लोकसभा चुनाव 2019 – 29 दलों से गठबंधन कर चुनाव लड़ रही भाजपा ने छोड़ी है गठबंधन के खातिर अपनी 22 सीटिंग सीट

अनिला आज़मी

लोकसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है। देश में आचार संहिता लगी हुई है। इस दौरान सभी दल अपनी चुनावी सफलता हेतु हर हथकंडे अपना रहे है। इस बीच सबसे अधिक व्याकुलता अगर कही दिखाई दे रही है तो वह है भाजपा एक खेमे में। सर्जिकल स्ट्राइक और राष्ट्रीय सुरक्षा को इस बार मुख्य मुद्दा बनाने वाली भाजपा पिछले चुनावों के राम मंदिर के मुद्दे को पीछे छोड़ चुकी है। राम मंदिर ही क्यों लगभग हर वायदों पर युटर्न लेने के कारण प्रधानमंत्री को हर दल के तरफ से आलोचनाओ का शिकार होना पड़ रहा है। सोशल मीडिया पर समर्थको और अपनी पार्टी के नेताओ को छोड़ हर एक मुद्दे पर यूज़र्स हावी है।

इसको पांच राज्यों के चुनावी नतीजो से दहशत कहे अथवा सत्ता हेतु एक प्रयास कहे कि भाजपा कार्यकर्ता लाख गठबंधन पर उंगलिया उठाये और मोदी जी का समर्थन करते हुवे कहे कि शेर अकेला आता है। मगर ज़मीनी हकीकत तो ये है कि कुल 29 दलों से गठबंधन कर चुनावी कवायद करने वाली भाजपा ने कई जगह गठबंधन के खातिर कडवे घूंट तक पिए है। उदहारण आपके सामने बिहार का है जहा पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा ने 40 लोकसभा सीट में से कुल 22 जीती थी आज वही भाजपा गठबंधन में खुद को बाँध कर उसी राज्य में केवल 17 सीट पर चुनाव ही लड़ रही है। इसको वक्त की बलिहारी कहे अथवा सत्ता के खातिर किया जा रहा गठबंधन का धर्म कहे कि इन 29 दलों से गठबंधन करके भाजपा अपनी 22 सीटिंग सीट अपने गठबंधन के दलों हेतु छोड़ रही है।

अब आप झारखण्ड को ही ले ले। झारखंड में तो भाजपा ने सहयोगी दलों के लिए बहुत बड़ी कुर्बानी दी। झारखंड की गिरिडीह सीट पर भाजपा पिछले पांच बार से जीतती रही है, लेकिन इस बार उन्होंने यह सीट अपने सहयोगी दल एजेएसयू के लिए छोड़ दी। आप सोच सकते है कि पांच बार की जीती हुई सीट भी सहयोगियों को देना किसी कडवे घुट से कम तो नही है।

एक और उदहारण महाराष्ट्र में शिवसेना से गठबंधन का ले ले। महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ भाजपा ने गठबंधन किया है, जबकि शिवसेना समय-समय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधती रही है। शिवसेना सांसद संजय राउट ने तो पीएम मोदी को चोर तक कहा था। शिवसेना नोटबंदी, अर्थव्यवस्था और सर्जिकल स्ट्राइक सहित कई मुद्दों पर पीएम मोदी पर निशाना साधती रही है। वहीं भाजपा ने आईएडीएमके के साथ हाथ मिलाया है और गठबंधन में डीएमडीके को भी शामिल कर लिया गया।

उत्तर प्रदेश में देखे तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर की अपनी खुद की सीटिंग सीट सपा बसपा गठबंधन से हारने के बाद अब ऐसी स्थिति में हो गये है कि दूध का जला मट्ठा भी फुक फुक कर पिए। योगी आदित्यनाथ भी प्रदेश में भाजपा के सहयोगी दलों को मनाने में जुटे हुए हैं। उन्होंने ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के छह नेताओं और अपना देल के सात नेताओं को अलग-अलग बोर्ड और निगमों में नियुक्ति दी है। ये वही ओमप्रकाश राजभर है जो लगातार अपनी ही सरकार पर हमलावर रहे है और उनके बयानों ने सरकार की किरकिरी करवाया है। मगर ध्यान देने वाली बात एक और भी है कि केवल पूर्वांचल तक महदूद रहे ओमप्रकाश राजभर अब सत्ता में आने के बाद प्रदेश के पश्चिमी इलाको में भी अपनी पकड़ बनाने में लगे है। यही नही पश्चिम में भी राजभर ने अपनी पकड़ को मजबूत किया है। राजभर लगातार भाजपा को चेतावनी देते रहे है कि अगर उनकी शर्ते नही मानी गई तो प्रदेश की सभी सीट पर प्रत्याशी लडवा दूंगा।

अब देखना ये होगा कि भाजपा का अपने सहयोगी दलों हेतु ये बलिदान कहा तक काम आता है। इधर प्रदेश में अनुप्रिया पटेल भी अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर चुकी है तो उत्तर प्रदेश में शिवसेना भी सीट में हिस्सेदारी की मांग कर रही है। अभी तक भाजपा अपनी 22 सीटिंग सीट का बलिदान सहयोगी दलों को कर चुकी है। सभी प्रश्नों का उत्तर कुछ न कुछ साफ़ अगले पखवारे से होने लगेगा। चुनावी प्रक्रिया बताते चले कि 19 मई को समाप्त होगी और 23 मई को रिज़ल्ट आएगा। अब देखना होगा कि विपक्ष की एकता के सामने 29 दलों का गठबंधन कितनी चुनौती देता है अथवा इन गठबंधन को विपक्ष क्या चुनौती देता है।

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