लिव-इन पार्टनर से शारीरिक संबंध बनाना रेप नहीं है – सुप्रीम कोर्ट
आदिल अहमद
नई दिल्ली: देश की सर्वोच्च न्यायालय ने आज एक एतिहासिक फैसला देते हुवे रेप और रजामंदी से बने शारीरिक सम्बन्ध के बीच फर्क को स्पष्ट कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अपने नियंत्रण से बाहर की परिस्थितियों में पुरुष द्वारा महिला से शादी करने में विफल रहने पर लिव-इन पार्टनर से शारीरिक संबंध बनाना रेप नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में नर्स द्वारा डॉक्टर के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को खारिज कर दिया। वे काफी समय से लिव-इन रिलेशनशिप में थे।
कोर्ट ने कहा कि बलात्कार और सहमति से सेक्स के बीच एक स्पष्ट अंतर है। अदालत को ऐसे मामलों में बहुत सावधानी से जांच करनी चाहिए कि क्या शिकायतकर्ता वास्तव में पीड़ित से शादी करना चाहता था या उसके पास कोई दुर्भावनापूर्ण इरादा था और उसने झूठा वादा किया था ताकि वह अपनी वासना को संतुष्ट कर सके। जैसा कि धोखे के दायरे में आता है। जस्टिस एके सीकरी और एस अब्दुल नजीर की पीठ ने 22 नवंबर को एक फैसले में उक्त बात कही। पीठ ने यह भी कहा कि अगर अभियुक्त ने अभियोजन पक्ष (महिला) को यौन कार्य करने के लिए प्रेरित करने के एक मात्र इरादे के साथ वादा नहीं किया है तो यह बलात्कार के समान नहीं होगा।
महाराष्ट्र के मामले में एफआईआर के मुताबिक एक विधवा महिला को डॉक्टर से प्यार हो गया था और वे उसके साथ रहने लगी थीं। पीठ ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति की कोई मंशा या गलत इरादे थे, तो यह बलात्कार का एक स्पष्ट मामला था। पीठ ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच स्वीकार किए गए शारीरिक संबंध आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) के तहत अपराध नहीं होंगे। मामले के तथ्यों का उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा कि वे काफी समय से साथ रह रहे थे और जब महिला को पता चला कि उस आदमी ने किसी और से शादी कर ली है तो उसने शिकायत दर्ज कराई। पीठ ने कहा कि हमारा विचार है कि भले ही शिकायत में लगाए गए आरोपों को उनके अंकित मूल्य पर लिया जाए और उनकी संपूर्णता में स्वीकार किया जाए, लेकिन वे अपीलकर्ता (डॉक्टर) के खिलाफ मामला नहीं बनाते हैं।