेदार होते हे। अतः सभी अधिकारियों को अपने विभाग से सम्बन्धित कार्ययोजना तथा उसमें आने वाली दिक्कतों का पूर्वानुमान कर लेना चाहिए एवं पहले से उसकी तैयारी रखनी चाहिए। चतुर्वेदी ने कहा कि कुम्भ और माघ मेले को वास्तव में कल्पवासी ही बसाते है किन्तु कुम्भ में देश और दुनिया के हर कोने से लोग आते है इसलिए लोगों के मार्गदर्शक साइनेज और अनाउसमेंट सिस्टम न्यूनतम द्विभाषीय होने चाहिए तथा इसके लिए हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी का भी प्रयोग किया जाना चाहिए। उन्होंने अधिकारियों को आगाह किया कि वे कुम्भ में केवल पहले स्नान पर्व की व्यवस्था से संतुष्ट न हो बल्कि मौनी अमावस्या एवं अन्य हर स्नान पर्व को बराबर चुनौती के रूप में ले तथा हमेशा सर्तक रहे।

चतुर्वेदी ने अधिकारियों को यह सुझाव दिया कि कुम्भ के प्रबन्धन में बड़े से छोटे हर अधिकारी को अपना अहंकार छोड़ कर सेवा भाव से कार्य करना चाहिए तथा अपने विभाग के न्यूनतम स्तर के कर्मचारी को भी टीम भावना से प्रेरित करते रहना चाहिए। देवेश चतुर्वेदी ने अपने अनुभवों के आधार पर प्रशासन को यह सुझाव दिए कि मेला क्षेत्र में कल्पवासियों के लिए अस्थाई गैस कनेक्शन की व्यवस्था कराई जानी चाहिए, जिससे मेला क्षेत्र के बाहर से तथा अवैध गैस सिलेंडर के प्रयोग पर रोक लगाकर आग आदि की आपदा को रोका जा सके।

इसी प्रकार उन्होंने सुझाव दिया कि रोड वेज के किराये में कमी करके रेलवे की भीड़ को बसों की ओर भी मोड़ा जा सकता है। कार्यशाला में अनिल के. सिन्हा ने रिस्क फैक्टर को समझने तथा उसकी जरूरत के मुताबिक पूर्व तैयारियों करने पर प्रकाश डाला। उन्होंने आपदा से सम्बन्धित क्या करे और क्या न करे की जानकारी पर आधारित एक छोटी पुस्तिका सभी कर्मचारियों के पास रखे जाने की अनिवार्यता बताई। सिंह ने कहा  कि पुराने अनुभवों के आधार पर चिन्हित समस्याओं पर आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। महाराष्ट्र प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान में कार्यरत कर्नल सुतनेकर ने भी आपदा के पूर्वानुमान की अनिवार्यता पर प्रकाश डाला तथा भीड़ की मनोवृत्ति का विश्लेषण करते हुए अधिकारियों से कहा कि भीड़ प्रबन्धन में मनोवैज्ञानिक तरीके से निर्णय लिया जाना आवश्यक है। आई.आर.टी.एस. के प्रोफेसर संजय त्रिपाठी ने रेलवे और प्रशासन के मध्य निरंतर संवाद की अनिवार्यता पर बल दिया। 2013 के कुम्भ में कार्यरत वरिष्ठ पुलीस अधीक्षक श्री राठौर ने यातायात पुलिस एवं सिविल पुलिस के मध्य समन्वय को भीड़ प्रबन्धन की दृष्टि से अनिवार्य बताया तथा विभिन्न सीमावर्ती प्रान्तों के जनपदों से अपने अनुभव बताए।

राठौर ने यह सुझाव दिया कि मौके पर कार्यरत हर जवान को उसकी तैनाती स्थल का सीमांकन बताया जाना चाहिए तथा उसे इस जिम्मेदारी से मनोयोग पूर्वक जोड़ा जाना चाहिए कि उतने क्षेत्र का वह स्वयं सेक्टर इंचार्ज है ताकि वह जिम्मेदारी से जुड़ कर सके, उन्होंने तैनात जवानों को फस्र्ट ऐड दिए जाने की टेªनिंग के लिए भी कहा कि इस आयोजन में रोगी, बुर्जुग अथवा घायल जवानों की तैनाती नहीं होनी चाहिए। दो सत्रों में सायं 5 बजे तक चली कार्यशाला में नागरिकों, पत्रकारों और स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया तथा सुझाव दिए और प्रश्न भी पूछे। आयोजन के अंत में अपने अध्यक्षीय भाषण में मण्डलायुक्त डाॅ. आशीष कुमार गोयल ने कहा कि एक वर्ष से ही कुम्भ की कार्ययोजना पर तेजी से कार्य किया जा रहा है तथा विगत माघमेले में ही स्वच्छता, सड़क तथा सुरक्षा के कई नये प्रयोग सफल साबित हुए है। आगामी कुम्भ आयोजन में इन सभी प्रयोगों को व्यापक पैमाने पर उतारा जायेगा तथा आधुनिक व्यवसथाओं से युक्त एक दिव्य एवं भव्य कुम्भ आयोजित किया जायेगा। मण्डलायुक्त ने कहा कि कि हम एक वर्ष पूर्व से ही आने वाले श्रद्धालुओं को केन्द्र में रखकर जन सुविधाओं का विकास कर रहे है।

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