लखीमपुर खीरी बचपन बचाओ बचपन पढ़ाओ का नारा लगता है बेअसर
फारुख हुसैन
लखीमपुर खीरी. लखीमपुर खीरी बचपन बचाओ बचपन पढ़ाओ सरकार का यह दावा खोखला नज़र आता हैं। जी हां यह तस्वीर हैं लखीमपुर खीरी जिले के ईशानगर के प्लाइवोड फैक्ट्री की हैं। जहाँ यह नौनिहाल छात्र बाल मजदूरी करते देखे जा सकते है। महज़ दो सौ रुपये की मजदूरी के लालच में बच्चे स्कूल से घर ना जाकर फैक्टरी में मजदूरी करते हैं।दर्जनों की तादात में बच्चो ने मजदूरी में अपना बचपन ही खो दिया।जिन बच्चो के हाथो मे किताबे होनी चाहिए उन हाथों ने बोझ ढोना सुरु कर दिया।
अब इसे इन मासूम बच्चों की मजबूरी कहें या सरकार और उसके प्रशासन की नाकामी कहें जो इतनी कम उम्र के बच्चे इस तरह बोझा ढोने पर मजबूर हैं इन मासूमो को ये भी नही पता की जिस फैक्ट्री मे ये काम कर रहे हैं उसमे से निकलने वाला महीन बुरादा उनके फेफडों को कमजोर बना रहा है और आने वाला उनका भविष्य अन्धकार की ओर बढ़ रहा है, पहले स्कूल मे पढ़ाई और उसके बाद फैक्ट्री मे शरीर तोड़ मेहनत करना इन मासूमो को घर जाकर अपनी स्कूल की यूनीफाम्ं बदलने का भी समय नही मिलता
तो सोचिये की ये बच्चे खाना भी समय से खा पाते होंगे और अगर नहीं तो आप अन्दाजा लगा सकते हैं की खाली पेट पढ़ाई के साथ इतनी मेहनत से इन मासूमो के शरीर और दिमाग पर क्या प्रभाव पडेगा, अपने परिवार का पेट पालने के लिए ये मासूम अपना भविष्य और अपना शरीर दोनों को खतरे मे डाल रहे हैं, सरकार और प्रशासन अपनी आखे मुंदे चुप चाप बैठा है , न तो किसी राजनैतिक नेता का ध्यान इस ओर गया और न ही प्रशासन के किसी अधिकारी का ध्यान इस तरफ गया