शीतल सिंह माया कि कलम से – साहब इसको मन की बात तो नहीं कहेगे

अक्सर आपने सुना होगा “अग्रेज चले गये औलादे छोड गये” यह हम कब सुनते है,जब अनावश्यक कोई अग्रेजी बोलता है,जब की जरूरत ही नही थी।बहुत सारे तो अग्रेजो के जाने के बाद उनके पीछे पीछे चले गये,यह पिछल्लगु बनने का चलन हमारे भारत का ही नही पाकिस्तान ,बांग्लादेश से भी रहा है।

सवा सौ करोड लोगो को छोड कर फिल्मी गीतकार के साथ इकट्टी की गई भीड से भावनात्माक बाते करना,वो भी एक बार नही कई बार विदेश मे रह रहे धोती-कूर्ते वाले गोरो को तो प्रभावित कर सकता है आम भारतीयो को नही।आम भारतीयो की जरूरते अलग है।

प्रधानमन्त्री ,प्रसुन जोशी को रेप की बढती घटनाओ पर जवाब देते है,मैने पहले ही लाल किले से कहा था अपनी लडकीयो को संभालने की जगह लडको को ट्रेंड करे वो बलात्कार ना करे। इस सोच पर सख्त आबजेक्शन था,कौन माता-पिता होंगे जो अपने लडको को लडकियाँ छेडने के लिये प्रोत्साहित करेंगे, कोई माता पिता नही चाहेगा उसका लडका बलात्कारी कहलाये ,जब की हम इस समय ऐसे यूग मे रह रहे है,जब हर माता पिता,एक लडकी और एक लडका संतान के रूप मे चाहता है।

यह सरारस इल्जाम माता पिता पर है ,उन लडको पर है जिन्हे उन्ही संस्कारो मे पाला जा रहा है जिसमे बेटीया पलती है।एक अजीब सा उदाहरण प्रधानमन्त्री देते है,लडकीयाँ फोन पर बात करती है तो हम टोका टोकी करते है,किससे बात कर रही है ,क्या बात कर रही है,अब कोई यह समझाये लडकियाँ बात तो किसी लडके से ही कर रही होती है,प्रधानमन्त्री किस तरह का देश चाहते है,लडकियाँ,लडको से बात करे या लडको पर शक रखे,कुछ बदमाश तत्वो की वजह से मेल चाइल्ड को दोष दे।

एक और सवाल था,प्रधानमन्त्री जी अक्सर कहते है। मेरे से गलतीया हो सकती है,पर मेरी नीयत पर शक नही किया जा सकता है, मेरी मंशा साफ है। देश को नीयत से क्या लेना देना , देश क्यो आपकी आत्मा के अन्दर झांकेगी ,देश को आपके कर्मो से मतलब है, देश को कथनी और करनी मे एक समानता चाहिये। आप जो कहे वो ही जमीन पर दिखना चाहिये, नोटबन्दी के बाद आपने एक महिना मांगा था,आज तक गाडी पटरी पर नही आई है,बैंको मे नकदी की कमी अभी तक बनी हूयी है।

प्रसून्न जोशी को गजेन्द्र चौहान की जगह सैन्सर बोर्ड का कार्यभार सौपा था, वो एक राहत की खबर थी,लेकीन यह हद थी प्रसून्न जोशी सवालो का तीखा पन समाप्त करके सवालो मे इमली की चटनी मिला कर स्वादिष्ट बना कर प्रस्तूत करेंगे। फिल्मकारो ने भारत प्रेम को अपनी फिल्मो मे जमकर भूनाया है। मनोज कुमार की उपकार से प्रेरित कार्यक्रम का टाईटल #भारत की बात अक्षय कुमार की #नमस्ते लंडन के शून्य के अविष्कार के ज्ञान पर समाप्त हूआ पब्लिक इन्टरेक्ट हूआ मोदी जी का कार्यक्रम इमारत के अन्दर की कहानी कहता है, बाहर लोग प्लेक कार्ड लिये इन्तजार करते रहे, बहुत से लोगो के टिकट कैन्सिल हो गये उनके पास तीखे सवाल हो सकते थे।

यह #भारत की बात नही थी इसे #मन की बात का विदेशी सस्कंरण कहना ज्यादा उचित होगा।

नोट – लेख के सभी विचार लेखक के अपने खुद के विचार है.

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