तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – कौन सा मज़हब है तेरा तय्यब अली, मुहर्रम भी तेरा है और दशहरा भी तेरा

तारिक आज़मी।

नफरत का बीज समाज में बोने वाले अब उसकी फासले काटने की तैयारी में लगे है। मगर इस दौरान भी भले लाख नफरत फैले मगर इंसानियत और मुहब्बत आज भी समाज के अन्दर मौजूद है। आज भी बनारस की गंगा जमुनी तहजीब इस शहर में जिंदा है। आज भी हिन्दू मुसलमान का रिश्ता काशी में तानी बाने जैसा रिश्ता है। आज भी हमारे बीच मुहब्बते कायम है। लाख कोई इसको तोड़ने की कोशिश करे, लाख कोई इसमें फुट डालने का प्रयास करे, मगर बाबु खान की पिचकारी और रंगों से आज भी होली इस शहर में रंगीन होती है। वही राजेश साहू की बनाई हुई सिवइयो से आज भी ईद मनाई जाती है। सब तोड़ देंगे ये नफरतो के सौदागर मगर इस मुहब्बत को कैसे तोड़ेगे। नफरत का सौदा करने वाले लोग भले मुहब्बत का मायने नहीं जानते है, मगर काशी का दिल आज भी गंगा जमुनी तहजीब के लिए धड़कता है।

इसकी एक बानगी आपको आदमपुर थाना क्षेत्र के ओमकारलेश्वर क्षेत्र में देखने को मिल जाएगी, जहा तीन पीढ़ी से ताजिया और विजय दशमी के लिए रावण बनाने वाले का नाम आपको तय्यब अली मिलेगा। तय्यब अली अपने पुरे परिवार के साथ हर साल विजय दशमी का जहा रावण बनाते है, वही मुहर्रम में बैठने वाली कागजों की ताजिया भी यही बनाते है। तय्यब अली को इसकी तरबियत उनके स्वर्गवासी पिता रज्जब अली से मिली थी। रज्जब अली भी अपने पुरी ज़िन्दगी मुहर्रम की ताजिया और विजय दशमी का रावण बनाते रहते थे। तय्यब अली बताते है कि ये काम करते हुवे उनकी तीन पीढ़ी गुज़र गई है। हम साल के दो आर्डर उठाते है एक मुहर्रम का और दूसरा विजय दशमी का। हमारा रोज़गार इन्ही दो त्योहारों का है। इसके बाद हम पुरे साल खाली रहते है और इस दौरान पतंग वगैरह बनाने का काम करते है।

तय्यब अली ने बताया कि दोनों त्योहारों की तैयारी हम लोगो को दो से तीन हमने पहले करनी होती है। विजय दशमी में कई रावणों के आर्डर पहले से रहते है। एक दो ज्यादा बना कर रख लिया जाता है ताकि ऐन मौके पर अगर किसी को आवश्यकता पड़े तो उसका त्यौहार ख़राब न हो और उसको दिया जा सके। रावण की साइज़ के हिसाब से कीमत होती है। पूरा परिवार मिलकर हम सब रावण को भी उसी श्रधा के साथ बनाते है, जिस श्रधा के साथ ताजिया का निर्माण होता है। हमारे लिए सभी धर्मो का सम्मान करना सर्वोपरि है। कारोबार अल्लाह का शुक्र है काफी अच्चा चलता है। हमको इससे मतलब नहीं होता कि किसकी सरकार है किसकी नहीं। हमको तो बस अपने दाल रोटी के इंतज़ाम से मतलब रहता है।

वर्त्तमान हालात पर बात करते हुवे तय्यब अली ने बताया कि कैसी नफरत कैसी लड़ाई, आज भी वही हाथ जो ताजिया बनाते है वही विजय दशमी के रावण का निर्माण करते है। किसी को आज तक कोई एतराज़ नहीं हुआ। हम जितनी श्रधा के साथ ताजिया बनाते है, उतनी ही श्रधा के साथ रावणों का भी निर्माण करते है। आस पास जलने वाले सभी रावण हमारे द्वारा ही बनाया जाता है। ताजिया भी काफी दूर दूर तक हमारी जाती है। दोनों का ही आर्डर हमको महीनो नही बल्कि साल भर पहले मिलता है। इसमें से कई आर्डर तो ऐसे है जो हम तीन पीढी से बना रहे है। कई रावण मेरे दादा और पिता जी बनाते थे। आज भी वहां रावण हमारे ही बनाये हुवे जाते है। ताजियों का भी यही हाल है. ये तीसरी पीढ़ी है जब हमारी बनाई हुई ताजिया इमाम चौक पर बैठती है।

अब बताये, कहा है वह नफरतो के सौदागर जिनके लिये नफरते फैलाना ही उनका काम है। अब वो बताये इस तय्यब अली का कौन सा मज़हब है ? ये किस धर्म का है ? ये हिन्दू है या मुस्लमान है ? आखिर है क्या तय्यब अली। नहीं बता पायेगे ये नफरतो के सौदागर, क्योकि तय्यब अली न हिन्दू है न मुस्लमान वह तो सिर्फ इंसान है।

उनका जो पैगाम है वह अहले सियासत जाने।
हमारा तो पैगाम-ए-मुहब्बत है जहा तक पहुचे।।

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