अखिल भारत हिंदू महासभा ने मनाया गोडसे का जन्मदिन – तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – गोडसे की तीन गोली से गांधी नही मर सकते, दिलो में जिंदा गांधी को कैसे मारोगे ?
तारिक आज़मी
शायद ये खबर आप सबको आपके चाहिते चैनलों ने नही दिखाई होगी। यही नही जो रोज़ आपके घर में बालकनी अथवा दरवाजों पर दस्तक देता है वह अखबार भी ख़ामोशी के दफ्तर में इस खबर को रख चूका होगा। शायद इसके लिए वक्त का इंतज़ार हो कि जब सही समय आएगा तो गर्व से वह इस खबर को दिखायेगे। ये वैसे ही है जैसे 92 के बाद मनाया जाने वाला कथित शौर्य दिवस पहले किसी कोने की खबर की कबर में दब जाती थी। वक्त बदला और फिर आज शान से इस खबर को खबरों का बड़ा हिस्सा मिलता है। कुछ तो बस नही चलता कि कानून को ताख पर रख कर हुई इस घटना पर पूरा प्राइम टाइम ही चला दे। शायद अभी भी आँखों में पानी बचा हुआ है।
इस बार चुनावों में नाथूराम गोडसे के चाहने वालो की चाहत जाग उठी और उसका महिमा मंडन शुरू हुआ। इसके लिए सबसे पहले साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने गांधी के हत्यारे को देश भक्त करार दे दिया। ये एक अलग बात है कि भाजपा का इस बयान से किनारा करना और फिर संघ द्वारा पड़ा दबाव ही रहा होगा जो साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने अपना बयान वापस ले लिया। वैसे सूत्रों की माने तो वह बयान वापस नहीं लेना चाहती थी मगर गांधी के औलादों का कही न कही खौफ दिल में तो होगा ही शायद इसीलिए बयान वापस ले लिया। मगर लगता है कि इससे उनके दिल को ठेस पहुची होगी और शायद गोडसे की आत्मा से माफ़ी मांगने के लिए वह चुनाव खत्म होते हु अज्ञातवास में मौन साधना को जा चुकी है। वैसे इसके बाद भी आज आप उनकी सबसे करीबी सेविका के फेसबुक वाल पर गोडसे का महिमा मंडन करता हुआ पोस्ट देख सकते है।
बहरहाल, ये तो राजनितिक तौर पर अपने वोट को सुरक्षित रखने के लिए वापस लिया गया बयान भी हो सकता है। मगर एक बड़ी खबर जो अखबारों की सुर्खियों से बची, जिसको आपके पसंदीदा चैनल ने भी नही दिखाया। इसके ऊपर कोई न्यूज़ रूम में एंकर बैठ कर बहस करता नही नज़र आया वह यह है कि जब देश चुनाव के आखरी चरण के मतदान और फिर एग्जिट पोल पर अपना ध्यान केन्द्रित किये हुवे था उसी दौरान उस दिन अखिल भारत हिंदू महासभा के कार्यकर्ताओं ने अलग-अलग स्थानों पर रविवार को महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के जन्मदिन पर कार्यक्रमों का आयोजन किया।
बताते चले कि गांधी का हत्यारा गोडसे 19 मई 1910 में पुणे जिले के बारामती में पैदा हुआ था। उस समय यह क्षेत्र बंबई प्रेसीडेंसी का हिस्सा हुआ करता था। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक हिंदू महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयवीर भारद्वाज ने बताया कि मध्य प्रदेश के ग्वालियर के दौलतगंज इलाके में संगठन के कार्यालय में गाँधी के हत्यारे गोडसे का जन्मदिन मनाया गया।
जयवीर भारद्वाज ने गोडसे को राष्ट्रभक्त बताते हुए कहाकि, ‘गोडसे की जयंती पर हमने संकल्प लिया है कि अगर जिला प्रशासन ने नाथूराम गोडसे की प्रतिमा नहीं लौटाई तो हिंदू महासभा 15 नवंबर 2019 को इसी स्थान पर गोडसे की प्रतिमा की स्थापना करेगा। हिंदू महासभा अपने आराध्य, राष्ट्रभक्त को पूजने का काम करता आया है और करता रहेगा। अगर 1947 में देश का विभाजन नहीं होता तो भारत सबसे बड़ा देश होता।’ यही नही भारद्वाज ने गोडसे को देशभक्त बताते हुए कहा, ‘हमने उन्हें श्रद्धांजलि दी और उनकी तस्वीर के सामने आरती उतारी और मिठाइयां बांटी।’ उन्होंने दावा किया कि भाजपा के कई नेता गोडसे को देशभक्त मानते हैं लेकिन पार्टी का एक धड़ा उसकी निंदा करता है। बताते चले कि इससे पहले 15 नवंबर 2017 को हिंदू महासभा ने ग्वालियर के अपने कार्यालय में गोडसे की 32 इंच की प्रतिमा लगायी थी, जिसे प्रशासन ने हटा दिया था और जब्त कर लिया था। भारद्वाज ने कहा, ‘अगर जिला प्रशासन ने इस साल 15 नवंबर तक प्रतिमा नहीं लौटाई तो महासभा ग्वालियर के अपने कार्यालय में दूसरी प्रतिमा लगाएगी।’
वैसे इस कार्यक्रम की जानकारी तो स्थानीय प्रशासन को भी थी मगर उसने कोई कार्यवाही नही किया। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सत्येंद्र सिंह ने बताया कि महासभा के कार्यक्रम से शांति व्यवस्था नहीं बिगड़ी। पुलिस कड़ी नजर रखे हुए थी। कार्यक्रम के इजाज़त के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम निजी संपत्ति पर बंद कमरे के भीतर हुआ इसलिए इसके लिए अनुमति की जरूरत नहीं थी।
वही जनसत्ता की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के मेरठ में भी हिंदू महासभा के कार्यकर्ताओं ने गोडसे का जन्मदिन मनाया। इस दौरान यज्ञ किया गया और मिठाइयां बांटी गईं। हिंदू महासभा के उपाध्यक्ष पंडित अशोक शर्मा ने कार्यकर्ताओं के साथ जन्मदिन मनाया। इस मौके पर हिंदू महासभा के कार्यकर्ताओं ने कहा कि महात्मा गांधी देश के बंटवारे के लिए जिम्मेदार थे। उन्होंने 40 लाख निर्दोष लोगों को मरवा दिया। गोडसे ने गांधी की हत्या धर्म की रक्षा के लिए की थी। हिंदू महासभा के उपाध्यक्ष पंडित अशोक शर्मा ने राष्ट्रपति कोविंद के नाम एक चिट्ठी भी लिखी है। उन्होंने चिट्ठी में लिखा है कि दिल्ली में गांधी की समाधि राजघाट को तोड़कर हटाया जाए। उसकी जगह गांधी की वजह से मारे गए निर्दोष लोगों का स्मारक बने। न्यूज 18 की रिपोर्ट को माने तो उसके मुताबिक, उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में भी गोडसे का जन्मदिन मनाया गया। यहां भी हिंदू महासभा के कार्यालय में हवन और यज्ञ किया गया।
अब रही हिन्दू महासभा की मांग पर अगर गौर करे तो वह चाहता है कि गोडसे को देश भक्त और धर्म रक्षक सरकार घोषित करे। यही नही उसकी मांग है कि राजघाट को तोड़ दिया जाए। कमाल ही कहेगे इसको जो एक हत्यारे को देश भक्त की उपाधि दे रहा है। इसको शायद लोकतंत्र में विचारो की अभिव्यक्ति एक वर्ग विशेष के लिए ही कहेगे क्योकि अगर यह अभिव्यक्ति किसी अन्य सम्प्रदाय के तरफ से आ जाए तो यही टीवी चैनल के न्यूज़ रूम में बैठे एंकर कोहराम मचा चुके होते। दिन में कम से कम दस बहस हर चैनल पर हो रही होती और उसमे खुद ही कानून बनकर फैसला सुना रहे होते।
मगर विचारों के अभिव्यक्ति की आज़ादी तो शायद एक वर्ग विशेष में भी एक पार्टी विशेष के समर्थको को मिली हुई है। आखिर किस सोच के तहत साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने गोडसे को देश भक्त कहा था। शायद यह दिली हुई शिक्षा का नतीजा है। मेरे परिचय में भी एक सज्जन है। उनके विचार भी इसी तरह के है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि वह भी संघ से जुड़े हुवे है। शायद संघ से ऐसी शिक्षा मिली होगी तभी तो दो टुक में एक हत्यारे को सीधे सीधे देशभक्त करार दे दिया।
वैसे गोडसे के चाहने वाले सिर्फ मुट्ठी भर इस देश में होंगे। मगर उनको इस बात का तो अहसास है ही कि गांधी के चाहने वाले देश में कही ज्यादा है। तोडना चाहते हो गांधी के राजघाट को। वैसे सोच तो कुंठित है मगर ये बताओ की दिलो में जिंदा गांधी को कैसे मारोगे। उनके आदर्शो को कैसे मारोगे। गांधी गोडसे की तीन गोलियों से नही मरने वाले। वह इन लगभग 72 सालो में आज भी देश के जनता के दिलो में जिंदा है। इस देश के अधिकतर नागरिको के दिल में गांधी की एक समाधि है, जिसका वह सम्मान करता है। उस दिलो के अन्दर बसे गांधी को कौन सी गोली इस्तेमाल करके मारोगे। वो जो समाधि दिलो में गांधी की बनी है उसको कैसे तोड़ोगे। या फिर उसको तोड़ने के लिए भी सरकार को पत्र लिखोगे। होगा गोडसे तुम्हारा आइडियल मगर इतना याद रखना गांधी के औलादों की ताय्दात इस देश में ज्यादा है। गांधी सिर्फ एक इंसान का नाम नही जिसको तुम्हारे आइडियल गोडसे की तीन गोलिया मार डाले। गाँधी एक विचारधारा है। ये विचार धारा असल में तुम्हारे समझ में नही आएगी।
बड़ी हंसी के साथ कहते हो न कि “मज़बूरी का नाम गांधी।” तो एक बात सून लो, गांधी मज़बूरी नही मजबूती का नाम है। गांधी वो मजबूती है जिस फ्रेम में तुम्हारा कमज़ोर किरदार समां नही पायेगा। उस फ्रेम में तुम फिट नही बैठोगे तो तुम्हारे लिए भले गांधी मजबूती हो। मगर हकीकत ये है कि गांधी एक मजबूती का नाम है। तुम उतने मजबूत नही हो। तुम हो भी नही सकते हो।